मृदुला घई की कविता ‘आग’

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मृदुला घई

आग

धीरे धीरे हौले हौले से

दिल में जगह बनाई तुमने

प्यार की आग सुलगाई तुमने

तड़पा तड़पा के भड़काई तुमने

फिर भोले बन के यूँ पूछो

अरे ये आग लगाई किसने

बर्फ सा दिल पिघलाया तुमने

जज़्बात जगा खूब रुलाया तुमने

कैसे कैसे दर्द बोए तुमने

टूटे ख्वाब नशतर चुभाये तुमने

लपटों से चैन फूंका तुमने

फिर भोले बन के यूँ पूछो

अरे ये आग लगाई किसने

अधरों से मुस्कान लूटी तुमने

मेरी मीठी नींद चुराई तुमने

छुपके छुपके मुझे भरमाया तुमने

कुछ अपना सा बनाया तुमने

माँगा साथ तो झुलसाया तुमने

फिर भोले बन के यूँ पूछो

अरे ये आग लगाई किसने

दिल धड़कन को कब्जाया तुमने

हर ख़्याल खुदको चिपकाया तुमने

मुझको मुझसे ही छीना तुमने

पल-पल किया मुश्किल जीना तुमने

दुलार दुत्कार बीच जलाया तुमने

फिर भोले बन के यूँ पूछो

अरे ये आग लगाई किसने

लेखिका श्रम मंत्रालय में एम्प्लाइज प्रोविडेंट फण्ड कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं