आज देश में चारों तरफ शहरों से लेकर सुदुर गांव देहातों तक कोरोना नामक दैत्य ने तांडव मचा रखा है। कई असहाय और नौजवान असमय काल का ग्रास बन रहे हैं। महानगरों में तो लोगों के पास लगभग सभी सुविधाएं हैं, जिसकी वजह से वे अपने परिजनों को समय रहते हॉस्पिटल या डॉक्टरी सलाह लेकर आइसोलेशन में रखकर कुछ हद तक बचाव कर पा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ सुदुर पहाड़ी इलाकों में जहां हॉस्पिटल और दवाई तो दूर कई-कई किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है, वहां कोई अपने परिजनों को इस महामारी से कैसे बचा पाएगा, बहुत असमभव काम है।
सरकार चाहे राज्य की हो या फिर केंद्र की, वह तो सरकारी फरमान जारी करके अपनी इतिश्री समझ लेती है, मरना तो आम इंसान को पड़ता है, जिस पर बीतती है। जिन लोगों को इस महामारी से दो-चार होना पड़ाता है। उनकी आप बीती सुनकर आप दांतों तले उंगुली दबाकर रह जाएंगे। अभी हाल ही में सोशल मीडिया के माध्यम से कई ऐसी दिल दहलाने वाली तस्वीरें और वीडियों सामने आएं है। इनमें से एक तस्वीर ने सबको अपनी ओर खींचा था। जिसमें एक महिला अपने बुजुर्ग ससुर को पीठ पर लादकर कई किलोमीटर की पैदल यात्रा करके हॉस्पिटल ले जाती हुई दिखाई दे रही थी। आगे क्या हुआ भगवान जाने। हॉस्पिटलों की हालत जब दिल्ली,मुंबई जैसे महानगरों में भी बदतर से बदतर हैं तो,गांव कस्बों की तो बात ही मत पूछिए, वहां तो न डॉक्टर और न ही कोई दवाई, सब राम भरोसे चल रहा है। आरटीपीसीआर रिपोर्ट के लिए भी वहाँ आपको कोसों दूर जाना पड़ता है और फिर रिपोर्ट भी कई दिन बाद आती है। तब तक तो मरीज भगवान को प्यारा हो जाएगा।
अधिकांश लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा चलाया गया टीकाकरण अभियान भी ऊंट के मुँह में जीरा ही साबित हो रहा है। पहली डोज देने के बाद समयावधि बढ़ाने के बाद भी टीकों का टोटा हो गया है। हर केंद्र पर मारामारी हो रही है। यह हाल गांव देहातों का ही नहीं महानगरों की भी यही स्थिति है। इस बढ़ाए गये समयांतराल यानि 12 से 16 हफ्ते पर सरकार कई तरह के तर्क दे रही है, लेकिन असलियत क्या है इसके बारे में तो सरकार ही बता सकती है। ऐसे संकट के समय में ‘मोहन काला फाउंडेशन’ तथा ‘उत्तराखंड क्रान्ति दल’ ही ऐसा है। जो देवदूत बनकर क्षेत्रवासियों को अपने कर्मठ स्वयं सेवकों द्वारा इस महामारी में भरपूर सहायता कर उन्हें इस दुःख से उबार रहा है। श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र का हर गांव और पट्टी चाहे वह चौथान, चोपड़ा-कोट, ढाईज्यूली, कन्डारस्युं, बाली कन्डारसयुं, क़टूलसयूँ, चलणस्यूँ, ढ़ौंडालस्युं और घुड़दौड़स्यूं, हर गांव में अपने स्वयंसेवकों तथा कार्यकर्ताओं द्वारा निःशुल्क दवाइयों का वितरण करावा रहे है।
‘मोहन काला फाउंडेशन’ के स्वयम् सेवकों और उत्तराखंड के कार्यकर्ताओं की बात करें तो इनमें दिन-रात निःस्वार्थ सेवा भाव से श्रीनगर विधान सभा में लगे,प्रकाश ढ़ौंड़ियाल, दीपक कंडारी, दिनेश रावत, विनोद ढ़ौंड़ियाल, खीम सिंह भण्डारी, डॉक्टर जगदीश रावत, हीरा सिंह राणा, नवीन जोशी, बलवन्त सिंह, मनवर चौहान, देवेश डोभाल, युद्धवीर रावत, दीपक भण्डारी, सानी बहुगुणा, शंकर कुमार, शुभम बहुगुणा, अतुल जोशी, मुकुल काला, हीरा सिंह रावत, सुनील रावत, जगदंबा काला, राज किशोर नेगी, अरविन्द नयाल, बलदेव सिंह, पूरण सिंह राणा, हीरा सिंह राणा, अनिल कुमार आदि के जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए। जो इस संक्रमण के दौर में भी अपने जीवन की परवाह किए बगैर,श्रीनगर विधान सभा के लाखों लोगों की सेवा के लिए संर्पित है।
इन स्वयम् सेवकों और कार्यकर्ताओं की परिकल्पना के केंद्र में ‘मोहन काला फाउंडेशन’ के अध्यक्ष एवं ‘उत्तराखंड क्रांति दल’ के नेता मोहन काला जो अपनी इस टीम के साथ हर तरह से निःस्वार्थ भाव से क्षेत्रवासियों की मदद करने में लगे हैं। वह भी ऐसे समय में जब सरकारी मदद लोगों तक नहीं पहुंच रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। आखिर पार्टी ने ऐसे मौके पर उनके गले में घण्टी बांधी है कि उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा है। वे इस आपदा से प्रदेशवासियों को कैसे बचाएं उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा है।
इस आपदा ने साबित कर दिया है कि मोहन काला जैसे कर्मठ, ईमानदार, दयालु और निर्भीक जन प्रतिनिधि ही उत्तराखंड और अपने क्षेत्र का चहुमुखी विकास कर जनता के सपनों को साकार कर सकता है। मोहन काला क्षेत्रवासियों की हर गतिविधि और परेशानी को जानते समझते हैं अन्यथा देहरादून या दिल्ली में बैठे जनप्रतिनिधियों को गांवों की परेशानी से क्या लेना देना, लेकिन काला जी जमीन से जुड़े हैं और हरेक की परेशानी समझते हैं। क्षेत्र के लोगों को भी चाहिए कि ऐसे निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले कर्मवीर को अपना जनप्रतिनिधि चुनें, जिससे जाकर वे आसानी से अपनी पीड़ा बता सकें।
मोहन काला फाउंडेशन ने ऐसे समय सेवा के पथ पर चल रहा है। जब पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है। इस बीच ताऊ ते तूफान ने लोगों में भय पैदा कर दिया है। ऐसे संकट के समय में जब मोहन काला फाउंडेशन जैसी संस्था और मोहन काला जैसी शख्सियत पहाड़ के साथ खड़ी हो तो निश्चित तौर हम बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकते है। उत्तराखण्डियों की दिलोजान से मदद करने में आगे,मुंबई महानगर जहाँ तूफान का कहर जारी है। उन्हें वहाँ से बसों में बैठाकर उनके पैतृक गांव तक पहुंचाने में दिन रात एक करना। ऐसे देवभूमि के पुत्र की बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ मनोकामना पूर्ण करें। ऐसे कर्मठ लोग ही उत्तराखंड को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में समर्थ होंगे। लगता है उत्तराखंड क्रांति दल को इन कर्मवीरों से नई ऊर्जा और प्रोत्साहन मिलेगा और पार्टी नए आयाम हासिल करने में कामयाब होगी।