दुनिया के कई हिस्सों में चंद्र ग्रहण दिख रहा है। भारत में भी कुछ देर बाद आंशिक चंद्र ग्रहण दिखाई देगा। यह इस साल का पहला चंद्रग्रहण है। जो आज 26 मई 2021 को दोपहर 2 बजकर 17 मिनट से शुरू हुआ है आज जो शाम 7 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। वैसे तो यह खगोलीय घटना है। लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी बुध पूर्णिमा की वजह से धार्मिक तौर पर इसका काफी महत्व है। चंद्र ग्रहण के लगने के भारत में क्या कुछ खास होने वाला हैं और इस ग्रहण के वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार क्या मायने है। इस बारे में आपके लिए खास जानकारी आचार्य हिमांशु ढौण्डियाल जी की कलम से।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्र ग्रहण भी सूर्य ग्रहण की ही तरह विशेष महत्वपूर्ण होता है। जिसके अपने वैज्ञानिक महत्व होने के साथ-साथ पौराणिक, धार्मिक व ज्योतिषीय महत्व होते हैं। आमतौर पर ग्रहण का नाम आते ही लोगों के मन में बहुत से नकारात्मक विचार आने लगते हैं इसलिए ही शायद हम लोक भाषा में ग्रहण लगने को हानि के साथ जोड़कर देखने लगते हैं।
ज्योतिषीय ग्रन्थों के अनुसार ग्रहण काल को मानवों सहित पृथ्वी के सभी जीव-जंतुओं के लिए नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाली अवधि माना गया है जिससे बचने के लिए बहुत से उपाय ग्रन्थों में बताए गए हैं। ग्रहण एक ऐसी खगोलीय घटना है, जिसमें कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जब पृथ्वी सूर्य की और चंद्र पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए एक सीध में आते हैं तो जहाँ चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बिलकुल बीच में आते हुए, सूर्य की रोशनी को ढक लेता है। इस अवस्था में तो सूर्य ग्रहण लगता है, लेकिन जब इसके विपरीत पृथ्वी चंद्र और सूर्य के बीच आकर, चंद्र की छाया को ढकती है तो उसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
सनातन हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का संबंध राहु-केतु से जोड़कर देखा जाता है। इसके पीछे की एक पौराणिक कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है। जिसके अनुसार पौराणिक काल में स्वरभानु नाम का एक दैत्य हुआ करता था, जिसने क्षीर सागर मंथन के पश्चात, मोहिनी अवतार भगवान विष्णु से छल करते हुए कुछ बूंदें अमृत की पान कर लीं। इस दौरान वो असुरों की जगह देवताओं की कतार में बैठा था, परन्तु उसके गले से अभी कुछ ही अमृत की बूंदे नीचे उतरी थीं कि इतने में ही सूर्य देव और चंद्र देव ने उसका भेद भगवान विष्णु जी के सामने खोल दिया जिसके परिणामस्वरूप श्री मोहिनी अवतार धारण करने वाले भगवान श्री विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु पर प्रहार किया और उसका सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। चूँकि तब तक असुर अमृत पान करने में सफल हो गया था, इसलिए उसके सिर व धड़ सदैव के लिए अमर हो गए एवं उसका सिर राहु और धड़ केतु माना गया। तब से लेकर आज तक अपनी उसी शत्रुता के चलते हर साल राहु-केतु सूर्य व चंद्रमा पर ग्रहण लगाते हैं।
चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन ही घटित होता है। आमतौर पर चंद्र ग्रहण तीन प्रकार का होता है:-
- पूर्ण चंद्र ग्रहण (Total Lunar Eclipse): इस दौरान सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी परिक्रमा करते हुए आ जाती है और चंद्र को पूरी तरह से अपने पीछे ढक लेती है। इस स्थिति में चंद्र पृथ्वी के पीछे पूरी तरह से लाल या गुलाबी रंग का उभरता हुआ प्रतीत होता है। इस अवधि में पृथ्वी से देखने पर चंद्र पर धब्बे साफ दिखाई देते है। इसे पूर्ण चंद्र ग्रहण और सुपर ब्लड मून (Blood Moon) भी कहा जाता है।
