मङ्गलाचरण श्लोक,जो मनुष्य के सत्कर्मों में आने वाले विघ्नों का करता है निवारण

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आचार्य शिवप्रसाद ममगाईं, ज्योतिष पीठ व्यास पद से अलंकृत

मंगल आचरण को मंगलाचारण कहतें हैं यह भागवत जी का प्रथम श्लोक मंगलाचरण  है। जिस ब्रह्म  को जाननें में  बड़े ज्ञानी ध्यानी व्यामोहित हो जाते हैं। तेजी वारी यानी सूर्य की किरणें जब वसुंधरा  पर पडते हैं। तो जल की भ्रांति होती है ठीक उसी तरह संसार मेरा है। यह हमारी भ्रांति है यह श्लोक  कहता है।

जनमाद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चर्थेष्बभिज्ञः स्वरात्

तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यंति यत्सूरयः।

तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा

धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि।।

सत्कर्मों में अनेक विघ्न आते हैं। उन सभी के निवारण के लिए मङ्गलाचरण की आवश्यकता है। कथा में बैठने से पहले भी मङ्गलाचरण करो।

शास्त्र कहते हैं कि देवगण भी सत्कर्म में विक्षेप करते हैं। देवों को ईर्ष्या होती है कि नारायण का ध्यान यह करेगा तो यह भी अपने समान ही हो जाएगा। अतः देवों से भी प्रार्थना करनी आवश्यक है। – हे देवो! हमारे सत्कार्य में विक्षेप न करना।  सूर्य हमारा कल्याण करें, वरुण देव हम पर कृपा करें।

जिसका मङ्गलमय आचरण है, उसका ध्यान करने से, उसे वंदन करने से, उसका स्मरण करने से मङ्गलाचरण होता है। जिसका आचरण मङ्गल है, उसका मनन और चिंतन करना ही मङ्गलाचरण है। ऐसे एक परमात्मा है। श्रीकृष्ण का नाम और धाम मङ्गल है। संसार की किसी वस्तु या जीव का चिन्तन न करो। ईश्वर का चिन्तन-ध्यान मनुष्य करें तो उसकी शक्ति मनुष्य को मिले।

क्रिया में अमङ्गलता काम के कारण आती है। काम जिस को स्पर्श करे, जिसे प्रभावित करें उसका सब कुछ अमङ्गल होता है। श्रीकृष्ण को काम स्पर्श नहीं कर सकता। अतः उनका सभी कुछ मङ्गल है। जिसके मन में काम हो, उसका स्मरण करने से, उसका काम तुम्हारे मन में भी आएगा। सकाम के चिन्तन से अपने में  सकामता आती है और निष्काम के चिन्तन से मन निष्काम बनता है।शिव जी का सब कुछ अङ्गल है, फिर भी उनका स्मरण मङ्गलमय है क्योंकि उन्होंने काम को जलाकर भस्मीभूत कर दिया है। मनुष्य जब सकाम है, तब तक उसका मङ्गल नहीं होता।

ईश्वर पूर्णतः निष्काम है अतः उनका ध्यान धरो, स्मरण करो। परमात्मा बुद्धि से परे है। श्रीकृष्ण का ध्यान करने वाला निष्काम बनता है। श्रीकृष्ण का सतत ध्यान न हो सके तो कोई आपत्ति नहीं है किंतु जगत् के स्त्री-पुरुषों का ध्यान कभी ना करो। थोड़ा-सा सोचने से ख्याल में यह बात आ जाएगी कि मन क्यों बिगड़ा हुआ है। संसार का चिंतन करने से मन विकृत होता है। प्रभु का चिंतन-स्मरण करने से मन सुधरता है।

जीव अमङ्गल है, प्रभु मङ्गलमय हैं। मनुष्य की कामवृत्ति नष्ट हो जाय तो सब कुछ मङ्गल हो जाता है। जो काम के अधीन नहीं है, उसका सदा मंगल ही होता है।यही हमारे  जीवन का लक्ष्य  ईश्वर  से प्रेम और संसार की सेवा करना है  हम उल्टा करते हैं सेवामें दिखावा प्रेम संसार को तो इससे हमेशा भ्रम को बढ़ावा मिलता है तब हम भटकें लगते हैं।।