ललित मोहन रयाल की पुस्तक ‘कारी तू कभी ना हारी’ का विमोचन

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1993

ललित मोहन रयाल द्वारा लिखित पुस्तक कारी तू कभी ना हारी का विमोचन खदरी खड़कमाफ़ के सामुदायिक भवन में किया गया। लेखक ने यह पुस्तक अपने पिता को समर्पित की है, जिसमें उन्होंने अपने शिक्षक पिता की जीवन यात्रा को लिखा है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  घनश्याम रयाल ने लेखक के पिता के साथ बीते पलों को याद किया व उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक डॉ सविता मोहन ने कहा कि लेखक ने पिता की स्मृतियों को पूरी भावनात्मक बौद्धिकता के साथ लिखा है जो किसी चुनौती से कम नहीं था। मुख्य शिक्षा अधिकारी टिहरी एस पी सेमवाल ने कहा कि ये पुस्तक तीन पीढ़ियों का एक दस्तावेज है जिसे अवश्य  पढ़ा जाना चाहिए। लेखक व साहित्यकार नंदकिशोर हटवाल ने कहा कि यह पुस्तक उस समय की शिक्षा प्रणाली को भी सामने रखती है जो आज भी प्रासंगिक है। देवेश जोशी ने कहा कि यह पुस्तक एक कर्मयोगी शिक्षक की जीवन कथा है।

साहित्यकार भवन कुनियाल व मुकेश नौटियाल ने कहा कि इस पुस्तक में हिंदी व गढ़वाली भाषा का समावेश है जो इस पुस्तक को अनूठा स्वरूप प्रदान करती है। लेखक ललित मोहन रयाल ने कहा कि यह पुस्तक पिता को खोने के बाद एक खास मनोदशा में लिखी गई है आशा है पाठक इसें स्वीकार करेंगे। रंगकर्मी श्रीश डोभाल    व पूर्व पालिका अध्यक्ष वीरेंद्र शर्मा ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। पुस्तक के प्रकाशक प्रबोध उनियाल ने कहा कि ये पुस्तक सच्चे पहाड़ी के जीवन का सफरनामा है जो उस कालखंड को बड़ी सादगी के साथ रखती है। कार्यक्रम का संचालन डॉ  सविता मोहन व सुनील थपलियाल ने किया।

इस अवसर पर विपिन बलूनी,मायाराम रयाल,धर्मानंद लखेड़ा,अधिवक्ता आरएस भंडारी,मनोज रतूड़ी, ग्राम प्रधान संगीता थपलियाल,रामकृष्ण पोखरियाल, शांति प्रसाद थपलियाल,मधुसूदन रयाल,अशोक क्रेजी,मनोज मलासी,धनेश कोठारी,डॉ सुशील राणा,अशोक अवस्थी,आलोक गौतम,अनिल मैठानी,विनोद जुगरान व हरिनारायण आदि मौजूद थे।