वादे करने और वादों को जमीन पर उतारने के लिए जी जान लगाने में जमीन आसमान का अंतर होता है। ये अंतर संभवतःमनुष्य की नियत पर निर्भर करता है। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इस बारे में बात करना जरूरी है कि महिला सशक्तिकरण का नारा देने और वाकई महिलाओं को सशक्त करने में क्या अंतर होता है।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत,सदैव से महिलाओं के हितों की बात करने में अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं। इसके साक्ष्य त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री काल में महिलाओं के लिए हुए कामों में छिपे हैं। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि उन्होंने विगत वर्षों में महिला सशक्तिकरण को केवल नारे तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि उनके लिए काम किया।
उन्होंने कहा कि हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिर्फ नियत से कंधा नहीं मिलाया बल्कि उनकी नीतियों को भी एक कदम आगे ले जाने में अपना बहुमूल्य सहयोग दिया। जिस तरह देश में उज्ज्वला योजना के अंतर्गत प्रधानमंत्री जी ने माताओं-बहनों के सिर से लकड़ी की गठरी को हटाया। वहीं प्रदेश में हमने मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना से उनके सिर से घास की गठरी हटने का काम किया।उन्होंने कहा कि हमने संकल्पित होकर महिलाओं के प्रति हरदम खड़े रहे और उन्हें सशक्त करने के लिए कई ऐतिहासिक फैसले लिए।
हम कह सकते हैं कि शायद त्रिवेंद्र सिंह रावत नहीं होते तो महिलाओं को पति की पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलना संभव नहीं था। वो टीएसआर ही थे जिन्होंने महिला समूहों को 05 लाख तक ब्याज मुक्त ऋण देने के साथ महिलाओं को स्वरोजगार की राह पर लाने में आसानी पैदा की।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में महिलाओं को ग्रोथ सेन्टर से जोड़ने का काम बाखूबी किया गया। उनके कार्यकाल में ऐसे तमाम कार्य हुए जिनसे महिलाएं ना सिर्फ आर्थिक बल्कि मानसिक रूप से मजबूत हुई, स्वावलंबी हुई। ऐसे में त्रिवेंद्र सिंह रावत की नीति और नियत ने वो पैमाने तय किए हैं, जिसकी वजह से वाकई आज महिला दिवस की कीमत बढ़ी है,महिलाओं को सहारा मिला है।