स्पेनिश फ्लू के सबक,हमारे लिए मददगार हो सकते हैं ?

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ठीक 102 वर्ष पूर्व शुरू स्पेनिश फ्लू के संक्रमण का जो ट्रेन्ड व व्यवहार देखा गया था। वही क्रम कोविड-19 में भी दिखाई दे रहा है। हालांकि दोनों फ्लू के वायरस की बायोलॉजिकल बनावट में बहुत अंतर है।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दिसंबर 1917 में सबसे पहले समुद्र तटीय उत्तरी फ्रांस के एटा बॉल्स जहां की 12 वर्ग किलोमीटर में 1 लाख सैनिक और घोड़े रह रहे थे । कि खराब हालातों में सैनिकों के बीमार पड़ने की खबरें मिली लेकिन छिपा दी गई । फिर फरवरी -मार्च 1818 में अमेरिका के मिलिट्री कैंप में एक हजार से 100 सैनिकों की मौत के बाद यह बीमारी चर्चा में आई ,लेकिन मई 18 18 में स्पेन जो कि युद्ध में तटस्थ राष्ट्र था .स्पेन ने ही सबसे पहले इस बीमारी को सार्वजनिक किया तभी इसका नाम स्पेनिश फ्लू दिया गया।

भारत में 10 जून 1818 को मुंबई बंदरगाह में पुलिस के सात सिपाहियों में इस फ्लू के लक्षण दिखे और सातों की मृत्यु हो गई। इस प्रकार पूरी दुनिया में फरवरी 1818 से जून 1920 तक 26 माह  दुनिया में यह महामारी रही । प्रारंभिक तौर पर करीब 5 करोड लोगों की मृत्यु इस महामारी से हुई। यह उस वक्त की आबादी का 2.7 प्रतिशत था। भारत में इस बीमारी से 1 करोड़ 80 लाख लोगों के मारे जाने का आंकडा है। जो कि उस वक्त की भारत की आबादी का 8 प्रतिशत था।

महात्मा गांधी, प्रेमचंद जैसे भारत के महत्वपूर्ण व्यक्तियों के परिवार इस बीमारी से प्रभावित हुए। महात्मा गांधी की पुत्रवधू गुलाब और पौत्र शांति की स्पेनिश फ्लू से मृत्यु हुई। उस वक्त पूरे भारत में शमसान और कब्रिस्तान कम पड गए थे। आबादी की दृष्टि से भारत में मृत्यु दर सर्वाधिक रही। इसका कारण भारत के नागरिकों का कमजोर पोषण और उसी वर्ष पड़ रहे भीषण सूखे को भी कहा जा सकता है। यूरोप तथा अमेरिका में इस फ्लू की चार लहरें आई, दुनिया में जब इस बीमारी का आगाज हुआ ,उसके 4 माह बाद भारत चपेट में आया और 4 माह पहले मुक्त हुआ। हालांकि स्पेनिश फ्लू के वायरस और कोविड-19 के वायरस में बायोलॉजिकल बनावट एकदम अलग है। लेकिन बीमारी की शुरुआत और उसका ट्रेंड काफी मिलता-जुलता है.

घनी और समुद्र तट की आबादी बुहान चीन से इस बार यह वायरस प्रारंभ बताया जाता है। लेकिन भारत में यह इस बार भी 4 माह बाद ही आया। वैज्ञानिकों ने पहली लहर से 4 गुना अधिक बड़ी लहर की आशंका इस वर्ष मार्च-अप्रैल में व्यक्त की गई थी वह घटित हो रही है। वैज्ञानिक निष्कर्षों के आधार पर मई मे शीर्ष में,पहुंचकर जुलाई तक स्थितियां सामान्य होंगी। लेकिन दो-तीन माह बाद तीसरी लहर की संभावना बनती है। जो पहली लहर से बड़ी लेकिन दूसरी लहर की एक तिहाई रहेगी,अंतिम लहर मार्च-अप्रैल 2022 में संभावित बताई जा रही है, जो पहली लहर की आधी हो सकती है।

भारत में भी स्वास्थ्य विशेषज्ञ जून 2020 से ऑक्सीजन की कमी और मार्च-अप्रैल में दूसरी लहर के गंभीर होने की बात बता रहे थे। लेकिन हमने वैज्ञानिक निष्कर्षों से सबक नहीं लिया। जिस कारण मौजूदा अफरा-तफरी मची है। उम्मीद की जानी चाहिए कि तीसरी और चौथी लहर में हम मुकम्मल तैयारियों के साथ कोविड-19 का मुकाबला करेंगे और तब तक राष्ट्र का वैक्सीनेशन का मिशन लगभग पूरा हो चुका होगा। यह निष्कर्ष विभिन्न मेडिकल जर्नल के शोध की संभावनाओं पर आधारित हैं। लेकिन इन आधारों पर तैयारी तो की जा सकती है।

प्रमोद शाह जी की फेसबुक वॉल साभार

फोटोः- गूगल बाबा