भटक रहा हैमेरा ये मन,
ऊँची-नीची बातों में।
संयम रहा न मन मेरे,
विपरीत हालातों में।।
ईश्वर सत्ता साथ हैं मेरे,
जीवन की हर साँसों में।
मैं न डरूंगा,मैं न डिगूंगा,
इन सारे झंझावातों में।।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर इस समय सम्पूर्ण भारत वर्ष में एक भयानक चुनौती बनकर खड़ी है। महामारी की संक्रामणता एवं भीषणता पहले की अपेक्षा बहुत ही गम्भीर है।इसकी क्रूरतापूर्ण मार आज देश के सभी भागों को झेलनी पड़ रही है। प्रतिदिन चार लाख तक संक्रमित स्वास्थ्य उपचार के लिए चिकित्सालयों में भर्ती तथा हजारों की संख्या में संक्रमित इस संक्रमण की भयावहता में अपनी जानें भी गंवा रहे हैं।
विश्व की सबसे बड़ी महामारी से लड़ने के लिए देश में राज्य सरकारों द्वारा दो गज की दूरी,मास्क है जरुरी,कर्फ्यू,साप्ताहिक लॉक डाउन जैसे प्रयोगों द्वारा जानमाल की सुरक्षा के लिए एकान्तवास में घर पर रहने की अपील की जा रही है। कोरोना महामारी से निपटने का यह वक्त प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भूमिका के सुचारु निर्वाहन का हैं। चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए घर पर रहकर समय व्यतित करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आसान नहीं होता। परिवार में सभी के लिए हँसी-ख़ुशी का वातावरण हो तो समय उत्तम भाव से व्यतित हो जाता हैं,परन्तु लम्बे अन्तराल के लिए एकांतवास में समय व्यतीत करना मनुष्य के लिए ऐसा समय बहुत सी नकारात्मकता के भाव उत्पन्न करता हैं।सकारात्मकता” कोरोना युध्द का हथियार विषय पर मैं लिख जरूरत रहा हूँ लेकिन अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी में मुझे अपने लिए अपने अंदर छुपी प्रतिभा के लिए इस एकान्तवास में वक्त, वातावरण और परस्थितियाँ अनुकूल मिल पा रही हैं।
कोरोना वायरस हमारे जीवन को इस कदर प्रभावित करेगा। यह कभी सोचा भी नहीं था। घर पर रहने की आदत नहीं ! जीवन में टेलीविज़न का महत्व इतना बढ़ गया हैं कि थोड़े से फुर्सत के क्षण आते ही टी.वी. के सामने बैठ जाते हैं। लगातार आये दिन समाचारो में लाखों की संख्या में कोरोना संक्रमित और समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में प्रतिदिन हजारों की संख्या में अपनी जानें गवाने वाले प्रभावितों के बारे में सुन-सुनकर मन में क्षणिक भय तो होता ही हैं। सब कहते हैं सकारात्मक भाव रखो और वह रखना जरुरी भी हैं। सुनी सड़के,सुनी गलियां भरी दोपहरी में रात के सामान सुनसान वातावरण मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न कैसे करेगा ?
अगर हम संचार माध्यमों की बात करें तो आज देश में हर घर में संचार के माध्यम उपलब्ध हैं।इस कोविड काल में हम एकान्तवास में जरुर हैं परन्तु यह समय हमारी अपनी ज्ञान क्षमता बढ़ाने का महत्वपूर्ण समय हैं। हम अपनी रूचि के कार्य ऐसे समय में पूरा करे जैसे – योगाभ्यास,गायन,पाककला,कविता लेखन, कहानियां/उपन्यास/लेख का लेखन या पठन आदि विषयों के साथ जिन्हे गाने सुनने फ़िल्में देखने का शौक हो और सामान्य जीवन में समय की कमी के कारण पूरा नहीं कर पाते हो लॉक डाउन के इस फुर्सत के समय में समय का सदुपयोग कर घर पर बैठकर पूरा कर सकते हैं।अब समय बदल चूका हैं।
आजकल इस कोविड महामारी में हमारा काम Work Form Home यानि घर पर बैठकर कार्य करने का चलन बहुत बढ़ गया है। प्रत्येक स्कूल, कालेज, कार्यालय एवं अन्य सभी सरकारी,गैर सरकारी प्रतिष्ठान Online services में या घर बैठकर लैपटॉप या डेस्कटॉप पर बैठकर देश-विदेश की सेवाओं में कार्यरत कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। इन दिनों विद्यार्थियों को ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से शैक्षेणिक कार्य भी पूर्ण करवाया जा रहा हैं, इन सब बातों से एक ही बात निकलकर आती हैं कि संक्रमक रोग की जो दहशत आम जन में हैं उसे दहशत न मानकर स्वेच्छिक रूप से स्वीकार करना चाहिए। सरकार का यह कदम रोग के बचाव का एक बड़ा उपाय हैं। राष्ट्रभक्तों की देश में कोई कमी नहीं हैं। हम घर में बैठकर यदि संक्रमण को बढ़ने से रोक सके तो भी इस समस्या से निजात पा सकेंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुडी एक संस्था ने अपने सर्वे में बताया के कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए लॉक डाउन की जो परिस्थिति निर्मित हुई हैं उससे अवसाद यानी डिप्रेशन के मरीज़ के संख्या में 20% का इजाफा हुआ हैं। कई स्थानों पर शहरों में रहने वालें विद्यार्थी या नौकरी पर रहने वाले व्यक्ति या जिनके बच्चे नौकरी या अन्य कारणों से बाहर हो ऐसे बुजुर्ग अकेलापन महसूस कर रहे हैं।
पिछले वर्ष लॉक डाउन में हमने 5 अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनिट पर असंख्य दीपकों के प्रकाश में सम्पूर्ण देश को एकत्रित किया। जो कि मनुष्य से मनुष्य को जोड़ने और देश में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम था। मनुष्य के मन में सकारात्मक ऊर्जा के संचार से कई शारीरिक और मानसिक व्यधिया दूर हो जाती हैं। कोरोना वायरस की ही नहीं जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में सकारात्मकता ही उन्नति के शिखर की ओर ले जाती हैं।