समाजसेवी विद्या महतोलिया वीरांगना तीलू रौतेली सम्मान से हुई सम्मानित

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हेमा उनियाल

उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान के तत्ववाधान में हर वर्ष उत्तराखंड की एक विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न महिला को वीरांगना तीलू रौतेली सम्मान इस बार हल्द्वानी की विद्या महतोलिया को दिया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें स्मृति चिह्न प्रस्तति पत्र व 21000/ रूपये की धन राशी उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान एवं सहयोगी संस्था कुसुमकांता पोखरियाल स्मृति न्यास के सहयोग से प्रदान किया गया।

कोरोना महामारी के कारण 8 अगस्त 2021 को होने वाला यह कार्यक्रम 29 अगस्त को वीरांगना तीलू रौतेली की 360 जयंती वर्ष के रूप में आयोजित किया गया। पूर्व की भांति इस वर्ष भी विद्वान जूरी सदस्यों ने पुरूषकृति प्रतिभागी का चयन किया। जिसमें अध्यक्ष संस्थान के पूर्व प्रशासक बी.लाल.शास्त्री की अध्यक्षता में हिन्दी अकादमी के पूर्व सचिव एवं वरिष्ठ लेखक डा.हरिसुमन बिष्ट,  वरिष्ठ साहित्यकार डा.हेमा उनियाल, डा.बैचेन कंडियाल, प्रसिद्ध रंगमंच निर्देशक हरि सेमवाल, साहित्यकार दर्शन सिंह रावत, प्रसिद्ध उद्घघोषक व रंगकर्मी बृजमोहन शर्मा ने बड़े गहन परीक्षण के तहत विद्या मैतोलिया का चयन किया।

इस अवसर पर कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि समाजसेवी व सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता संजय शर्मा दरमोडा ने संस्थान के प्रयासों को सराहाते हुए कहा कि इस तरह के आयोजन पहाड़ी की महिलाओं को विश्व सामाजिक पटल पर नई भूमिका में स्थापित ही नहीं करते,बल्कि पहाड़ की महिलाओं के संघर्षों को जीवंत भी करते है। जो हम के लिए प्रेरक है।

वीरांगना तीलू रौतेली सम्मान से सम्मानित हुई हल्द्वानी की विद्या महतोलिया को बधाई देते हुए श्री दरमोड़ा ने कहा कि यह हम सबका सम्माना है,पहाड़ का सम्मान और पहाड़ की संघर्षरत नारी का सम्मान है। इसके लिए संस्था और सभी सम्मानित महिलाओं को कोटि-कोटि बधाई देता हूं।

संस्थान के संरक्षक कुलदीप भण्डारी ने संस्थान द्वारा अपनी महान हस्तियों का आज की पीढ़ी से परिचय कराने की संस्थान की बचनबद्धता दोहराई। इस मौके पर वक्ताओं में सभी जूरी के सदस्यों के साथ संस्थान की अध्यक्ष संयोगिता ध्यानी, प्रशासक प्रेम रावत,  कार्यक्रम सचिव अरूण डोभाल, सलाहकार सुमित्रा किशोर,संगठन सचिव कुसुम चौहान को इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए बधाई दी। कार्यक्रम में गजेन्द्र चौहान,निर्देशक भगवान सिंह नेगी शामिल थे

संस्थान के संगीत निर्देशक कृपाल सिंह रावत के निर्देशन व उनके संगीत संगत सत्येन्द्र,संस्थान के कलाकार महेन्द्र रावत,प्रथम गढ़वाली फिल्म की नायिका कुसुम बिष्ट, दूसरी गढ़वाली फिल्म की नायिका सुनीता बिलवाल, गढ़वाली फिल्मों की गायिका रंजना बक्सी, अंजू भण्डारी,मनीषा भट्ट, चंद्र कांता सुन्दियाल मनोरमा तिवारी,देव गुसांई, नरेंद्र बंगारी,लक्ष्मी नौटियाल ने अपनी ग्रुप प्रस्तुति दे कर कार्यक्रम को सुर संगीतमय बनाया।

कार्यक्रम में संस्थान की वरिष्ठ सदस्य दीन दयाल जुयाल और रबि रावत ने आमंत्रित अथितियों को सम्मानित स्थान देते हुए स्वागत किया। आपको बता दें कि 8 अगस्त वीरांगना तीलू रौतेली जयंती को संस्थान 2017 से उत्तराखंड महिला दिवस के रुप में हर साल मनाती है।

