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महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर दिल्ली के दिलशाद गार्डन टेलीफोन एक्सचेंज निकट गोल चक्कर पार्क का नामकरण किया गया। इस पार्क का नामकरण पूर्वी दिल्ली नगर निगम के महापौर श्याम सुंदर अग्रवाल एवं पूर्वी दिल्ली नगर निगम में स्थाई समिति के अध्यक्ष वीर सिंह पवार के कर कमलों से किया गया। पार्क के नामकरण के अवसर पर बड़ी संख्या में प्रवासी उत्तराखंडी अपने पारंपरिक परिधान में उपस्थित रहे। जिसके बाद हजारों की संख्या में उपस्थित प्रवासी उत्तराखंडियों ने जय उत्तराखंड,जय बद्री विशाल और जय केदार के घोष के साथ साथ मंत्रोचारण के साथ नमाकरण किया। इस मौके पर बद्री विशाल कीर्तन मंडली भी इस कार्यक्रम में शामिल हुई। जिन्होंने उत्तराखंड के पांरपरिक नृत्य थडिया की मनमोहकर प्रस्तुति से क्षेत्रवासियों का मन मोह लिया।
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इस अवसर पर स्थानीय निगम पार्षद वीर सिंह पवार ने कहा कि पेशावर कांड के नायक वीर चंद्रसिंह गढ़वाली सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल थे। पठानों पर हिंदू सैनिकों की ओर से फायर करवाकर अंग्रेज भारत में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच फूट डालकर आजादी के आंदोलन को भटकाना चाहते थे, लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने अंग्रेजों की इस चाल को न सिर्फ भांप लिया,बल्कि उस रणनीति को विफल कर वह इतिहास के महान नायक बन गए। एक सैनिक के ऐसे विलक्षण अहिंसक संघर्ष को वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों का परिचय कराना जनप्रतिनिधि होने के नाते हमारा दायित्व तो हैं ही साथ ही मैं इसे एक शांतिपूर्ण किन्तु दृढ़ राष्ट्र के निर्माण में भी आवश्यक मानता हूँ।
आपको बता दें कि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1891 को ग्राम मासी,सैणीसेरा,चौथान पट्टी,पौड़ी गढ़वाल में जलौथ सिंह भंडारी के घर पर हुआ था। 3 सितंबर 1914 को वे सेना में भर्ती हुए, 1 अगस्त 1915 को उन्हें सैनिकों के साथ अंग्रेजों ने फ्रांस भेज दिया। 1 फरवरी 1916 को वे वापस लैंसडौन आ गये। इसके बाद 1917 में उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की ओर से मेसोपोटामिया युद्ध व 1918 में बगदाद की लड़ाई लड़ी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने उन्हें हवलदार से सैनिक बना दिया। चंद्र सिंह की सेना से छुट्टी के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मुलाकात हुई। 1920 में चंद्र सिंह को बटालियन के साथ बजीरिस्तान भेजा गया। वापस आने पर उन्हें खैबर दर्रा भेजा गया और उन्हें मेजर हवलदार की पदवी भी मिल गई। इस दौरान पेशावर में आजादी की जंग चल रही थी। अंग्रेजों ने चंद्र सिंह को उनकी बटालियन के साथ पेशावर भेज दिया और इस आंदोलन को कुचलने के निर्देश दिए। 23 अप्रैल 1930 को आंदोलनरत जनता पर फायरिग का हुक्म दिया गया, तो चंद्र सिंह ने ‘गढ़वाली सीज फायर’ कहते हुए निहत्थों पर फायर करने के मना कर दिया। आज्ञा न मानने पर अंग्रेजों ने चंद्र सिंह व उनके साथियों पर मुकदमा चलाया। उन्हें सजा हुई व उनकी संपत्ति भी जब्त कर ली गई। अलग-अलग जेलों में रहने के बाद 26 सितंबर 1941 को वे जेल से रिहा हुए। इसके बाद वे महात्मा गांधी से जुड़ गए व भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। चंद्र सिंह भंडारी को ‘गढ़वाली’ की उपाधि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरे पास गढ़वाली जैसे चार आदमी होते तो देश कब का आजाद हो जाता।
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दिल्ली के दिलशाद गार्डन में गोल चक्कर पार्क का नामकरण महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम से रखने पर उत्तराखंड प्रवासियों ने सभी प्रबुद्धजनों का आभार प्रकट किया है। इस मौके पर जिला अध्यक्ष मास्टर विनोद,उत्तर पूर्वी दिल्ली नगर निगम के चेयरमैन प्रवेश शर्मा,गढ़वाल मित्र समिति के अध्यक्ष हरीश रावत,महामंत्री दिनेश पंत और उनकी पूरी टीम मौजूद रही। इसी के साथ गढ़वाल मित्र समिति के सभी सदस्य भी कार्यक्रम में मौजूद रहे। वरिष्ठ सदस्यों में केदार सिंह चौहान,गजेंद्र सिंह असवाल,लोकेश नयाल,महिपाल सिंह सजवाण,मंडल अध्यक्ष विकास हांडा,सुषमा वाधवा,महामंत्री,आनंद सिंह रावत,अध्यक्ष उत्तराखंड मंडल,पवन मैठाणी,शिक्षाविद रेनू शर्मा,श्री बद्री नाथ कीर्तन मंडली जीटीबी एनक्लेव उत्तराखंड समाज के कई गणमान्य लोग और सभी क्षेत्रवासी भी मौजूद रहे।