उत्तराखंड लोक की आवाज़ गोपाल बाबू गोस्वामी व जीत सिंह नेगी

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पूरन चंद्र कांडपाल

उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक गोपाल बाबू गोस्वामी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं परंतु उनके गीत हमें आज भी उनकी उपस्थिति का अहसास कराते हैं। जीवन के हर पहलू को छूते उनके गीतों की सूची लंबी है। हर किसी को रूला देने वाला दुल्हन की विदाई का उनका मार्मिक गीत ‘न रो चेली न रो मेरी लाल, जा चेली जा सौरास’ तथा ‘उठ मेरी लाड़ू लुकुड़ा पैरीले, रेशमी घाघरी आंगड़ी लगै ले’ गीत की आज भी बखूबी सुने जाते हैं ।

सुप्रसिद्ध लोक गायक दिवंगत गोपाल गिरी गोस्वामी को लोग गोपाल बाबू के नाम से जानते हैं। उनका जन्म चौखुटिया बाजार से लगे ग्राम पंचायत चांदीखेत में 02 फरवरी 1942 को मोहन गिरी गोस्वामी के घर हुआ था। बचपन से ही गीतकार बनने के जुनून में उन्होंने पांचवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया। वह 12 साल की उम्र से ही गीत लिखने और गाने लगे थे । अपने 54 साल के जीवन में उन्होंने करीब साढे़ पांच सौ गीत लिखे। उनका पहला गीत “कैलै बजे मुरूली औ बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूमा” आकाशवाणी नजीबाबाद से प्रसारित हुआ था। 1972 में भारत सरकार के गीत और नाटक प्रभाग में नियुक्ति के बाद गोस्वामी को अपना हुनर दिखाने का अच्छा मंच मिल गया। यहीं से उनके गीतों की संख्या और लोकप्रियता बढ़ती चली गई। सेवा के दौरान ही बीमारी के चलते 26 नवंबर 1996 मात्र 54 वर्ष की उम्र में यह महान गीतकार हमको अलविदा कह कर चला गया। लोक संस्कृति, रीति रिवाज ही नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र को छूने वाले उनके गीत हमेशा हमारे मन-मस्तिष्क में गूंजते रहेंगे।

गोपाल बाबू के गीत “हिमालाको ऊंचा डाना प्यारो मेरो गांव, छविलो गढ़वाल मेरो रंगीलो कुमाऊं” लोग अक्सर गुनगुनाते हैं। नारी सौंदर्य पर लिखा गीत ‘हाय तेरी रुमाला गुलाबी मुखड़ी, के भली छाजीरे नाखेकी नथुली’, जीजा – साली संवाद का गीत ‘ओ भीना कसकै जानू दोरिहाटा …’ जैसे गीत आज भी जन मानस की पसंद हैं । वर्तमान में जो भी गायक मंच से उनके गीत गाते हैं, कृपया गाने से पहले जरूर कहें कि ” यह गीत गोपाल बाबू गोस्वामी का है ।” ऐसा कहने से आप में एक विनम्र भाव उत्पन्न होगा और उस गीतकार को श्रद्धांजलि भी होगी । अक्सर लोग उनका नाम लेना भूल जाते हैं जो दुखद है ।

आज ही लोक संस्कृति के ध्वजवाहक दिवंगत जीत सिंह नेगी का भी जन्मदिन है ।  उनका जन्म पौड़ी गढ़वाल के पैडुलस्यूं पट्टी स्थित अयाल गांव में 02 फरवरी 1925 को हुआ था। वे वर्तमान में देहरादून के धर्मपुर में रहते थे। जीत सिंह नेगी उत्तराखंड के पहले ऐसे लोकगायक हैं, जिनके गीतों का ग्रामोफोन रिकॉर्ड 1949 में यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी ने जारी किया था। इसमें 6 गीत शामिल किए गए थे। यही नहीं वे पहले गढ़वाली गीतकार थे जिनके गढ़वाली लोकगीतों को एचएमवी और एंजेल न्यू रिकॉर्डिंग कंपनी ने रिकॉर्ड किया। वे 1949 में बंबई में मूवी इंडिया की फिल्म खलीफा का सहायक निर्देशन मून आर्ट पिक्चर की फिल्म चौदहवीं रात का सहायक निर्देशन नेशनल ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कंपनी में सहायक संगीत निर्देशक रहे। वे 1955 में आकाशवाणी दिल्ली से गढ़वाली गीतों का प्रसारण शुरू होने पर पहले बैच के गायक रहे।

जीत सिंह नेगी न सिर्फ प्रसिद्ध लोकगायक थे बल्कि उत्कृष्ट संगीतकार, निर्देशक और रंगकर्मी भी रहे। उनके गीत गंगा, जौंल मगरी, छम घुंघुरू बाजला (गीत संग्रह), मलेथा की कूल (गीत नाटिका), भारी भूल (सामाजिक नाटक) समेत कई रचनाएं आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं।

लोक संगीत के क्षेत्र में उन्हें लोकरत्न (1962), गढ़ रत्न (1990), दूनरत्न (1995), मील का पत्थर (1999), मोहन उप्रेती लोक संस्कृति पुरस्कार (2000), डॉ। शिवानंद नौटियाल स्मृति सम्मान (2011) आदि ढेरों सम्मानों से नवाजा जा चुका है। जीत सिंह नेगी को ‘गोपाल बाबू गोस्वामी लीजेंडरी सिंगर’ से भी सम्मानित किया। दोनों ही विभूतियों को विनम्र श्रद्धांजलि। (लेख के कुछ अंश साभार सोसल मीडिया से संपादित हैं)