
उत्तराखंड विधानसभा में मंगलवार को समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया गया। इस विधेयक को जल्द ही सदन में मंजूरी मिल सकती है। बुधवार 7 फरवरी को उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक कानून विधेयक को लेकर चर्चा के बाद इसे पारित भी किया जाएगा। इस संबंध में आज विपक्ष के विधायक अपनी बात रखेंगे। जिसके बाद इस बिल को राज्यपाल से मंजूरी के लिए भेजा जाएगे। जिसके बाद राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून बन जाएगा। इस तरह से गोवा के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन जाएगा।

उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता विधेयक के बारे में बात करें तो,इसमें कई महत्वपूर्ण मुद्दों को शामिल किया गया है। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। साथ ही सभी पंथ के लोगों के लिए विवाह,तलाक,भरण-पोषण विरासत और बच्चा गोद लेने में समान रूप से कानून लागू होगा।
विधेयक में सभी धर्मों में विवाह की आय़ु लड़की के लिए 18 वर्ष अनिवार्य होगी और लड़के की उम्र 21 वर्ष रखी गई है। इसी के साथ बहु विवाह गैरकानूनी,एक पति-पत्नि का नियम सभी धर्मों पर लागू होगा। पति-पत्नी को तलाक का भी समान अधिकार होगा। तलाक के लिए सभी धर्मों के लिए एक ही कानून होगा। पहले फारसी समुदाय में पहले तलाक के बाद दो साल का समय दिया जाता था,लेकिन इस विधेयक में उस अवधि को 6 माह कर दिया गया। प्रदेश की जनजातियों को इस कानून से बाहर रखा गया है।
समान नागरिक संहिता विधयक पर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा कि यह हमारे लिए ऐतिहासिक क्षण है। समान नागरिक संहिता विधेयक पारित होने के बाद,उत्तराखंड सभी के लिए समान कानून लागू करने वाला पहला राज्य बन जाएगा,उन्होंने कहा कि यह कानून किसी भी धर्म,जाति या किसी की परंपराओं और रीति-रिवाजों से छेड़छाड़ नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि तलाक से संबंधित मामलों में पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार होंगे,इससे ‘हलाला’ और ‘इद्दत’ जैसी “बुरी प्रथाएं”खत्म हो जाएंगी। समान नागरिक संहिता विधेयक में ‘हलाला’ करते पाए जाने वाले व्यक्ति के लिए तीन साल की कैद या ₹1 लाख का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन एवं प्रेरणा से हमने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता से राज्य में समान नागरिक संहिता कानून लाने का जो ‘संकल्प’ प्रकट किया था,उसे हम पूरा करने जा रहे हैं। हमारी सरकार ने पूरी जिम्मेदारी के साथ समाज के सभी वर्गों को साथ लेते हुए समान नागरिक संहिता का विधेयक विधानसभा में पेश कर दिया है। देवभूमि के लिए वह ऐतिहासिक क्षण निकट है जब उत्तराखण्ड आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के विजन ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’’ का मजबूत आधार स्तम्भ बनेगा।
आपको बता दें कि समान नागरिक संहिता विधेयक में लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत करने में विफलता के लिए भी कड़े प्रावधान हैं। यदि कोई जोड़ा एक महीने के भीतर जिला प्रशासन के साथ अपनी लिव-इन स्थिति दर्ज नहीं कराता है,तो उन्हें अधिकतम तीन महीने की कैद की सजा हो सकती है। इसके अलावा,यदि लिव-इन पार्टनर पंजीकरण के दौरान कोई गलत जानकारी साझा करते हैं,तो उन्हें तीन महीने तक की कैद या ₹25,000 से अधिक का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ेगा।
विधेयक के तहत किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी और बच्चों को मृतक के माता-पिता के साथ उसकी संपत्ति में समान अधिकार दिया जाएगा। पिछले कानूनों में मृतक की संपत्ति में केवल मां का ही अधिकार था।
आपको बता दें कि समान नागरिक संहिता विधेयक के लिए उत्तराखंड की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने पांच दिन पहले मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को चार खंडों में 740 पृष्ठों के इस मसौदे को सौंपा था।