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चला फुलारी फूलों को,
सौदा-सौदा फूल बिरौला
भौंरों का जूठा फूल ना तोड्यां
म्वारर्यूं का जूठा फूल ना लैयां
चैत्र मास में ये गीत उत्तराखंड की वादियों में ग्वाल बालों की आवाज़ में सुनाई देता हैं। लेकिन फूलदेई पर्व पर आस्ट्रेलिया की धरती पर भी उत्तराखंड के प्रवासियों ने अपनी संस्कृति को जीवंत कर दिया। आस्ट्रेलिया में अपने घरों में प्रवासी उत्तराखंडियों ने अपनी संस्कृति के त्योहार को अपनी दूसरी पीढ़ी को एक धरोहर के रूप में देने का सफल प्रयास किया।
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उत्तराखंडी प्रवासी समय-समय जैसे अपने त्योहारों को मनाते आ रहे है। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते उत्तराखंड एशोसियेसन ऑफ़ साउथ आस्ट्रेलिया के तत्वावधान में प्रवासी उत्तराखंडियों ने ढोल-नगाड़ों और फुलारों (बच्चों) के साथ फूलों से भरी टोकरियों के साथ शहर की कालोनियों में जाकर शहर वासियों की मंगल कामना के गीतों के साथ देहली में फूल डाला कर फुलदेई के पर्व को पारम्परिक तरीक़े से मनाया।
पहाड़ की इस लोक परंपरा को देखकर आस्ट्रेलिया के आम लोगों ने उत्तराखंड की लोक संस्कृति का सम्मान तो किया ही,साथ ही अपने गांव,खेत-खलिहानों से दूर रहते हुए अपनी संस्कृतिक को जीवित रखने के लिए पहाड़ के लोगों की सराहना भी की।
उत्तराखंड एशोसियेसन आस्ट्रेलिया के अध्यक्ष विनोद बिष्ट ने इस मौके पर कहा कि हम सब बहुत ही खुश हैं कि हम विदेश में रहकर भी अपनी लोक परंपारओं को अपने लोगों के साथ मिलकर मना रहे है। श्री बिष्ट ने बताया कि जब मैं लोकल कौंसिल में झांकी निकालने की अनुमति लेने गया जो की आस्ट्रेलियाई नियम है,किसी भी तरह की झांकी व प्रदर्शन के लिए आपको लोकल गवर्नमेंट से अनुमति लेनी पड़ती है। इस बारे में जब हमने बताया की यह हमारा लोक पर्व है,हमारा लोक उत्सव है,तो हमें तुरंत ही परमिसन मिल गयी।
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इसके बाद हम सभी लोगों ने मिलकर फूलदेही का त्योहार मनाया। इस मौके पर रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें गढ़वाली-कुमाऊँनी गीतों पर सभी लोगों खूब थिरके साथ ही हर सदस्य अपने चूल्हे से उत्तराखंड के पकवान भी बनाकर लाया। जिनका हम सभी ने मिलकर आनंद लिया। जिसमें चावल की पापड़ी,भरी स्वाँली,काली दाल के पकौड़े,मीठा भात,तस्मै और गहत की दाल शामिल था।
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इस मौके पर हमारे साथ कार्यक्रम में महासचिव,बिरेन्द्र भंडारी,कोषाध्यक्ष,लक्ष्मण मेहरा,कार्यकारी सदस्य,शिखा शर्मा,पारुल रावत,संगीता चमोली,अरुण शर्मा,रविंदर रावत,नेत्र सिंह रावत और मनोज जोशी ने महत्वपूर्ण सहयोग किया।
श्री बिष्ट ने बताया कि 26 जनवरी और आस्ट्रेलिया डे पर उत्तराखंड की झाँकी निकाली गयी थी। जिसमें 100 से ज़्यादा झांकियों ने भाग लिया।