विद्या महतोलिया जो सपनों को हकीकत में बदलना जानती हैं

पहाड़ की नारी जीवन में जो कुछ भी हासिल करना जानती है। उसमें उसका दृढ़ निश्चय और त्याग भी शामिल होता है। दृढ़ निश्चय जहां उसके आत्मविश्वास, कर्म के प्रति तत्परता एवम जुझारूपन का प्रतीक है वहीं उसका त्याग उसके संकल्पों को पूरा करने में मदद करता है।जब कोई स्त्री अपने घर-परिवार में यह कहे कि वह भरपूर सामाजिक कार्य करना चाहती है जिसमें परिवार की समस्त जिम्मेदारियों को निभाने के बाद ही जो समय उसके स्वयं के लिए बचेगा उसे वह सामाजिक एवम जनोपयोगी कार्यों में लगा देगी,तब उसकी निष्ठा पर कोई संदेह नहीं रह जाता और यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह जीवन में समय का सही प्रबंधन करना जानती है,समाज को कुछ देना चाहती है। विद्या सरीखे महिलाएं बहुत कम मिलती हैं जिनमें कुछ कर गुजरने का एक जज्बा है और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध है।

विद्या बताती हैं…” बचपन से ही उनके भीतर कुछ करने की चाह थी, संकल्प थे। प्रतिभा उनके भीतर हिलोरे ले रही थी किंतु उसे बाहर निकालने का सही अवसर नहीं मिल पा रहा था । मां के घर और पति की देहलीज दोनों ही स्थानों पर अपेक्षाएं ही अधिक हो रही थीं ।वह दिनरात घरेलू कामों में ही लगी रहती, पर फिर भी लगता सभी को संतुष्ट नहीं कर पा रही हैं। सबकी सेवा करती ,इसके बावजूद भी लगता कि पूर्णता और संतुष्टि अभी दूर है । वह अपने कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन फिर भी करती रहती। वह पढ़ना चाहती थीं किन्तु बी. ए प्रथम वर्ष में ही उनकी शादी कर दी गई।अपने ससुराल पहाड़पानी में उन्होंने तीन बच्चों ( एक पुत्री व दो पुत्रों) को जन्म दिया। बच्चों के पालन- पोषण के साथ ही घास काटना , पतेल झाड़ना, पेड़ों में चढ़कर पत्ते काटना, खेती- पाती आदि सारे काम साथ-साथ चलते रहे। कुछ लोग उन्हें कहते .. क्या यह वही विद्या है जो कल तक कालेज में पढ़ती थी?…..। वह किसी बात की परवाह किए बगैर अपने सभी काम नियमित करती रहीं ।इन सब कार्यों- संघर्षों ने उन्हें मजबूत बनाया।

वह सोचती कि क्या यहीं तक जीवन है ? समाज के प्रति भी तो कुछ दायित्व हैं, कुछ करना है। तत्पश्चात समाज के लिए आवाज उठाने के लिए उन्होंने मन बना लिया।जिसके तहत 1995 में गांव की महिलाओं का समूह बनाकर “शराब विरोधी आंदोलन” चलाया । साथ ही घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए काम करने शुरू कर दिए।

फिर बच्चों की पढ़ाई के लिए हल्द्वानी आ गई।यहां पर अपने गृहस्थी के सभी कार्यों के साथ जनहित के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता,महिला सशक्तिकरण पर कार्य करती रहीं और आज भी कर रही हैं। साथ ही तीनों बच्चों की परवरिश उन्होंने अच्छे से की और उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई । कालांतर में बचपन में शौक पूरे न होने के कारण , बिटिया की शादी के बाद ग्रेजुएशन MSW( मास्टर ऑफ सोशल वर्क) “उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय”,हल्द्वानी प्रथम श्रेणी में प्राप्त किया। साथ ही बचपन के जो शौक जैसे.. स्विमिंग ,स्कूटी , कार चलाना आदि सब कुछ अपने हुनर के बल पर सीख ही डाला और सामाजिक कार्यों के खर्चे हेतु “सहारा कंपनी” में भी काम किया। साथ ही समाज में हो रही बुराई के खिलाफ लिखना भी शुरू किया और सामाजिक कार्य भी करती रही।आज भी जिस कालोनी में वह रहती हैं वहां एक बंजर पड़े पार्क को आबाद किया है। साथ ही उस क्षेत्र की महिलाओं को उस पार्क में इकट्ठा कर सामाजिक कार्यों एवम पर्यावरण से जोड़ने का कार्य भी कर रही हैं।”

महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के उद्देश्य से विद्या महतोलिया ने “सौहार्द जन सेवा समिति”हल्द्वानी की स्थापना की ।जिसकी वह संस्थापक अध्यक्ष हैं। जिसके माध्यम से वह अपना तन मन धन लगाकर सामाजिक कार्य कर रही हैं,जिसे अपने जीवन का उद्देश्य उन्होंने अब बना लिया है। लोकप्रियता एवम सेवा के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान हेतु कई पुरस्कारों द्वारा वह सम्मानित हैं।

महत्वपूर्ण है कि सतत कर्मशील, निष्ठावान समाजसेवी “विद्या महतोलिया” को वीरांगना “तीलू रौतेली” सम्मान

