
हमारी पीढ़ी के अधिकांश नागरिकों ने विनोद दुवा को पत्रकारिता, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारिता के भीष्म पिता के रूप में ही देखा है। हांलांकि प्रसार भारती के अस्तित्व में आने के बाद जब स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भारत में प्रवेश कर रहा था। तब दूरदर्शन में न्यू दिल्ली टेलीविजन के अपने कार्यक्रम के साथ समाचार, राजनीतिक विश्लेषण और चुनाव की समीक्षा के कार्यक्रमों की बेहतर और निष्पक्ष प्रस्तुति के साथ, विनोद दुआ भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए भविष्य की राह स्थापित कर रहे थे।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपना कैरियर प्रारंभ करने से पहले आप प्रिंट मीडिया और उससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में हंसराज कॉलेज से m.a. की डिग्री लेने के दौरान छात्र राजनीति के भी चर्चित चेहरे रहे, सत्ता प्रतिष्ठान से सीधा सवाल करना आपका मूल स्वभाव था। जो आपने अपने कैरियर के आखिरी क्षण तक नहीं छोड़ा जून 2021 में आप के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह का मामला पंजीकृत हुआ जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्टे किया है।
भारतीय पत्रकारिता के लिए भी कोरोना की दूसरी लहर बहुत नकारात्मक रही, जिसने कई रीढधारी पत्रकारों को हम से जुदा किया, कोरोना की इस दूसरी लहर में आपके सपत्नीक कोरोना पाजीटिव हो जाने के बाद जून में आपकी पत्नी का कोरोना से देहांत हो गया था, हालांकि तब विनोद दुआ स्वस्थ होकर घर आ गए थे ,लेकिन वह पूरी तरह स्वस्थ शायद नहीं हो पाए थे ।
इसी कारण वह अपने इश्क पत्रकारिता से फिर वैसे कभी नहीं जुड़ पाए, हम जैसे लाखों उनके चाहने वाले उनके कार्यक्रमों से तब से लगातार वंचित चल रहे थे। 30 नवम्बर दिन में उनकी बेटी के इंस्टा ग्राम पोस्ट से कुछ अनहोनी के संकेत मिल रहे थे । 30 नवम्बर शाम होते – होते उनकी इस दुनिया से विदा होने की, अफवाह उड़ी,समाचार भी वायर हुए खंडन ।मगरआज 4 दिसम्बर की सायं यह हृदय विदारक सूचना फिर प्राप्त हो रही है।
विनोद दुआ जैसी विलक्षण एवं बहुमुखी प्रतिभा तथा मुखर संघर्ष के धनी व्यक्ति इतिहास में दुर्लभ संयोग से जन्म लेते है। इसी कारण वह जहां भी रहते हैं ,अपने अपने कार्य से हमेशा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं ।
1996 में उस दौर में साहसी पत्रकारिता के लिए आपको रामनाथ गोयन्का पुरस्कार से सम्मानित किया गया , पत्रकारिता में आपके योगदान के लिए 2008 में पद्मश्री प्राप्त हुआ । आपके बहुमुखी और विलक्षण प्रतिभा को एनडीटीवी में स्वाद इंडिया का खानपान पर आधारित कार्यक्रम से भी समझा जा सकता है ।
2008 के आसपास से जब से चुनिंदा कॉरपोरेट हाउसेस का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दखल प्रारंभ हुआ आप तब से मीडिया की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई दिए।
अपनी मृत्यु के आखरी साल स्वतंत्र पत्रकार और उसकी अस्मिता को बचाए रखने के लिए इस संकट के समय में भी आपने पत्रकारिता का बेहतर धर्म निभाया ,अपने धर्म की रक्षा करने के लिए आपको राजद्रोह के अभियोग का भी सामना करना पड़ा ,हालांकि सर्वोच्च न्यायालय से आपको राहत प्राप्त हुई। ऐसे दौर में जब सब कुछ नियंत्रित कर दिए जाने की इच्छा सत्ता प्रतिष्ठान की हो जब सत्य को अपनी दृष्टि से, अपने पक्ष में परिभाषित किए जाने व देखने की चाह रही हो ।
तब निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता की आवाज को बुलंद करने के लिए आपने मेन स्ट्रीम मीडिया के अलावा सोशल मीडिया के प्लेटफार्म ,यूट्यूब और फेसबुक पर पत्रकारिता को नए आयाम दिए, हाल के दिनों में “द वायर” H.W के लिए आपकी रिपोर्टिंग ऐतिहासिक रही है ।
अब जब निष्पक्ष और स्वतंत्र तथा साहसी पत्रकारिता के लिए देश में गिने-चुने का नाम रह गए हों, जब पत्रकारिता अपने स्वरूप को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हो ऐसे समय में आपका विदा हो जाना, निश्चित रूप से पत्रकारिता और स्वतंत्र सूचनाओं की चाह रखने वाले करोडो दर्शकों की एक उम्मीद के दीए का बुझ जाना जैसा है ।
विनम्र श्रद्धान्जली
आलेख-प्रमोद साह