Joshimath Sinking:-हिमालय को समग्रता में समझे जाने की आवश्यकता

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मालूम नहीं था कि नए वर्ष पर मित्र राजीव नयन बहुगुणा जी द्वारा भेंट की गई यह पुस्तक,जो कि विभिन्न ख्यातिलब्ध पर्यावरणविद और हिमालय की संवेदनशीलता को समझने वाले विद्वतजनो के लेखों का एक संग्रह है। अचानक ही इतनी प्रासंगिक हो जाएगी।

जोशीमठ के बहाने हिमालय पर चिंता बढी है।लेकिन इस चिंता को सिर्फ आपदा प्रभावित क्षेत्र और टुकड़ों के रूप में नहीं देखा जा सकता।

हिमालय जिसकी लंबाई 2,500 किमी,चौड़ाई 100 से लेकर400 कि .मी.है। जिसका क्षेत्रफल लगभग 5,लाख वर्ग किमी है। जो भारत के बाहर भी है। लेकिन भारत में कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक हमें हिमालय को एक रूप में देखें देखे जाने की आवश्यकता है। इसके लिए एक एकीकृत और केंद्रीय नीति पर विचार किए जाने की भी आवश्यकता है।

हिमालय क्षेत्र में विकास कार्यों की धमक 1850 के बाद तेजी से बढ़ी, 1880 मैं घटित स्नो व्यू नैनीताल के भूस्खलन ने अंग्रेजों को मनमाने विकास के प्रति सचेत किया तब से अंग्रेजों ने दार्जिलिंग से लेकर डलहौजी तक जो छोटे पर्वतीय शहर बसाए,जिनमें रानीखेत,नैनीताल, मसूरी,गुलमर्ग आदि प्रमुख हैं। उनमें अनिवार्य रूप से पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता दिखाई,बहुमंजिला इमारतें प्रतिबंधित रही…।

आजादी के बाद हमारा नजरिया बदला और विकास तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा के दबाव ने हिमालय की मूल प्रवृत्ति जो कि मिट्टी और पानी के प्रति संवेदनशीलता है। उसकी अनदेखी होने लगी,परिणाम स्वरूप जगह-जगह हिमालय चित्कार करने लगा।

इस बार यह पीड़ा जोशीमठ में उभरी है, भगवान नरसिंह,भगवान बद्री विशाल से प्रार्थना है कि जोशीमठ की रक्षा हो,साथ ही पूरे हिमालय क्षेत्र के प्रति संवेदनशील नजरिया विकसित हो,हिमालय को बचाए रखने के लिए एक संवेदनशील केंद्रीकृत हिमालय विकास एवं पर्यावरण संरक्षण की संयुक्त नीति बने।जय बद्री विशाल।

आलेखः- प्रमोद शाह