
उत्तराखंड राज्य व उत्तरांचल भ्रातृ समिति शालीमार गार्डन साहिबाबाद द्वारा 20 नवम्बर को अपार प्रवासी जनसमूह के मध्य उत्तराखंड राज्य का 22वां व भ्रातृ समिति का 21वां भव्य स्थापना दिवस समारोह सांस्कृतिक व रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर उत्तराखंड समाज के करीब दो सौ बुजुर्गों व बुजुर्ग दम्पत्तियों को उनके द्वारा उत्तराखंड राज्य आंदोलन व भ्रातृ समिति के द्वारा आयोजित अनेकों आयोजनों में उत्तराखंड की लोककला व लोकसंस्कृति के संरक्षण व संवर्धन हेतु दिए गए योगदान हेतु संस्था पदाधिकारियों व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कर कमलों स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया।
स्थापना दिवस का श्रीगणेश संस्था पदाधिकारियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर व देवेन्द्र कनवाल,हर्षिता रावत,गरिमा पांडे,इशिका जोशी,सुधा जोशी,श्रीनिका बहुखंडी,अभिषि रावत व कनिका रावत द्वारा प्रस्तुत दैणा होया खोली का गणेशा…। श्रीगणेश वंदना गायन से किया गया।

स्थापना दिवस के इस अवसर पर उत्तराखंड राज्य आंदोलन में प्रमुख रूप से भागीदारी करने वाले जनमोर्चा संगठन के सदस्यों को आयोजकों द्वारा मंच पर आमन्त्रित कर परिचय कराया गया,उक्त आंदोलनकारियों के योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत,कांग्रेस के हरिपाल रावत व धीरेन्द्र प्रताप, स्थानीय विधायक सुनील शर्मा,दरबान सिंह नेगी,खिलानंद जोशी, तारादत्त मासीवाल,नीरज बहुखंडी,आरपी शर्मा,नरेन्द्र राठी,राजीव भाटी, एसएन डंगवाल,रामचंद्र भंडारी,नरेन्द्र सिंह नेगी इत्यादि प्रबुद्धजनों को भी आयोजको द्वारा मंच पर आमन्त्रित कर सम्मानित किया गया।
आयोजन के इस अवसर पर उत्तराखंड के लोकगीत-संगीत तथा उत्तराखंड की पारंपरिक लोक संस्कृति पर रचित सु-प्रसिद्ध कवियित्री व लेखिका मीना पांडे द्वारा रचित व निर्देशित नाटक ‘तुझको बुलाए पहाड’ ने श्रोताओं के मध्य समा बांध उन्हें मंत्रमुग्ध किया। उक्त नाटक के मुख्य बाल कलाकार सृजन पांडे के किरदार को श्रोताओं द्वारा सराहा गया।
उत्तराखंड राज्य के 22वें स्थापना दिवस के इस अवसर पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा व्यक्त किया गया,विगत 22 वर्षों मे उत्तराखंड राज्य ने कई क्षेत्रों मे अच्छी प्रगति की है। विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उत्तराखंड का व्यक्ति देश की सेवा कर अंचल का नाम रोशन कर रहा है। सभी क्षेत्रों में और तरक्की करे,ताकि राज्य का नाम रोशन हो सके,यह सब सामूहिक प्रयास से ही सम्भव हो सकता है। उत्तराखंड का जनमानस निष्ठा पूर्वक सर्व समाज का उत्थान कर रहा है,जो बडी बात है, सामूहिक गौरव है। एक दिन आयेगा जब हमारा देश विश्व के नम्बर एक-दो या तीसरे नम्बर के अव्वल राष्ट्र मे स्थानरत होगा। हम अपनी भावनाओ को राजनीति से हट कर देखे,भारतीयता की दृष्टि से देखे,विनती है।

हरीश रावत द्वारा व्यक्त किया गया,आज हमारे अंचल के गांव बदल गए हैं। लगभग सुविधाएं आज गांव मे पहुच गई हैं। प्रवासीजन अपने गांव जरूर जाए। पहाड़ का अनाज एक बार जरूर पका कर खायें। उत्तराखंड के लोग बडी संख्या में प्रवास में निवासरत हैं,किसी भी रेस्टोरैंट में उत्तराखंड का भोजन नही मिलता अन्य सभी राज्यों का उपलब्ध होता है। जरूरत है,हमारे अंचल के प्रवास में जो लोग होटल व रेस्टोरैंट व्यवसाय से जुडे हुए हैं,अंचल के विभिन्न स्वादिष्ट व पारंपरिक व्यन्जनों का स्वाद अन्य राज्य के लोगों को चखा कर अंचल के व्यन्जनों को प्रसिद्धि दिलवाएं।
व्यन्जनों के स्वाद का जिक्र करवाने में अपनी भूमिका का निर्वाह करे। मडुवे की पहचान करवानी जरूरी है,जो आज सब जगह प्रचलित है, ड्राइंगरूम में भी। प्रयास कर ही अंचल का मोटा अनाज वैश्विक फलक पर पहचाना जायेगा,खाया जायेगा। उन्होंने कहा मोटे अनाज की बीयर बनाई जो काफी प्रचलित हुई, स्काच नहीं बना पाये,जो मलाल है। मडुवे की स्काच बने,उसे प्रसिद्धि मिले,लोग उसे पूछे,ढूढै। हर राज्य ने अपने व्यन्जन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहुचा कर उन्हें प्रसिद्धि दिलवाई है। हमें भी यह कार्य बढ़-चढ़ कर करना होगा। आज अंचल का घाघरा,पिछोडा,ऐपण सब जगह पहुच गया है, जो सुखद लगता है।

मंचित लोकगीत व नृत्यों मे, माठु माठु…,मि लागी सुवा घुट घुट बाटुई लागि….,नंदा देवी डोला,घुघुति घुराण लागि…,थल की बजारा…,ओ भिना कसके जानू द्वारहटा….,तेरो लहंगा के भल छाजी रो…,पिंक पलाजो, रंगीली बिंदी घाघर काई…बेडू पाको बारमासा…,घास कटुलु ईजा….,मेरा डांडी कांठी का मुलूक….,मांछी पाणी सी…,लागलू मंडाल…,भल लागूदो म्यर मुलूक…,ह्यून को दिना…,झोडा-‘ओ गंगा सरस्वती ऐ गै छ बागेश्वरा’ तथा सु-प्रसिद्ध गायिका चंद्रकांता सुंदरियाल द्वारा प्रस्तुत लोकगीतों में श्रोताओं को नाचने-गाते व झूमते हुए देखा गया।
प्रस्तुत लोकगीतों का संगीत निर्देशन नरेन्द्र सिंह ‘अजनबी’ द्वारा तथा रंगारंग सांस्कृतिक आयोजन का प्रभावपूर्ण मंच संचालन कुमांऊनी व गढ़वाली बोली-भाषा में भावना धौलाखंडी व मीना पांडे द्वारा बखूबी किया गया।
रिपोर्ट-सी एम पपनैं