फूलदेई के महीने में धाद और दून इंटरनेशनल स्कूल द्वारा आयोजित फुलारी क्रिएटिव फेस्ट में देहरादून के 25 से जायदा स्कूल के बच्चों ने अपनी ड्राइंग और लेखन कला का प्रदर्शन किया। धाद द्वारा दस हजार बच्चों की फूलदेई अभियान के अंतर्गत दून इंटरेरनेश्नल स्कूल में आयोजित फेस्ट में सीनियर में दून इंटरनेशनल स्कूल की श्रेया नौटियाल प्रथम,जी जी आई सी की सोनाली द्वितीय,दूँ वर्ल्ड की इशानी कुमार तृतीय,जूनियर में समर वैली की वर्णिका प्रथम,यु पी एस मेहुवाला की गुलनाज द्वितीय और के वि आई आई पी की श्यामा रे ने तृतीय स्थान अर्जित कियाI
आयोजन की मुख्य उपस्थिति पद्मश्री डॉ.माधुरी बड़थ्वाल ने कहा कि फूलदेई एक मौखिक विरासत के रूप में समाज रही है जिसमे वसंत पंचमी में लोकगीत शुरू हो जाते थे जिसमे थडिया लोकगीत गाये जाते थे फिर फूल संग्रांद में जब चारो तरफ फूल होते तो बच्चे सुबह फूल लाते और घर घर की देहलीज पर डाल देते थे। जिसके लिए उन्हें इनाम मिलते और इस तरह समाज में बच्चों का यह उत्सव चलता। इस मौखिक परम्परा को कायम रखना हम संबका दायित्व है। उन्होंने फूलदेइ के लोकगीत फूल लाने का ल्यू फूला बयोनि हे बाल गोविंदा सुनते हुए इसके संरक्षण के लिए सभी सामजिक संस्थाओ और शासन से अपील की ।
दून इंटरनेशनल स्कूल के प्रिंसिपल दिनेश बर्थवाल ने कहा की आज के दौर की शिक्षा में अपनी संस्कृति अपने प्रदेश के साथ प्रेम के भाव को पैदा किया जाने की जरूरत है और फूलदेई का यह आयोजन ऐसा कर रही है फूलदेई हमारी सांस्कृतिक विरासत है उसको कला से जोड़ने की पहल बच्चों के मन मस्तिष्क तक फूलदेई तक ले जा रही है। फुलारी की संयोजक अर्चना ग्वाडी ने बताया की उत्तरखंड के लोकपर्व फूलदेई को नयी पीढ़ी तक ले जाने और प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत से उनका परिचय करवाने के लिए धाद ने इस साल दस हजार बच्चों के साथ फूलदेई का तय किया है,जिसमें सार्वजनिक शिक्षण संसथान के साथ इस बार प्राइवेट स्कूलों को भी शामिल किया गया है। जिसके अंतर्गत यह फेस्ट आयोजित हुआ है। इसका मकसद आज की पीढ़ी को इस पर्व के साथ रचनात्मक रूप से जोड़ा जाना हैI आयोजन का रेस्पॉन बहुत शानदार रहा है और लगभग 25 प्रमुख स्कूलों के छात्र इसमें हिस्सेदारी कर रहे है।
कोना कक्षा का के संयोजक गणेश चंद्र उनियाल ने बताया की दस हजार बच्चों को शामिल करने के अभियान में अभी तक की हिस्सेदारी बहुत उत्साहजनक रही है और प्रदेश के कोने कोने से बच्चे इसमें हिस्सेदारी कर रहे हैं। जिसमें वो न केवल सांस्कृतिक रूप से बल्कि अपनी रचनात्मकता के साथ भी शामिल हो रहे हैं। आयोजन की अध्यक्षता कर रहे धाद के केंद्रीय अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा हिमालय के पर्वों का खो जाना मनुष्य समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। यहाँ के समाज ने एक लम्बे कालक्रम में आवागमन के अभाव में अपने क्षेत्र की भाषाएँ और रीति रिवाज विकसित किये हैं और सामूहिक ख़ुशी की तलाश में उत्सवों का निर्माण किया।
इस प्रक्रिया में उसमें दुनिया के कुछ खूबसूरत पर्व पैदा किये है जिनमे हरेला फूलदेई जैसे पर्व हैं। जिनमें ऋतू चक्र से और प्रकृति से जुड़ाव का गहरा बोध है और समाज प्रकृति के साथ जुड़कर अपनी प्रसन्नता खोजता रहा है। इन्हें पुनर्जीवित करना एक सकारात्मक कदम है। इस अवसर पर तपस्या सती, मीनाक्षी जुयाल,मनीषा ममगाईं,संजय सोलंकी,अरविंद सोलंकी,सुशील पुरोहित,राजीव पांथरी, नीना रावत,तन्मय ममगाई,डी.सी नौटियाल,कल्पना बहुगुणा,शांति बिंजोला,सुबोध सिन्हा,मधु सिन्हा,वनिता मैठाणी,कशिश,शुभम,दिवाकर मौजूद थे।