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नौ सूत्रीय मांगों को लेकर प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने वाले विपक्षी नेताओं में कोरोना संकट से जूझ रही केंद्र सरकार की मदद करने में कहीं कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई देती है अपनी नौ सूत्रीय मांगों में तीनों नए कृषि कानून रद करने जैसे सुझावों से पता चलता है कि विपक्षी दल इस संकट काल में न तो राजनीतिक एकजुटता का परिचय देने को तैयार है और न ही इस महामारी में अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार है।
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कोरोना संक्रमण से उपजे भीषण संकट के समय विपक्ष के नेताओं को किस तरह सस्ती राजनीति करने की सूझ रही है,अपनी नौ सूत्रीय मांगों को लेकर एक दर्जन विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से प्रधानमंत्री को लिखी गई चिट्ठी से पता चलता है। इस चिट्ठी को नेक इरादों से लिखने का दिखावा करने के लिए भले ही उसमें टीकाकरण अभियान तेज करने, टीकों की उपलब्धता बढ़ाने और जरूरतमंदों को अनाज उपलब्ध कराने जैसे सुझाव दिए गए हों,लेकिन सेंट्रल विस्टा का काम रोकने और नए कृषि कानून रद करने जैसे सुझावों से विपक्षी दलों के संकीर्ण इरादों की पोल ही खुलती है। प्रधानमंत्री को लिखी गईं चिट्ठी कुल मिलाकर यही बताती है कि विपक्षी दल इस संकट काल में भी न तो राजनीतिक एकजुटता का परिचय देने के लिए तैयार हैं और न ही अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए।
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हैरानी नहीं कि विपक्षी अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए ही यह सब कर रहे हों,क्योंकि तथ्य यही है कि जैसे केंद्र सरकार इसका अनुमान नहीं लगा सकी कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर इतनी भयावह होगी,वैसे ही वे राज्य सरकारें भी,जिनके मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री को लिखी गई चिट्ठी में हस्ताक्षर किए हैं। हस्ताक्षर करने वालों में ऐसे भी नेता हैं,जो कल तक कोविड रोधी टीके को भाजपा की वैक्सीन बताकर उसे लगवाने से इन्कार कर रहे थे।
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इससे शर्मनाक बात और कुछ नहीं कि इतने गहन संकट के समय कुछ प्रमुख विपक्षी दल राजनीतिक रोटियां सेंकना पसंद कर रहे हैं। उन्हें बताना चाहिए कि आखिर सेंट्रल विस्टा का काम रोकने से कोरोना के कहर से निपटने में कैसे मदद मिल जाएगी? यदि वे यह संकेत करना चाहते हैं कि जो पैसा कोरोना संकट का मुकाबला करने में लगना चाहिए,वह सेंट्रल विस्टा के निर्माण में खप रहा है तो यह लोगों को गुमराह करने वाली शरारत के अलावा और कुछ नहीं। यदि सेंट्रल विस्टा का काम रोक दिया जाता है तो उसके निर्माण में लगे मजदूरों के पेट पर लात ही पड़ेगी। क्या विपक्षी नेता यही चाहते हैं? अब सवाल यह भी है कि क्या ऐसा होने से कोरोना का संक्रमण थम जाएगा?
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प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में कोरोना संकट से जूझ रही केंद्र सरकार की मदद करने में कहीं कोई दिलचस्पी नहीं, इसका पता तीनों नए कृषि कानून रद करने के उनके सुझाव से भी लगता है।अब प्रश्न खड़ा होता है कि क्या इन कानूनों के कारण सम्पूर्ण देश में कोरोना फैल रहा है? हो सकता है कोरोना लम्बे समय से बोर्डर पर उन कथित किसान नेताओं के सड़क पर बैठने से फैल रहा,जो संक्रमण के खतरे के बाद भी धरना खत्म करने को तैयार नहीं। आखिर यह राजनीतिक बेईमानी नहीं तो और क्या है कि विपक्ष इन अड़ियल नेताओं को धरना खत्म करने के लिए नहीं कह सका?