उत्तराखंड-ढोल को लेकर बौद्धिक वर्ग ने किया चिंतन,कहा-लोक विरासत बचाने ढोल से आगे सोचे सरकार

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उत्तराखंड की लोक संस्कृति के संरक्षण में ढोल को लेकर एक बार फिर इन दिनों सोशल मीडिया के जरिए चर्चा चल रही है। उत्तराखंड की लोक विरासत को जीवित रखने के लिए इस कला को सिर्फ ढोल और ढोली तक समेटे रखने के किए सरकारी प्रयासों पर औजी समाज से जुड़े बौद्धिक वर्ग ने कड़ी चिंता जताई है। समाज से जुड़े बौद्धिक वर्ग ने लोक संस्कृति के नाम पर किए जा रहे दिखावे पर कड़ा ऐतराज जताया है। समाज से जुड़े डा.पवन कुदवान,पत्रकार गोविंद आर्य,शूरवीर सिरवाण, सामाजिक चिंतक शिवदेव सिंह शाह समेत अनेक सामाजिक प्रतिनिधियों ने सरकार के ऐसे प्रयासों की निंदा की है जहां 21वीं सदी में भी एक खास वर्ग को ढोल बांटकर सस्ती लोकप्रियता के ढोल पीटे जा रहे हैं।

सामाजिक प्रतिनिधियों ने कहा कि आज जरूरत इस बात की नहीं है कि इस वर्ग को ढोल बांटे जाएं, जरूरत इस बात की है कि सरकार अपनी नीतियों में इस वर्ग के लिए कोई ऐसी ठोस पहल करे कि लोक विरासत को बचाने सभी वर्ग के लोग इस विधा की ओर स्वत: आकर्षित हों,समाज के बौद्धिक वर्ग ने कहा कि सरकार को अगर इतनी ही चिंता है तो इस विधा के जानकारों की सरकारी कर्मचारी के तौर पर नियुक्ति के प्रावधान करे। राज्य में रोजगार स्वरोजगार के लिए बने पलायन आयोग, लोक संस्कृति विभाग व अन्य सरकारी नीतियों में इस वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया जाए। राज्य के लोगों और सरकार का अगर इस विरासत के प्रति प्रेम है तो अनेक लोगों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया जाता है। किसी डोली को राज्यमंत्री का दर्जा देकर बड़ा सकारात्मक संदेश देने की पहल अब तक क्यों नहीं हुई? उत्तराखंड के किसी ढोल वादक को संस्कृति का वाहक माना जाता है तो रास्ट्रीय पार्टियों द्वारा  राज्यसभा में भेजने का दिल क्यों नहीं दिखाया जाता? 

लोकप्रियता का लाभ समाज को दें भरतवाण

टिहरी जनपद में विधायक द्वारा ढोल बांटे जाने को लेकर लोगों ने सरकार के इस प्रेम को छलावा करार देते हुए कहा कि सदियों से थोड़ी सी शाबासी के बाद यह वर्ग हमेशा उपेक्षित रहा है और आज भी यही प्रयास हो रहे हैं। सामाजिक चिंतन की इस चर्चा में लोगों ने गायक प्रीतम भरतवाण से भी अपेक्षा की है कि वे समाज को 21वीं सदी की ओर ले जाने का प्रयास करें, वे अपनी लोकप्रियता का लाभ समाज की नई पीढ़ी को सम्मान दिलाने में दें।

ढोल देता है संकेत

समाज के एक चिंतक ने कहा कि ढोल शिव का प्रिय है और इसके साथ छलावा भगवान माफ नहीं करते। उन्होंने कहा ढोल भविष्य और वर्तमान के संकेत देता है। उन्होंने अपनी पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि हमारे घरों में जब लटके ढोल रात या दोपहर कभी अचानक बजने का अहसास कराते थे,तो हमारे बुजुर्ग कहते थे आज कुछ शुभ अशुभ होने वाला है। ठीक वैसे ही राज्य के मुख्यमंत्री जी ने एक कार्यक्रम में हाल ही में जिस दिन ढोल उठाया उसी दिन उत्तराखंड का एक क्षेत्र आपदाओं से हिल गया। उन्होंने कहा यह ढोल का संकेत है कि इसके साथ छलावा बंद हो।

देर शाम तक सामने आया चर्चा का सुखद परिणाम

ढोल पर छिड़ी चर्चा के बीच एक खबर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से आई है। जिसमें राज्य के साहित्यकार व कला एवं संस्कृतिधर्मिंयों की एक बैठक हुई और एक राय रखी कि क्यों न सरकार से आग्रह किया जाय कि देवस्थानम बोर्ड के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक मन्दिर में जैसे पुजारी नियुक्त किये जाते हैं। वैसे ही आवजी, ढोली,बाजगी,गुणीजन समाज के कलावंत की भी सरकारी नियुक्ति के लिए अनुरोध किया जाय।

इसके लिए उत्तराखंड की महान हस्तियों ने एक पत्र संयुक्त हस्ताक्षर कर मुख्यमंत्री कार्यालय, उत्तराखंड हेतु ड्राफ्ट किया। इस पत्र में हस्ताक्षर करने वाले व्यक्तियों में सुप्रसिद्ध लोकगायक एवं कला-लोक संस्कृतिकर्मी नरेंद्र सिंह नेगी,जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण,साहित्यकार एवं कला-लोकसंस्कृतिधर्मी नंद किशोर हटवाल,साहित्यकार एवं कला-लोक संस्कृतिधर्मी रमाकांत बेंजवाल, साहित्यकार एवं कला-लोक संस्कृतिधर्मी बीना बेंजवाल,वरिष्ठ पत्रकार एवं कला-लोक संस्कृतिधर्मी गणेश खुगशाल गणी,गढ़वाल सभा के सदस्य व कला एवं लोक संस्कृतिकर्मी अजय जोशी, समाजसेवक एवं लोकसंस्कृतिधर्मी इन्द्र सिंह नेगी एवं वरिष्ठ पत्रकार मनोज ईस्टवाल सहित कई कला-लोक संस्कृतिधर्मी शामिल थे।