देश के विभिन्न भागों में अपने ढोल वादन की विशेष छाप छोड़ने वाले सिन्हा दास का निधन

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1924
इंद्र सिंह नेगी

देश के विभिन्न भागों में अपने ढोल वादन की विशेष छाप छोड़ने वाले कालसी विकासखंड के गास्की गांव निवासी सत्तर वर्षीय सिन्हा दास आज अनंत यात्रा पर चल गए। वे पिछले छ:माह से टीवी व पेट के इन्फेक्शन से जूझ रहे थे। उनका इलाज एम्स ऋषिकेश से चल रहा था। विगत वर्ष हरिद्वार में हुए नमो नाद कार्यक्रम में उन्हे “गुरू” की उपाधि से विभूषित किया गया था।

सिन्हा दास राज्य के उन गिने-चुने ढोल वादन के विशेषज्ञों में सम्मिलित थे जिन्हें इस विधा की बारीक समझ थी। वो अपनी कला से लोगों का मन मोह लेते थे। नौबत,बधाई,धार्मिक अनुष्ठान,पंडवाणी, झैन्ता, रासो वादन आदि से लेकर लोक गायन तक में उन्हें महारत हासिल थी।

हमारी लोक विरासत के ये जानकर धीरे-धीरे अनंत यात्रा पर निकलते जा रहे और उनके साथ उनकी लोक कलायें भी समाप्त होती जा रही है। हमारी सरकारों के एजेंडे में कलाकारों की अहमियत सिर्फ इतनी है कि जो या जिसका समूह पंजीकृत है उन्हे सूचना व संस्कृति विभाग में उनको थोड़े-बहुत कार्यक्रम दे दो, उसमें भी यदि कोई जुगाड़बाज ना हो वो वंचित रह जायेगा, कई सालों तक किये गये कार्यक्रमों का भूकतान तक नहीं होते, कुछ बुजुर्ग कलाकारों को पेंशन का झून-झूना थमा दो, वो भी उन्हे ही मिलेगी जिनके पास कलाकार होने का प्रमाण पत्र हो जो ग्रामीण अंचल का साधक हो वो अपने हाल पर ही रहेगा। सरकारों के लिए संस्कृति का महत्व सिर्फ इतना भर ही है कि कलाकार सरकारी जलसों की शोभा बढ़ाये, उसमें भी मानदेय उसी दिन का मिलेगा जिस दिन प्रस्तुति दी जाती है, आने-जाने में जो समय लगता है उसका कोई भूकतान नहीं किया जाता । इसके साथ सामाजिक स्तर पर भी ऐसी बेहतर व्यवस्था या माहौल नदारद है। जिससे इन कलाओं को विस्तार का अवसर मिल पाए। सिन्हा दास के जाने से एक रिक्तता महसूस कर रहा हूं, वो अपने पीछे चार पुत्र, तीन बहुओं, भाई-भतीजों सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गये, ईश्वर उन्हे सद्गति प्रदान करें। ॐ शांति…..भवतु सब्ब: मंगलम्…।