
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र देहरादून के तत्वावधान में डॉ.उमेश चमोला की पुस्तक ‘उत्तराखंड की एक सौ बालोपयोगी लोककथाएँ’का लोकार्पण दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में सम्पन्न हुआ। लोकार्पण के बाद पुस्तक पर चर्चा की गई। लोकार्पण और चर्चा कार्यक्रम में शिव प्रसाद सेमवाल,मुकेश नौटियाल,डॉ.नन्द किशोर हटवाल,बीना बेंजवाल,रमाकांत बेंजवाल और राकेश जुगरान ने भाग लिया।

साहित्यकार और शिक्षा अधिकारी शिव प्रसाद सेमवाल ने डॉ.उमेश चमोला को बधाई देते हुए कहा कि उनका प्रयास नई पीढ़ी को लोक संस्कृति से जोड़ने की दृष्टि से सफल होगा। उन्होंने कहा जहाँ लोक कथाएँ हमें किसी समाज का आइना दिखाती हैं वहीं यह लोक के समाज शास्त्र को समझने की दृष्टि से भी उपयोगी होती हैं। कथाकार मुकेश नौटियाल ने कहा कि लोक कथाएँ हमारे समाज की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करती है। यह अन्य कहानियों के लेखन के लिए आधार का भी कार्य करती है।
पुस्तक के लेखक डॉ.उमेश चमोला ने कहा कि उन्होने अब तक 23 पुस्तकें लिखी हैं जिनमे से लोक कथाओं की उनकी यह चौथी पुस्तक है। उन्होंने कहा कि इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने 300 से अधिक लोक कथाओं को प्रकाशित किया है। उनका प्रयास लोक कथाओं के माध्यम से नई पीढ़ी को लोक संस्कृति से जोड़ना है। डॉ.नन्द किशोर हटवाल ने कहा कि वर्तमान दूर संचार तकनीकी के दौर में लोक कथाओं का संकलन करना आवश्यक हो गया है। आज लोक कथाओं को सुनने और सुनाने की परम्परा समाप्त होती जा रही है। इसलिए प्रिंट माध्यम से इनका संकलन कर इनका संरक्षण करना महत्वपूर्ण है।
भाषाविद रमाकांत बेंजवाल ने कहा कि लोक कथाएँ हमारी संस्कृति,रीतिरिवाज और परम्पराओं की वाहक होती हैं। लोक में प्रचलित आभूषण,क़ृषि,वस्त्र आदि से सम्बंधित कई शब्द लोक कथाओं में व्यक्त होते हैं। लोक कथाओं के लुप्त होने पर इन शब्दों के लुप्त होने का भी खतरा है। शिक्षाविद और साहित्यकार राकेश जुगरान ने कहा कि कहानियां प्राचीन काल से ही बच्चों का प्रिय विषय रही हैं। यह बच्चों के मानसिक विकास की दृष्टि से भी उपयोगी होती हैं। इसलिए डॉ.चमोला का यह प्रयास बच्चों के हित में है। साहित्यकार बीना बेंजवाल ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि लोक कथाएँ लोक संस्कृति की अनोखी धरोहर होती हैं। इसलिए लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए आज की परिस्थितियों के अनुरूप लोक कथाओं को संकलित किए जाने पर जोर दिया जाना चाहिए।
कार्यक्रम के संयोजक दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के विशेषज्ञ चंद्र शेखर तिवारी ने कहा कि दून पुस्तकालय और शोध केंद्र का उद्देश्य पुस्तकों के माध्यम से शोध को बढ़ावा देना है जिससे विभिन्न क्षेत्रों में शोध करने वालों को संसाधन मिल सके। काव्यांश प्रकाशन के प्रबोध उनियाल ने कहा कि श्रेष्ठ पुस्तकों के प्रकाशन के माध्यम से उनका प्रकाशन पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि डॉ.चमोला की पुस्तक के माध्यम से बच्चों को अपनी संस्कृति को जानने का अवसर प्राप्त होगा।