भक्ति कितने प्रकार की होती है?

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आचार्य शिवप्रसाद ममगाईं, बदरीकाश्रम ज्योतिष पीठ व्यास पद से अलंकृत

भक्ति कितने प्रकार की होती है? प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं। जिसे नवधा भक्ति कहते है। श्रवणं कीर्तनं विष्णोःस्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।

स्मरण:निरंतर अनन्य भाव से कृष्ण का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना। पाद सेवन: कृष्ण के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना। अर्चन:मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से कृष्ण के चरणों का पूजन करना।वंदन: भगवान कृष्ण की मूर्ति को पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना। दास्य:कृष्ण को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।

श्रवण:कृष्ण की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना। कीर्तन:कृष्ण के गुण,चरित्र, नाम, पराक्रम अर्थात हरे कृष्ण महामंत्र का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।

सख्य:कृष्ण को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।आत्म निवेदन:अपने आपको भगवान कृष्ण के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं। जयश्री कृष्ण