श्री हनुमान चट्टी जहां भीम और हनुमान जी की रोचक तरीके से हुई थी भेंट

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भुवन चंद्र उनियाल धर्माधिकारी,श्री बदरीनाथ धाम

एक बार ईशानकोण से अकस्मात वायु चली और सूर्य के समान तेजस्वी एक दिव्य ब्रह्मकमल गंगा में बहता हुआ पांडवों की ओर पहुँचा उस कमल को देखकर द्रौपदी अत्यंत प्रसन्न हुई और उन्होंने भीम से अन्य ब्रह्मकमल लाने की अपनी इच्छा प्रकट की

यदि तेऽहं प्रिया पार्थ बहूनीमान्युपाहर ।

तान्यहं नेतुमिच्छामि काम्यकं पुनराश्रमम् ।।

(महाभारत, वनपर्व अध्याय – 146, श्लोक – 07)

महाबली भीम उस ब्रह्मकमल पुष्प को लेने के लिए बदरीवन में प्रवेश करते हैं और मार्ग में एक विशालकाय वानर को पढ़ा हुआ देखते हैं जिसकी पूँछ से मार्ग अवरुद्ध हुआ रहता है भीम उस विशालकाय वानर को मार्ग से हटने के लिए कहते हैं लेकिन वह वानर कहता है कि –

प्रसीद नास्ति मे शक्तिरूत्थातुं जरयानघ ।

ममानुकम्पया त्वेतत् पुच्छमुत्सार्य गम्यताम् ।।

बुढ़ापे के कारण मुझ में उठने की शक्ति नहीं रह गई इसलिए मेरे ऊपर दया करके इस पूँछ को हटा दो और चले जाओ, भीम अनेकानेक प्रयत्न करते हैं लेकिन उनकी पूँछ हिला पाना भी भीम के सामर्थ्य से बाहर हो जाता है तब भीम समझ जाते हैं यह कोई सामान्य वानर नहीं फिर हनुमान जी उन्हें अपने विशालकाय स्वरूप का दर्शन कराते हैं और इस लीला के माध्यम से वे भीम का गर्व चूर-चूर कर देते हैं ।।

तभी से इस स्थान को हनुमानचट्टी के नाम से जाना जाता है इसी स्थान पर हनुमान जी पूँछ फैलाकर लेटे हुए थे ।।

शीतकाल में जब भगवान बदरीनाथ जी के कपाट 6 माह के लिए बंद हो जाते हैं तो इस हनुमानचट्टी से ऊपर धार्मिक कार्यों के लिए मनुष्य पर प्रतिबंध लग जाता है, शास्त्रों में उसे विष्णुद्रोही कहा गया जो इस स्थान को पार कर शीतकाल में धार्मिक क्रियाकलापों के लिए बदरीनाथ जाते हैं ।।

 सतयुग में राजा मरूत ने इस स्थान में यज्ञ किया था जिसके अवशेष आज भी हनुमान चट्टी के पास एक टीले पर दिखाई देते हैं हल्की सी खुदाई करने पर यहां जौ एवं तिल आज भी दिखाई पड़ते हैं ।। श्री बदरीनाथ धाम में प्रवेश से पूर्व हनुमान चट्टी पर माथा टेकना आवश्यक है इसीलिए सभी श्रद्धालुओं को यहाँ पर हनुमान जी के दर्शन करके ही बदरीनाथ धाम के लिए आना चाहिए।।