उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे एक पत्र ने उत्तराखंड की राजनीति में तहलका मचा दिया है। इस पत्र के माध्यम से त्रिवेंद्र रावत ने विधानसभा चुनाव न लड़ने की इच्छा जताई है। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले त्रिवेंद्र रावत का चुनाव लड़ने से इनकार करने पर भाजपा असमंजस में है।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे पत्र में त्रिवेंद्र रावत ने लिखा हैं कि मान्यवार पार्टी ने मुझे देवभूमि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने का अवसर दिया। यह मेरा परम सौभाग्य था। मैंने भी कोशिश की कि पवित्रता के साथ राज्य वासियों की एकभाव से सेवा करुं और पार्टी के संतुलित विकास की अवधारणा को पुष्ट करूं।
मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भरपूर सहयोग व आशीर्वाद मिला। इसी के साथ प्रधानमंत्री जी उत्तराखंड वासियों को जो अभूतपूर्व प्यार और सम्मान देते हैं,वह हम सब के लिए सौभाग्य की बात है। इतने मान-सम्मान के लिए मैं उनका हृदय की गहराइयों से धन्यवाद करना चाहता हूं। मैं उत्तराखंड वासियों का एवं विशेषकर डोईवाला विधानसभा वासियों का ऋण तो कभी चुका ही नहीं जा सकता,उनका भी धन्यवाद कृतज्ञ भाव से करता हूं। डोईवाल विधानसभा वासियों का आशीर्वाद आगे भी पार्टी को मिलता रहेगा। ऐसा मेरा विश्वास है।
त्रिवेंद्र रावत ने लिखा हैं कि मैं भाजपा का कार्यकर्त्ता हूं। मुझे पार्टी ने राष्ट्रीय सचिव,झारखंड प्रभारी,उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव 2014 में सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी,जिसे मैंने पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ निभाया। इसी सोच और मेहनत के साथ मैंने दिल्ली,चंडीगढ़,महाराष्ट्र,पंजाब,हरियाणा,हिमाचल प्रदेशा में चुनाव अभियानों में काम किया। वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में चुनाव हो रहा हैं। श्री धामी के नेतृत्व में पुन:सरकार बने उसके लिए पूरा समय लगाना चाहता हूं। अत:आप से पुन:अनुरोध है कि मेरे चुनाव न लड़ने के अनुरोध को स्वीकार करें ताकि मैं अपने संपूर्ण प्रयास सरकार बनाने के लिए लग सकूं।
उत्तराखंड के पूर्व त्रिवेंद्र सिंह रावत के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यूं अचानक चुनाव न लड़ने के फैसले में भले ही पार्टी को असहज कर दिया हो। लेकिन राजनीतिक जानकार त्रिवेंद्र रावत के चुनाव न लड़ने के पीछे कई कारण बता रहे है। राजनीतिक जानकारों का मानना हैं कि जिस तरह से पिछले दिनों अचानक से पार्टी ने त्रिवेंद्र रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाया। जबकि उनके ऊपर कोई आरोप नहीं था। यह टीस उनके मन में अभी भी है।
इसी के साथ शायद त्रिवेंद्र रावत को लगता हैं कि वह इस बार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज न कर पाएं। दूसरी ओर राजनैतिक सूत्रों की माने,तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को केंद्र में कोई बड़ी जिम्मेदारी भी दी जा सकती है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पार्टी हाईकमान के निर्देश के बाद पिछले साल 09 मार्च 2021 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उनको मुख्यमंत्री पद से हटाने के बारे में कहा गया कि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का फैसला पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर लिया। पर्यवेक्षकों ने कोर ग्रुप और प्रमुख विधायकों-सांसदों की राय के आधार पर केंद्रीय नेतृत्व को बताया है कि राज्य में अगले साल होने वाले चुनाव को लेकर स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
भाजपा विधायकों ने उत्तराखंड पहुंचे पर्यवेक्षकों के सामने यह आशंका जताई थी कि यदि त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री रहे तो पार्टी 2022 में चुनाव हार सकती है। दिल्ली से विशेष तौर से भेजे गए पर्यवेक्षक रमन सिंह की अध्यक्षता में हुई कोर कमेटी की बैठक के बाद रमन सिंह ने अपनी रिपोर्ट पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंपी थी। जिसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
इस सब के बीच अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के अचानक चुनाव नहीं लड़ने के फैसले ने भाजपा और केंद्रीय नेतृत्व को असहज जरूर कर दिया है। अब देखने वाली बात यह होगी की केंद्रीय नेतृत्व त्रिवेंद्र रावत को चुनाव लड़ने के लिए कहता हैं या उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी देता है।