पद्मपुराण में धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से पुण्यमयी एकादशी तिथि की उत्पत्ति के विषय पर पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि सत्ययुग में मुर नामक भयंकर दानव ने देवराज इन्द्र को पराजित करके जब स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया, तब सभी देवता महादेव जी के पास पहुंचे।
महादेवजी देवगणों को साथ लेकर क्षीर सागर गए। वहां शेषनाग की शय्यापर योग-निद्रालीन भगवान विष्णु को देखकर देवराज इन्द्र ने उनकी स्तुति की। देवताओं के अनुरोध पर श्रीहरि ने उस अत्याचारी दैत्य पर आक्रमण कर दिया। सैकडों असुरों का संहार करके नारायण बदरिकाश्रमचले गए ।
बाहुयुद्धं कृतं तेन दिव्यं , वर्ष सहस्त्रकम् ।
तेन श्रान्त: स भगवान् गतो बदरिकाश्रमम् ।। (भविष्य पुराण)
वहां वे बारह योजन लम्बी हैमवती नाम की गुफा में निद्रालीन हो गए। दानव मुर ने भगवान विष्णु को मारने के उद्देश्य से जैसे ही उस गुफामें प्रवेश किया ।।
तत्र हैमवती नाम्नी गुहा परमशोभाना ।
तां प्राविशन् महायोगी शयनार्थं जगत्पति: ।। (भविष्य पुराण)
वैसे ही श्रीहरिके शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार से दानव मुर को भस्म कर दिया। नारायण ने जगने पर पूछा तो कन्या ने उन्हें सूचित किया कि आतातायीदैत्य का वध उसी ने किया है।
“हतो मया दुरात्माऽसौ देवता निर्भया कृता:”
इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी नामक उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया। श्रीहरिके द्वारा अभीष्ट वरदान पाकर परम पुण्यप्रदाएकादशी बहुत प्रसन्न हुई।
।। जय बदरीविशाल ।।