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आजादी के लिये संघर्ष में जेल काटने और यातनाएँ सहते हुए जेल की कोठरी मे कविताएँ लिखने वाले महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी व कवि श्रीराम शर्मा ‘प्रेम’ की पुण्य तिथि में उनको याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।
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गोष्ठी में शिरकत करते हुए वक्ताओं ने व उनके पुत्र प्रसिद्ध जनकवि अतुल शर्मा ने बताया कि उन्होंने जेल मे कई कविताएँ लिखीं-
“मैं चला आज सागर तरने को
लेकर तरी पुरानी
जग कहता नादानी “
आजादी के बाद उनका लिखा यह गीत तो अमर गीत हो गया जो आज भी पूरे देश मे गाया जाता है..
‘करे राष्ट्रनिर्माण ,बनाये मिट्टी से सोना’
विद्यालयों की नित्य प्रति प्रार्थना सभाओं में व एनएसएस के शिवरों मे यह गीत पूरी तन्मयता के साथ गाया जाता है। उनकी दो बहुचर्चित कविताएँ ‘अमर शहीद श्रीदेव सुमन और मसूरी विश्वविद्यालय के बीए (हिन्दी ) द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में शामिल हैं।
स्वाधीनता सेनानी कवि श्रीराम शर्मा ‘प्रेम’ ने सन 1944 को सैन्टरल सैकेटरियेट दिल्ली पर तिरंगा फहरा कर गिरफ्तारी दी थी। इस जुर्म में फिरंगी सरकार ने उन्हें दो साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। समय-समय पर देश के प्रमुख साहित्यकारों ने भी उनकी स्मृति व्याख्यान-मालाओं में उन पर लेख लिखे है ।
उनके पुत्र प्रसिद्ध जनकवि डॉ अतुल शर्मा ने उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर पाँच ग्रंथों का संपादन किया है। रेखा शर्मा व रंजना शर्मा ने इन ग्रंथों का सह- संपादन किया है। जो ‘संस्मरणों के हरे गुलाब’, ‘शताब्दी के हस्ताक्षर’, ‘सृजनयात्री’, ‘अग्निपुरुष’ ‘युगचरण अविराम’ हैं।
कविवर प्रेम जी के विषय मे सूचना एवं जन संपर्क विभाग की पुस्तक में पं कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर ने महत्वपूर्ण लेख लिखा है। पूर्व शिक्षा मन्त्री व कानपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री भक्तदर्शन जी ने भी ‘गढवाल की दिवंगत विभूतियाँ’ पुस्तक मे श्रीराम शर्मा प्रेम को याद किया है। राष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं में समय-समय पर उन पर लेख प्रकाशित हुए हैं। उनकी कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं। आजादी के बाद उन्होंने लिखा- “तुम स्वतंत्रता के लिये लडे़ मिल गई तुम्हें/ अब समानता के लिए लडो़ मिल जाएगी।”
श्रीराम शर्मा प्रेम देहरादून मे साहित्य का केन्द्र रहे। देहरादून के कई कवि-मंचों में देश के प्रमुख साहित्यकारों के साथ उनका घनिष्ट प्रेम दिखता रहा है। कोई भी साहित्यकार अगर देहरादून आता था तो वे श्रीराम शर्मा प्रेम का सानिध्य अवश्य पाता था। 18 जुलाई 1978 को राष्ट्रवादी विचारधारा का यह कवि पंचतत्व में विलीन हो गया। प्रेम की कविताएँ आज भी जीवित हैं। प्रेम जी की पुण्यतिथि पर आयोजित इस परिचर्चा में डॉ अतुल शर्मा रेखा शर्मा, रंजना शर्मा,सुनील थपलियाल व प्रबोध उनियाल ने शिरकत की।