कवि शिव जोशी के कविता संग्रह ‘रिक्त स्थान और अन्य कविताएँ’ नवीन विश्लेषण से लैस रूढ़ियों-परंपराओं को विवेक और तर्क की कसौटी पर कसती है

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ललित मोहन रयाल

कवि शिव जोशी के कविता संग्रह ‘रिक्त स्थान और अन्य कविताएँ’ की प्रतिनिधि कविता ‘रिक्त स्थान’ कवि मंगलेश डबराल के अवसान से हुए रिक्त स्थान पर लिखी गई है। भले ही उन्होंने अपनी कविता में समकालीन अंतर्दृष्टि का उपयोग किया हो, तो भी उनका विन्यास अत्यंत कलात्मक है। उनका रचना-विधान पर्याप्त सुविचारत है। ऐसे में यह जानने की सहज ही जिज्ञासा हो उठती है कि उनकी कविता में आखिर ऐसा कौन सा तत्त्व है, जिससे उनकी कविता आसानी से समसामयिक चिंतन का अंग बन जाती है।

उन्होंने संग्रह का समारंभ बारामासी से किया है,लेकिन यह  प्रयोग परंपरागत रचना-विधान से भिन्न है। उनकी कविताओं में ऋतु-वर्णन नए कलेवर में दिखाई पड़ता है। यहाँ कुदरत के बाहरी वातावरण को नहीं अपितु इंसान के अंतर्मन में होने वाले परिवर्तनों को रेखांकित किया गया है।

संग्रह में बदहाल होती समरसता पर ‘कोशिश’ शीर्षक से कविता है। दुनिया में घटित नरसंहारों पर कवि की टिप्पणी दृष्टव्य है-

‘स्पंज वाली गेंद की तरह यहाँ से वहाँ कूदती-फाँदती है मृत्यु.’

उन्होंने ‘साइकिल’ पर ग्रीक मिथक एटलस से लेकर आज तक होते परिवर्तनों पर एक समेकित कोलाज रचा है।

कवि ने तैराकी, आँछरियों, सपने में आई दादी, बर्फवारी,वरुणावर्त आदि विविध विषयों को कविता के लिए चुना है। बाल्यकाल के वे दृश्य जो कवि मन पर अंकित रह गए होंगे, उन्हें उन्होंने बड़ी आत्मीयता से कविता में स्थान दिया है। जहाँ एक ओर उन्होंने बहादुर, दर्जी, पेंटर, बच्ची को चिट्ठी, कामकाजी महिला, डेंगू,बजरंगी भाईजान और खेल-जगत को कविता की विषयवस्तु बनाया है, वहीं दूसरी ओर बड़े मामा बच्चीराम कौंसवाल, कवि को जाना है,शीर्षक से मंगलेश डबराल,विष्णु खरे, महाश्वेता देवी, धीरेश सैनी और लक्ष्मण को भी अपने खास अंदाज में याद किया है।

उन्होंने डाँट, मुलाकात, सपना, दुःख इत्यादि विषयों पर भी अंदर चल रहे आलोडनों को उकेरा है. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह परंपरागत अर्थों वाली कविता नहीं है, बल्कि यह नियंताओं से तीखे सवाल करती है.

संग्रह में उन्होंने संगीत के लिए अलग खाँचा रखा है. संगीत-घर, मालकौंस, अडाना, झिंझोटी, दरबारी, खयाल, पूरिया और अश्विनी भिड़े पर उन्होंने अपनी दृष्टि और अनुभव से शानदार लैंडस्केप खींचे हैं.

संग्रह में शामिल कविताओं को देखकर महसूस होता है कि कवि अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के प्रति सजग-सचेत हैं. दहशतगर्दी के बीच ‘एक प्रेमिका का शोक गीत’ शीर्षक की कविता आपको अंदर तक भिगो देती है।

कुल मिलाकर, कवि की दृष्टि विराट है और इन कविताओं में प्रमुख स्वर मानवता का है। संग्रह की कविताएँ लगभग तीन दशकों की गहमागहमी से उपजी हैं। भूमिका में कवि ने खुद स्वीकार किया है कि ये कविताएँ अंतर्मुखी हैं, जो मन की अंदरूनी दीवारों से बाहर न निकलने की ठाने बैठी थीं। इसी कारण समय के साथ-साथ इन कविताओं का मिजाज और सुर बदलता रहा है।

विविधतर प्रसंगों को उठाने के कारण इन कविताओं में विषय-वैविध्य बहुत ज्यादा है. लेकिन बुनियादी शर्त एक ही है, मानवता। उनकी कविता परंपरागत अर्थों में व्यंजित नहीं होती। इसके बरक्स यहाँ वितृष्णा है, क्षोभ है, फटकार है और आत्मग्लानि भी शायद इसीलिए कविता वार्तालाप करती है। सवाल उठाती है. आशा बँधाती है और मन को झकझोरती है।

कवि शिव जोशी ने बीते समय में दुनिया भर में घटित कुछ घटनाओं को कसौटी पर कसा है, जिसके चलते उनकी कविता सोचने-समझने की पुख्ता जमीन उजागर करती है। निस्संदेह नवीन विश्लेषण से लैस यह कविता रूढ़ियों-परंपराओं को विवेक और तर्क की कसौटी पर कसती है,रोमान और संघर्ष का रास्ता दिखाती है और आखिर में अंधेरे को भेद जाती है।

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