Delhi:-गढ़वाली-कुमाउनी एवं जौनसारी ग्रीष्मकालीन कक्षाओं के साथ उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच की बड़ी पहल,अब इन कक्षाओं में लोकगीत और नाटकों का अध्ययन भी करेंगे छात्र

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दिल्ली एनसीआर में कई वर्षों से उत्तराखंड के प्रवासियों को गढ़वाली-कुमाऊंनी और जौनसारी की ग्रीष्मकालीन कक्षाओं के माध्यम से अपनी भाषाओं-बोली के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच अब एक और नहीं पहल करने जा रहा है। जिसके लिए दिल्ली के न्यू अशोक नगर स्थित दिल्ली पैरामेडिकल एंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (DPMI) में एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में उत्तराखंड समाज से जुड़े तमाम बुद्धिजीवियों,समाजसेवियों और साहित्यकारों ने शिरकत की। जिसमें आगामी 14 मई, 2023 से शुरू होने वाली गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी की ग्रीष्मकालीन कक्षाओं को सुचारू रूप से चलाने पर विचार-विमर्श किया गया।

इस महत्वपूर्ण बैठक में समाज के तमाम प्रबुद्धजनों ने आगामी सत्र में गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषाओं के साथ-साथ बच्चों को गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीत सिखाने पर भी जोर दिया। उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच की इस पहल का सभी उपस्थित लोगों ने एक स्वर में समर्थन किया कि इस तरह से अपनी भाषा-बोली को सीखने के साथ-साथ बच्चे अपने लोक कलाओं और लोक परंपराओं से भी रू-ब-रू होंगे और इन्हें सीखेंगे भी।

गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों के क्षेत्रों में बच्चों को पारंगत करने के लिए थियेटर आर्टिस्ट लक्ष्मी रावत,गायिका डॉ कुसुम भट्ट एवं मनोरमा तिवारी भट्ट ने जिम्मेदारी ली है। जिनके सानिद्धय में बच्चे गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों की बारीकियां सीखेंगे। आपको बता दें कि उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच वर्ष 2016 से दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तराखंड के कई शहरों में बच्चों को अपनी भाषा-बोली के प्रति जागरूक करते हुए गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषाओं की कक्षाओं के माध्यम से अपनी भाषा-बोली को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित कर रहा है। इसी का सफल परिणाम भी हैं कि आज अपनी माटी-थाती से दूर रहते हुए भी पहाड़ के बच्चे अपने समाज और अपने घरों में अपनी भाषा-बोली में बात कर रहे है।

उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच के संरक्षक एवं समाजसेवी डॉ.विनोद बछेती गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषा के संरक्षण के लिए जिस पताका को लेकर चल रहे है। उसके नीचे आज पहाड़ की युवा पीढ़ी अपनी भाषा-बोली से तो जुड़ ही रही हैं,साथ ही अपने रीति-रिवाज और संस्कारों को भी नये कैनवास पर उकेर रही है। जिसका श्रेय निश्चित तौर पर उन सभी प्रबुद्धजनों को जाता है,जो अपने नौनिहालों को अपनी भाषा-बोली के प्रति जागरूक कर रहे है।

उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच के संरक्षक डॉ.विनोद बछेती इस बारे में बताते है कि बहुत अजीब लगता है जब हम बहुत से पहाड़ के लोगों एक साथ खड़े हों और हम अपनी भाषा-बोली में बात न करें। इस तरह के माहौल में मैं खुद को बहुत असहज महसूस करता हूं। इस धारणा को बदलने के लिए हमने दिल्ली एनसीआर में रह रहे नौनिहालों को अपनी मातृ भाषा से जोड़ने के लिए गढ़वाली-कुमाऊंनी और जौनसारी की ग्रीष्मकालीन कक्षाओं की शुरूआत की,इसके लिए हमारे समाज का एक बड़ा तकबा हमारे साथ खड़ा हुआ और मुझे कहने में खुशी होती है कि हमारे नौनिहाल अपनी भाषा-बोली में बात करते है,अपने संस्कार-रीति-रिवाजों को जानते है और इस कड़ी में हम  अब हम एक और नई पहल करने जा रहे है। जिसके तहत हम बच्चों को अब गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों की बारिकियों को भी सिखाएंगे और मुझे पूरी उम्मीद हैं कि जिस प्रकार हमारे बच्चों ने गढ़वाली-कुमाउनी भाषा-बोली के प्रति अपना रूझान दिखाया। उसी प्रकार हमारे बच्चे गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों को जानने-समझने में भी रूचि दिखाएंगे।

उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच के संयोजक साहित्यकार दिनेश ध्यानी ने इस बारे में बताया कि हमारे समाज की निरंतर कोशिश हैं कि गढ़वाली-कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। इसके लिए कई वर्षों से हमारे कई साथी संघर्षरत है।

जहां तक युवा पीढी को अपनी भाषा एवं सरोकारों से जोड़ने की बात है तो इसके लिए भी हम प्रयासरत है। इस दिशा में मंच लगातार प्रयास कर रहा है। समय-समय पर सेमिनार एवं गोष्ठियों के माध्यम से नई पीढी को जोडने का प्रयास किया जा रहा है। मंच के इन प्रयासों को जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है।

उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच की आज हुई बैठक में भी केन्द्र सरकार से यह मांग पुनःकी गई कि सरकार गढ़वाली- कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करे। इसी के साथ बच्चों को अब गढ़वाली-कुमाऊंनी और जौनसारी की ग्रीष्मकालीन कक्षाओं में गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों को सिखाने के लिए सहमति बनी है।

इस मौके पर साहित्यकार रमेश चन्द्र घिल्डियाल,दर्शन सिंह रावत,जगमोहन सिंह रावत जगमोरा,उमेश बन्दूणी,जयपाल सिंह रावत,अनिल पंत,दिनेश ध्यानी,लक्ष्मी रावत,मनोरमा भट्ट,अनूप सिंह नेगी खुदेड़,अनूप सिंह रावत,वीरेन्द्र जयाल उपरि सहित समाज के कई प्रबुद्धजन उपस्थित थे।