एक संभावना है “शांति”पर्यटन आंदोलन की!

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गजेंद्र नौटियाल 

परिवर्तन,जीवन का नियम है। जो भूत और वर्तमान की ही परवाह करते हैं। वे भविष्य को नहीं पा सकते -जान एफ कैनेडी(अमेरिकी राष्ट्रपति)

दुनियां में मौसम परिवर्तन हो रहा है जिसके प्रभावों को कम करने के साथ उन स्थितियों में जीने के लिए तैयार होना जरुरी है क्योंकि इस परिवर्तन को खत्म कर देना संभव नहीं है। यही कारण है कि दुनियां के दूर दृष्टि रखने वाले देश और ब्यापारिक संगठन ब्यापक तैयारियों में लगे हैं।

दुनियां की जनसंख्या घनत्व बढ़ता ही जा रहा है,प्राकृतिक उर्जा और जीवन जीने के संसाधन सीमित हो रहे हैं। दुनियां की जनसंख्या 2020 तक 8 अरब हो जायेगी जिसमें भारत करीब डेढ़ अरब जनसंख्या का देश होगा। तेजी से बढ़ रहे औद्योगिकीकरण और उसी के सापेक्ष शहरीकरण से सीमित होती कृषि भूमि से दो तरह के परिवर्तन आयेंगे एक यह कि आबादी की खाद्य आपूर्ति के लिए अत्यधिक अजैविक तरीकों से उत्पादन होगा,ध्वनि,वायु प्रदूषण होगा,भीड़ में आदमी असहज महसूस करेगा और शारिरिक मानसिक बीमारियों से लोग त्रस्त होंगे। अवश्यंभावी मौसम परिवर्तन से पेयजल की जरुरत और गर्मी से बचाव भी समस्या रहेगी। यह ऐसे परिवर्तन हैं जिन्हे रोका नहीं जा सकता। तब उत्तराखंड हर तरह की शांति का ठौर बनेगा यानी पौराणिक काल से जो गौरव हासिल था उसे फिर से जीवंत बनाए रखने की जिम्मेदारी और अपार संभावनांए दोनो उत्तराखंड पर निर्भर हैं।

 आराम, शारिरिक स्वास्थ्य और मानसिक दोनों तरह के पर्यटन के अलावा शारिरिक-मानसिक उल्लास और संतुलन के लिए पारंपरिक तीर्थाटन को ब्यापक अर्थों में विस्तार देने और नये पर्यटन के मापक इन जरुरतों के अनुरुप ढ़ालना होगा। नैसर्गिक सौंदर्य और प्राकृत शांति को बनाए रखते हुए ज्यादा लोगों की शांति की गोद में रखने की चुनौती को स्वीकारना होगा। आराम गाह प्रकृति अनुरुप बने, उन तक पंहुचने के मार्ग बने पर कम से कम प्रकृति के नुकसान करते हुए ,ऐसा हो जो भूकम्प, भूस्खलन अतिवृष्टि और हिमपात के साथ सूखे जैसी स्थिति का सामना कर सकें। वैकल्पिक उर्जा के साधन अपनाना प्रकृति के बदलते मिजाज के अनुरुप सही विकल्प हो सकते हैं। सौर उर्जा,वायु उर्जा, पिरुल, लालटेना,बायोमास,गोबर गैस की ईंधन उर्जा, वर्षा जल उपयोग के साधन सतत् विकसित करने होंगों। जैविक खेती और जैविक खाने बनाने और खाने के तरीकों को प्रोत्साहन भी पर्यटन विकास के लिए जरुरी होगा जिसमें जंगलों से, खेतों से नदी,गधेरों और खेतों से खाद्य सामाग्री का उत्पादन और उपयोग के पारंपरिक ज्ञान को जीवित करने की जरुरत होगी। हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के साथ प्रदर्शनात्मक सांस्कृतिक क्रिया कलापो को जोड़कर इस तरह के सतत् विकास को जारी रखना संभव हो जाएगा।

इसके लिए मानव संसाधनों को अत्याधुनिक संचार तकनीकि दक्षता, पारंपरिक चिकित्सा व स्वास्थ्य विज्ञान ,पारंपरिक भवनशिल्प, खेती के तरीकों, खाना पकाने की दक्षता, जड़ी-बूटी और खाद्य-अखाद्य ज्ञान की दक्षता , वैकल्पिक उर्जा उत्पादन और उपयोग , स्थानों के ऐतिहासिक और प्रसांगिक ज्ञान की जानकारी , मानवीय संवेदनाओं के साथ सेवाओं को उपलब्ध कराने जैसी दक्षताओं को अर्जित करने के लिए अध्ययन,प्रशिक्षण और अभ्यास करने की आवश्यकता होगी। भाषा ज्ञान खास कर अंग्रेजी और चाइनीज को सीखने पर ध्यान देना होगा। विश्व पर्यटन संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2020 तक चायना से 10 करोड़ और भारत से 5 सौ करोड़ पर्यटक दूसरे देशों में घूमने जांएंगे, इस अनुमान के अनुरुप हमें संपर्क भाषा ज्ञान की तैयारी करनी होगी। औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा में इन विषयों को जोड़कर नीतियां और नियोजन की दिशा तय करनी आवश्यक होगी जो हमारे पर्यटन को “शांति की ठौर” के रुप में हमारे जीवन की आवश्यकताओं के लिए भी ठौर को स्थायित्व देंगे और दुनियां के पर्यावरण को भी शांति का सहयोग अपरोक्ष में कर रहे होंगे।

