Mumbai:-उत्तराखंडी फिल्म ‘मेरी प्यारी बोई’ मुंबई में हुई री-लॉन्च

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देवभूमि उत्तराखंड कला,संस्कृति,विभिन्न परंपराओं और नैसर्गिक छटा से परिपूर्ण राज्य है। यहां की लोक कला और गीत फिल्मों में चार चांद लगा देते हैं। इसी को फिल्मी पर्दे पर बखूबी दिखाया था 2004-05 में बनी फिल्म मेरी प्यारी बोई में। उस समय यह फिल्म आंचलिक सिनेमा संसाधन की कमी की भेंट चढ़ गई थी। लेकिन इस बार इस फिल्म के निर्देशक मुकेश धस्माना ने मुंबई में इसे री-लांच किया।
फिल्म मेरी प्यारी बोई को उत्तरा कम्युनिकेशन के बैनर तले निर्माता जितेन्द्र जोशी ने बनाया था। जो गढ़वाली भाषा में थी। उस समय यह फिल्म प्रोजेक्टर के जरिये देहरादून तक ही सीमित रह गई थी। लेकिन अब इस फिल्म को मुकेश धस्माना फिर उत्तराखंड के दर्शकों तक पहुंचाने की तैयारी कर चुके हैं।
मुबंई में रविवार को इस फिल्म को अंधेरी स्थित इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर एसोसिएशन (इम्पा) के थिएटर में री-लॉन्च किया गया।
इस मौके पर फिल्म अभिनेत्री निवेदिता बौंठियाल,टेलीविजन कलाकार वरुण बडोला,अभिनेता ज्योति राठौर,मानसी जोशी, मुकेश बर्तवाल,प्रिया मिश्रा,राजेश नेगी,वरिष्ठ पत्रकार हरि मृदुल पांडे, युवा समाजसेवी सतीश रिखारी,हर्ष मनराल,राकेश खंकरियाल सहित फिल्म जगत की कई हस्तियां मौजूद थीं।

इस अवसर पर मुकेश धस्माना ने कहा कि,’मैंने यह फिल्म 2004 में बनाई थी,लेकिन तब यह फिल्म ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाई थी। आप देख सकते हैं कि राज्य के गठन से पहले और बाद में जो आंचलिक फिल्में पर्दे पर आई हैं, उनमें पहाड़ का परिवेश गौण होता जा रहा है। या यूं कहें कि गढ़वाल की फिल्मों में पहाड़ी संस्कृति और नैसर्गिक छटां की जगह शहरी चकाचौंध ही दिखाया जा रहा है। ऐसे में मेरी इच्छा है कि इस फिल्म के माध्यम से मैं लोगों को दिखाऊं कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और नैसर्गिक संपदा क्या है।
पहाड़ की महिलाओं का संघर्ष क्या होता है और किसी विधवा महिला के लिए जब रोजगार का कोई साधन न हो तो उसे अपनी औलाद को पढ़ाने-लिखाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।’धस्माना ने कहा कि,’इस फिल्म में गीत-संगीत,पहाड़ की दिनचर्या सब कुछ है। आज उत्तराखंड सरकार ने अपनी फिल्म नीति के जरिये आंचलिक सिनेमा के लिए संभावनाओं का नया द्वार खोल दिया है।’ इसलिए जो भी फिल्में बनें उनमें उत्तराखंड के जनजीवन की ठोस झलक हो।