“बल्लभ डोभाल उत्तराखंड से आये हिंदी के प्रमुख कथा-शिल्पी हैं। कविता से अपनी रचना-यात्रा प्रारंभ करने वाले बल्लभ जी की कहानियों में पर्वत प्रदेश से मैदानों तक के बीहड़ जीवन अनुभवों से प्रसूत कथाएं आती हैं। प्रायःछोटी और मध्यम आकार की इन कहानियों में कथाकार कृत्रिमता से दूर एक सहज संप्रेषणीय अनुभूति जगत से साक्षात कराते हैं।”
- लेखन का स्वान्तःसुखाय होना ज़रूरी-बल्लभ डोभाल
यह विचार ‘उत्तराखण्ड के कथा-शिल्पी’ श्रृंखला के संपादक महेश दर्पण ने ‘उत्तराखंड के कथा-शिल्पी बल्लभ डोभाल’ पुस्तक के लोकार्पण पर व्यक्त किये। उन्होंने शॉल उढ़ाकर रचनाकार का सम्मान किया और कहा कि डोभाल जी के प्रेरक रचना-जीवन से नई पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है। आशीष उनियाल ने उन्हें काव्यांश प्रकाशन की पुस्तकें भेंट की।
इस अवसर पर 93 वर्षीय बल्लभ डोभाल ने कहा कि मुझे खुशी है कि काव्यांश प्रकाशन ने सुरुचिपूर्ण ढंग से यह पुस्तक प्रकाशित कर सराहनीय कार्य किया है। उनका कहना था कि लेखक को दुनिया-जहान की फिक्र तो होनी चाहिए किंतु लेखन का स्वान्तःसुखाय होना ज़रूरी है। उन्होंने अपने कथापात्रों की दुनिया को लेकर रोचक संस्मरण भी सुनाए। वह खुद से मिलने आये कथारसिकों और प्रेमीजनों को देख खुश थे।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार-लेखक एवं प्रकाशक प्रबोध उनियाल ने कहा कि वह ऐसा साहित्य प्रकाशित करना चाहते हैं,जो जन-जन को प्रेरित करे और जिससे उसमें मानवीयता के गुणों का संचार हो। उनकी कोशिश है कि कम कीमत पर पुस्तकें पाठकों तक पहुंचाएं।