- आंशिक चंद्र ग्रहण (Partial Lunar Eclipse): ये ग्रहण तब लगता है जब सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आकर उसे ढकती तो है, लेकिन इस समय चंद्र पृथ्वी के पीछे पूरी तरह नहीं छुप पाता। जिसके चलते चंद्र के कुछ ही हिस्सों पर पृथ्वी की छाया पड़ती है। इसी को हम आंशिक चंद्र ग्रहण कहते है, जिसकी समयावधि ज्यादा लम्बे समय के लिए नहीं होती है।
- उपच्छाया चंद्र ग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse): इस अवस्था में सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी उस समय आती है, जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में नहीं होते हैं। जिसके चलते पृथ्वी के बाहरी हिस्से की छाया जिसे अमूमन उपच्छाया या पिनम्ब्रा कहते है, वो चंद्र पर पड़ती है। इस स्थिति में चन्द्रमा की सतह धुँधली पड़ जाती है इसी को हम उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहते हैं, जो आंशिक चंद्र ग्रहण से ही शुरू होता है।
सनातन धर्म के अनुसार, चंद्र ग्रहण के सूतक काल को एक ऐसी अशुभ व दूषित अवधि माना जाता है, जिस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करना वर्जित होता है। अन्यथा ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव उस कार्य से शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होने देते। इस शुभ समय का प्रभाव पृथ्वी के हर जन-जीव पर पड़ता है। ये अवधि चंद्र ग्रहण लगने से कुछ समय पहले ही शुरू हो जाती है, जिसे हम ग्रहण का सूतक काल कहते है, जो ग्रहण की समाप्ति के साथ ही खत्म होता है। चंद्र ग्रहण में सूतक काल ग्रहण लगने से नौ घंटे पूर्व ही प्रारंभ होकर, उस ग्रहण के खत्म होने के साथ ही निष्क्रिय होता है। वर्ष, 2021 में कुल 2 चंद्र ग्रहण घटित होंगे। वैदिक ज्योतिष शास्त्र की पञ्चाङ्ग परम्परा के अनुसार, वर्ष 2021 का ये पहला चंद्र ग्रहण विक्रम संवत 2078 में वैशाख माह की पूर्णिमा को घटित होगा, साल 2021 का पहला चंद्र ग्रहण, वर्ष के मध्य में 26 मई 2021 को लगेगा और वर्ष का दूसरा चंद्र ग्रहण, 19 नवंबर 2021 को पड़ने वाला है।चंद्र ग्रहण 2021 में जो एक विशेष बात दिखाई दे रही है वो ये है कि इस वर्ष दोनों में से किसी भी ग्रहण का सूतक भारत में मान्य नहीं होगा। यह चन्द्र ग्रहण उपच्छाया चन्द्र ग्रहण कहलाएगा। भारतवर्ष में यह चंद्र ग्रहण केवल उप छाया ग्रहण की तरह दृश्य होगा, इसलिए भारत में इस चंद्र ग्रहण का धार्मिक प्रभाव और सूतक मान्य नहीं होगा।
- इस चंद्र ग्रहण का दृश्य क्षेत्र पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर और अमेरिका होंगे, जहाँ ये पूर्ण चंद्र ग्रहण की तरह दृश्य होगा।
- चंद्र ग्रहण के दौरान उसके सूतक समाप्त होने तक किसी भी प्रकार के नए कार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए।
- चंद्र ग्रहण के सूतक के दौरान भोजन बनाने और खाने से परहेज करना चाहिए।
- किसी भी तरह के लड़ाई-झड़गे करने से बचें।
- किसी भी धारदार वस्तु का उपयोग न करें।
- देवी-देवताओं की प्रतिमा और तुलसी के पौधे का स्पर्श न करें।
- माना जाता है कि सूतक काल के समय सोना भी वर्जित होता है।
- सूतक काल की समाप्ति तक ध्यान, भजन, भगवान की आराधना, आदि कार्यों से मन को सकारात्मक बनाएँ।
- इस दौरान चंद्र ग्रह से संबंधित मंत्रों और राहु-केतु की शांति हेतु उनके बीज मंत्र का उच्चारण करें।
- चंद्र ग्रहण के खत्म होने के तुरंत बाद स्नान कर घर में गंगाजल का छिड़काव कर उसका शुद्धिकरण करें।
- भगवान की मूर्तियों को भी स्नान कर शुद्ध करें।
- ग्रहण के सूतक काल से उसकी समाप्ति तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।