हवा में अजैविक कार्बन व अन्य की मात्रा मापन ,आद्रता,तापमान,वर्षा मापन,मौसम फोरकास्ट की जानकारी हर पर्यटक स्थल पर ब्यवसायिक अपडेट देने के लिए आवश्यक होंगे। कोई भी इन वैज्ञानिक परिणामों के आधार पर उन स्थानों पर जाने का निश्चय कर पायेगा। माना एक ब्यक्ति की छुट्टियां हैं वो स्वच्छ वायु, ठंडे वातावरण में रहना चाहता है जंहां उसके जाते वर्षा या बर्फबारी भी हो तो उसके लिए उसे इन वैज्ञानिक सबूतों की जरुरत सही चयन मे जरुरी होगी। स्वांस की बीमारी वाला कतई नहीं चाहेगा कि उसे ज्यादा आद्रता वाली जगह जाना पड़े।

यातायात सुविधाओं में सार्वजनिक वाहन सेवा ब्यवस्थाओं को ज्यादा आरामदायक और सुचारु बनाने की जरुरत होगी ताकि वाहन पार्किंग और वायु-ध्वनि प्रदूषण कम हो और अगले दशकों में ईंधन कीमतों में बेतहासा बढ़ोत्तरी के कारण मंहगी यात्रा पहाड़ों में पर्यटक को आने के लिए किसी को तय करने में बाधा न बने। हर पर्यटक स्थल पर पार्किंग की पर्याप्त सुब्यवस्थांए करनी होंगी।

कानूनों में ब्यवस्थांए-पर्यटन को पर्यावरण सम्मत बनाने के लिए जरुरी होगा कि हमारे वर्तमान कानूनों और नीतियों में प्रभावी प्रावधान ब्यक्तिगत वाहन संचालन को कम से कम प्रोत्साहित करने के प्रयास हों। प्रदूषंण जांच को ज्यादा सख्त बनांए जाने की आवश्यकता होगी। प्राकृतिक आपदा और प्रकृति सम्मत भवन निर्माण और आवास के लिए आवश्यक कानून सभी जगह लागू करने की आवश्यकता होगी। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन रोकने के सभी क्योटो प्रोटोकाल्स को स्थानीय कानूनों में प्रावधान कर कड़ाई से पालन करवाने होंगे। इन कानूनों के पालन के लिए सामुदायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रयास यह स्पष्ट समझ बनाकर किया जा सकता कि ये प्रयास हमारी आजीविका के लिए अत्यावश्यक है। 

यहां इस बात का भी ध्यान रखने की जरुरत होगी कि हम ”हिंदु पिलग्रिमेज“ के नाम पर विदेशी पर्यटकों को नहीं रिझा सकते ना ही हम तीर्थयात्री से ज्यादा ब्यवसाय की उमीद पाल सकते हैं। उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि विदेशी पर्यटक जहां भी बढ़े या धनाड्य लोगों का आगमन जहां भी ज्यादा हुआ वहां ”शांति“ की चाहत पूरी होने की ज्यादा संभावनांए थी तब चाहे उसमें नया कुछ मिलना हो या आध्यात्मिक शांति।

हमें पर्यटन को और ब्यापक स्वरुप में देखने की जरुरत है। ”गुफा पर्यटन“ एक नयी संभावना है जो उत्तराखंड में कई गुफाओं के नेटवर्क को जोड़कर ब्यवस्थित किया जा सकता है। डा यशोधर मठपाल का फोटो संसार इन्ही गुफॉंओं के इर्द गिर्द का है जिसका लाभ उठाया जाना बाकी है। इसी तरह “डार्क टुरिज्म” उन स्थानों को चिन्हित कर विकसित किया जा सकता है जहां मानवीयता का काला अध्याय लिखा गया हो जैसे यमुना किनारे का तिलाड़ी कांड स्थल, मसूरी का झूलाघर, रैंणी के जंगल आदि। ”रिच्युअल एडवेंचर“ नाम से ऐसे आयोजनों को पर्यटन से जोड़ा जा सकता है जैसे तिमुंडिया मेला जहां देवता साबूत बकरी,मण भर का प्रसाद आदि..आदि खा जाता है,फरसों की तेज धार पर महासू चल पड़ता है या खौलते तेल से पुरियां निकाल कर प्रसाद देता है।

ये अच्छे संकेत हैं कि उत्तराखंड में सैकड़ों स्थानीय युवा पर्यटन ब्यवसाय के साथ अपनी नवाचारी पहल के साथ आगे आए हैं लेकिन आने वाले समय के सामने प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए स्तरीय तकनिकी प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करनी होगी। प्रवासी व एन आर आई उत्तराखंडियों को इस दिशा मंे प्रोत्साहित किया जा सकता है।