“उत्तराखण्ड फिल्म एवं नाट्य संस्थान”दिल्ली एवम “हिमालय विरासत न्यास” के सौजन्य से देश की राजधानी दिल्ली में आज (29 अगस्त 2021) अनेक गणमान्य जनों की उपस्थिति के बीच दिया गया। डॉ रमेश पोखरियाल निशंक (पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड एवम पूर्व केंद्रीय मंत्री,भारत सरकार) के अस्वस्थ होने के कारण उनके नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर उनके द्वारा यह सम्मान दिया गया।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से “हिमालय विरासत न्यास” से जुड़ी विदुषी पोखरियाल, ट्रस्टी श्रीमती आशना नेगी,समाजसेवी संजय दरमोड़ा,संस्थान के संरक्षक कुलदीप भंडारी, साहित्यकार डॉ हरि सुमन बिष्ट, नाट्यकार एवम वृत्तचित्र निर्माता हरी सेमवाल, रंगकर्मी दर्शन सिंह रावत,संस्कृति कर्मी एवं उद्घोषक बृज मोहन शर्मा, डॉ बैचेन कंडियाल,संस्थान की अध्यक्ष संयोगिता ध्यानी, प्रशासक प्रेम सिंह रावत,संयोजक एवम अध्यक्ष चयन समिति बी.लाल.शास्त्री, कार्यक्रम सचिव अरूण डोभाल,सलाहकार सुमित्रा किशोर, प्रसिद्ध रंगकर्मी के.एन.पाण्डे, नायिका कुसुम बिष्ट,गायिका सुनीता बिलवाल, प्रसिद्ध रंगकर्मी कुसुम चौहान, संस्थान के संगीत निर्देशक कृपाल सिंह रावत,कलाकार महेंद्र रावत एवम संस्थान से जुड़े अनेक सदस्यगण इस आयोजन में उपस्थित थे।

छ: सदस्ययी निर्णायक मण्डल द्वारा विद्या महतोलिया का इस सम्मान के लिए चयन किया गया ।जिसमें निर्णायक मंडल में एक नाम इन पंक्तियों की लेखिका का भी है।

उत्तराखण्ड की समाजसेवी,वर्तमान में हल्द्वानी में निवासरत विद्या महतोलिया को “वीरांगना तीलू रौतेली सम्मान” उनके नारी उत्थान व अन्य सामाजिक कार्यों को देखते हुए दिया गया है।

समाजसेवी विद्या महतोलिया ने रोजगार सृजन कर न सिर्फ महिला उत्थान के लिए कार्य किए बल्कि पहाड़ों की भूमि से शराब उन्मूलन को लेकर भी आंदोलन किया।जानकारी देते हुए “उत्तराखण्ड फिल्म एवं नाट्य संस्थान” की अध्यक्ष संयोगिता ध्यानी ने बताया कि संस्था द्वारा यह सम्मान उन्हें केन्द्रीय मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के सहयोग से उनकी पत्नी कुसुमकांता पोखरियाल की स्मृति में “हिमालय विरासत न्यास” के माध्यम से 21 हजार सम्मान राशि के साथ दिया गया है। समाजसेवी विद्या महतोलिया को नाट्य संस्थान की ओर से एक प्रशस्ति पत्र और स्मृतिचिह्न भेंट किया गया। निर्णायक मण्डल द्वारा पुरस्कार के लिए कुल 8 प्रतिभागियों के जीवनवृत एवम् उपलब्धियों को देखने के बाद समाजसेविका विद्या महतोलिया का चयन किया गया जो लगभग 25 वर्षों से विभिन्न सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुई हैं और बहुत बेहतर कार्य कर रही हैं। उनके भाषण में भी उनके कार्य करने का वही जज़्बा और जोश कायम था जो उनके कार्यों में प्रदर्शित होता है।फिलहाल उनके समग्र व्यक्तित्व एवम कृतित्व को यहां पर चंद शब्दों में नहीं बांधा जा सकता आगे उनपर अन्य तरीके(लघु फिल्म निर्माण आदि से माध्यम से) कार्य करने की जरूरत है।

इस पुरस्कार को देने के पीछे एक मात्र उद्देश्य भी यह है कि समाज में कार्य करने वाले ऐसे लोगों को ‘विस्तृत पटल’ पर लाया जा सके। उनका मनोबल बढ़ाया जा सकें ताकि वे भविष्य में भी समाज के लिए निष्ठा एवम समर्पित भाव से कार्य करते रहें और लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत बनें।

स्वामी रामतीर्थ ने कहा था “माताएं ही संसार को उठा सकती हैं…माताएं ही प्रकृति के ज्वार में उतार- चढाव ला सकती हैं।” बढ़े चलो, बढ़े चलो।