चप्पा-चप्पा हरा करेंगे, हरियाली से धरा भरेंगे”,” सुनो हरेला का संदेश, हरा भरा हो मेरा देश”क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार” हरेला पर्व को मनाने देहरादून की सड़कों पर जब आम समाज और स्कूली छात्र हरेला स्वागत मार्च लेकर निकले,तो सहसा ही पूरे वातावरण में हरेला के हरेपन का अह्सास होने लग गया।
- हरेला स्वागत में लोक कलाकारों और छात्रों ने किया थडिया चौंफला और खाई झंगोरे की खीर।
- एक माह तक चलने वाले धाद के आयोजन हरेला घी संग्रान्द में जुड़ने की हुई अपील।
धाद की पहल पर आम नागरिकों और स्कूली बच्चों ने देहरादून की सड़कों पर हरेला स्वागत मार्च निकालकर चौमास के इस अनूठे लोकपर्व का स्वागत किया। इस स्वागत मार्च में स्कूली बच्चों के साथ साथ संस्कृतिकर्मी,विभिन्न सामाजिक संगठन और आम नागरिक भी शामिल हुए।
हरेला स्वागत मार्च को पद्मश्री माधुरी बड़थ्वाल ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस मौके पर माधुरी बड़थ्वाल ने अपने चिरपरिचित अंदाज में हरेला के झुमैलो और थड़्या लोकगीतों को गाया।
तुंगनाथ मंदिर में चौसठ ताल नौबत बजाने वाले ढोली स्वर्गीय ओंकारदास के पुत्र अखिलेश दास ने अपने ढोल की नाद के साथ हरेला स्वागत मार्च को न सिर्फ लीड किया, साथ ही साथ पूरे वातावरण को हरेलामय कर दिया। हाथीबड़कला की टीम ने भी मार्च के साथ साथ चलते हुए झुमैलो और थड्या नृत्य किया। बच्चों और आम नागरिकों ने अपने नारों से आम समाज को पर्यावरण संरक्षण उसकी उपयोगिता और जरूरत के बारे में समझाया। बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था।
मार्च इंटर कॉलेज डोभाल वाला नैशविला रोड से गांधी पार्क पहुंचा जहाँ सामूहिक थडिया नृत्य का आयोजन हुआ उसके पश्चात रैली घण्टाघर से फिर कॉलेज पहुंची।
हरेला स्वागत मार्च गांधी पार्क में एकत्रित हुआ। धाद नाट्य मण्डल के सचिव पंकज उनियाल को श्रध्दनजली दी गयी। आयोजन की मुख्य अतिथि डॉ माधुरी बड़थ्वाल ने कहा कि लोकसंस्कृति की ताकत को पहचानना जरूरी है इसमे सदियों की मनुष्य परम्परा निहित है। धाद ने हरेला में लोक संस्कृति को आधार बनाकर पहल की यही कारण है कि आज हरेला का फैलाव व्यापक हो गया है।
कॉलेज के प्रधनाचार्य सुरेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा कि हरेला को स्कूलो के रास्ते जीवन में ले जाने का प्रयोग सरहनीय है। क्योंकि इससे नई पीढ़ी को हम उनके समाज और संस्कृति से परिचित करवाते है। उन्होंने कहा कि अगर सभी छात्र जन्मदिन पर पौधे लगाए और उसकी रक्षा करें तो नई दुनिया बन सकती है।
धाद के महासचिव तन्मय ममगांई ने सभी को हरेला पर्व की बधाई देते हुए कहा कि धाद 2010 से लगातार हरेला को सार्वजनिक रूप से समाज और शासन में ले जाने के प्रयासों का ही नतीजा है कि हरेला को उत्तराखंड के राजकीय पर्व के रूप में मान्यता मिल चुकी है। अब समय आ गया है कि हरेला प्रदेश से आगे निकलकर देश दुनिया मे पहुंचे।
इसके वैचारिक पक्ष पर विभिन्न विशेषज्ञों के साथ विमर्श के आयोजन के साथ हरेला-घी संग्रान्द के विचार को राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक लेकर जाने के लिए प्रयास किये जा रहे है। इस वर्ष विभिन्न टीमों के माध्यम से प्रवासी उत्तराखंडी समूहों, संगठनों और व्यक्तियों से हरेला मनाने और उत्तराखंड हिमालय के अन्न और व्यंजन बनाकर उसे मनाने की अपील की गई है।
धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने अपने संबोधन में कहा कि हरेला पर्यावरण संरक्षण से बहुत आगे का विचार है और इसमें अंतर्राष्ट्रीय अपील है। हमारे समाज का यह पर्व दुनिया का शायद एकमात्र ऐसा त्योहार है जहॉं पौधे लगाना संस्कृति का अभिन्न अंग है। जिससे पर्यावरण के सभी घटक अधिक लाभान्वित हो सकेंगे।
आयोजन का स्वागत कॉलेज के अर्जुन सिंह नेगी ने किया और धन्यवाद रैली की संयोजक आशा डोभाल और नीना रावत ने ज्ञापित किया। आयोजन का संचालन सुशील पुरोहित ने किया।
इस अवसर पर राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती,सतेंद्र भंडारी,प्रतीक पंवार,दयानद डोभाल मनोहर लाल गणेश चन्द्र उनियाल,विजय जुयाल, हर्षमणि व्यास,आशा डोभाल,नीना रावत,शांति प्रकाश,कल्पना बहुगुणा, मंजू काला,गणेश उनियाल,बृजमोहन उनियाल,साकेत रावत,सुशील पुरोहित,सोहनलाल अमोली,इंदू भूषण सकलानी,पुष्पलता ममगाईं, सविता जोशी,बीना कंडारी,कुलदीप कंडारी,तोताराम ढौंडियाल,सुदीप जुगरान,देवेंद्र जोशी,विनोद कुमार,शुभम,अर्चना ग्वाड़ी,स्वाति डोभाल, सुधा बहुखंडी,पिंकी बिष्ट,सारिका राणा, मुकेश ढूंढियाल मौजूद थे।
इंटर कॉलेज डोभालवाला में लगेगी लोकसंस्कृति की कार्यशाला
हरेला में हरियाली के साथ उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति के लिए भी काम करने की पहल के अंतर्गत डॉ माधुरी बड़थ्वाल ने इंटर कॉलेज डोभालवाला में लोकसंस्कृति कार्यशाला के प्रस्राव को सहमति देते हुए इसमें नई और वरिष्ठ पीढ़ी को जुड़ने की अपील की।
अन्न हिमालय का अपनाये की मुहिम में आज सबने खाई झंगोरे की खीर,अन्न हिमालय का अपनाये के अंतर्गत आज कैफे रिसाइकिल द्वारा झंगोरे की खीर सभी बच्चों को परोसी गयी। कैफे की तरफ से स्वाति डोभल ने बताया कि दूध और पर्वतीय अन्न झंगोरे के साथ बनाया जाने वाला यह भोजन स्वादिष्ट होने के साथ कम कैलोरी वाला भी है इसलिए इसे लोग बहुत पसंद करते है।