जब सती ने दक्षयज्ञ में अपने प्राण त्यागे तब भगवान शंकर कुरूद हुए तत्पश्चात आदिशक्ति का पुनः प्रादुर्भाव हिमालय व मैना देवी की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म होता है और पार्वती कौमारावस्था प्राप्त करने पर भगवान शंकर की प्राप्ति के लिए तप करते हैं।
यत्र पूर्वं महादेवी तपः परममास्थिता ।
पर्णखण्डाशना भूत्वा बहुवर्षसहस्त्रकम् ।।
(स्कन्दपुराण,केदारखण्ड, अध्याय 58, श्लोक 36)
इसी स्थान पर देवी ने बैठकर के सहस्त्रवर्षों तक भगवान शंकर की प्राप्ति के लिए तप किया जिसे आज माँ पर्णखण्डेश्वरी के नाम से जाना जाता है।
तदारभ्य महत्पुण्यं बभूव वरवर्णिनि ।
पर्णखण्डाशना देवी जाता दैवतपूजिता ।।
(स्कन्दपुराण,केदारखण्ड, अध्याय 58, श्लोक 37)
तपस्या के दौरान तपस्या के पहले चरण में पार्वती ने पत्ते खाकर तप किया इसलिए उनका नाम पर्णखण्डेश्वरी पड़ा और तपस्या के अंतिम चरणों में देवी पार्वती ने पत्तों को आहार के रूप में लेना भी बंद कर दिया तब उनका नाम अपर्णा पड़ा है।
तब से पार्वती की यहां पर पर्णखण्डेश्वरी के रूप में पूजा प्रारंभ हुई। माँ पर्णखण्डेश्वरी मन्दिर जोशीमठ नगर से 5 किलोमीटर की दूरी पर है जब आप श्री बदरीनाथ यात्रा में आए तो जोशीमठ प्रवेश से 5 किलोमीटर पहले एक रास्ता इस मंदिर के लिए कट जाता है और वहाँ से मात्र 2 किलोमीटर पर यह मन्दिर स्थित हैं।