फिल्म केदार को देखना जरूरी है!

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डॉ.हरिसुमन बिष्ट

बहुत दिनों से की जा रही ‘केदार’ फिल्म को देखने की प्रतीक्षा खत्म हुई। हिंदी फिल्म ‘केदार’ का प्रीमियर शो नई दिल्ली स्थित फिल्म डिवीजन के सभागार में 13 मार्च की सांय को संपन्न हुआ था। जल्दी ही देश के विभन्न शहरों के विभिन्न हॉल में अब यह देखने को मिलेगी। उत्तराखंड के परिवेश पर बनी इस फिल्म का प्रीमियर शो देखने प्रमुख केन्द्रीय रक्षा व पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट,पूर्व केन्द्रीय कपड़ा राज्यमंत्री व अल्मोडा-पिथोरागढ़ सांसद अजय टम्टा,फिल्म प्रोड्यूसर व निर्देशक सुरेश पांडे,जतिंदर भट्टी,फिल्म निर्देशक कमल मेहता,  वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश जुगरान व सुषमा जुगरान ध्यानी,गढ़वाल हितैषिणी सभा अध्यक्ष अजय बिष्ट,कुसुम बिष्ट,वरिष्ठ पत्रकार सी एम पपने सहित प्रिंट,इलैक्ट्रॉनिक व सोशियल मीडिया के मीडियाकर्मियों के साथ-साथ फिल्म यूनिट के सभी कलाकार,तकनीशियन उपस्थिति थे।

फिल्म ‘केदार’ के प्रीमियर शो समाप्ति पर मुख्य अतिथि केन्द्रीय रक्षा व पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट ने फिल्म की कहानी को प्रभावशाली व प्रेरणादायी बताया। सांसद अजय टम्टा ने कहा,उत्तराखंड संस्कृति बहुल अंचल है,देश दुनिया इसे देखना चाहती है। उत्तराखंड के व्यक्ति की विशेष पहचान है, फिल्म ‘केदार’ ने इसे सिद्ध किया है। प्राकृतिक सौंदर्य हमारे पास है। फिर भी उत्तराखंड फिल्म निर्माण में पीछे रहा है।

केदार फिल्म में पहाड़ के जनमानस की पीड़ा को बखूबी दिखाया गया है। फिल्म के दृश्यों के माध्यम से उत्तराखंड के नैसर्गिक सौंदर्य व सुंदर पर्यटन क्षेत्रों का बेहतरीन फिल्मांकन हुआ है। फिल्म का निर्देशन को भी सराहा गया। किसी फिल्म में उसकी कहानी के साथ-साथ उसके संवाद फिल्म को जीवंत बनाने में सहायक होते हैं। केदार फिल्म के संवादों को भी कामयाबी की इसी दृष्टि से देखा और पसंद किया गया। संवादों में उत्तराखंड की बोली भाषाओं का भरपूर प्रयोग दर्शकों को सहज और सुग्ह्य लगे। कई कई संवाद तो दिल को छू गए।

दरअसल ‘केदार’ फिल्म की कहानी उत्तराखंड के एक युवा केदार सिंह नेगी के संघर्ष की कहानी है। केदार हट्टा-कट्टा साधारण परिवार का युवक उत्तराखंड के एक गांव में रह कर अपने अस्तित्व को खोजता नजर आता है। उसके बचपन में अभाव बीसियों थे किन्तु स्वास्थ सुविधाओं के अभाव में पिता की मृत्यु उसको अक्सर गहराई तक कचोटती है। गांव-देहात की गुंडागर्दी से भी केदार खूब परिचित होता है। उनसे निपटना भी जानता है। केदार के जीवन की खूबियों और उसका हृष्ट पुष्ट बदन को देख उसकी प्रेमिका की भी नजदीकिया उससे बढ़ जाती हैं। एक दिन मजबूरियों के चलते नौकरी की तलाश में केदार का गांव से दिल्ली-गुडगांव को पलायन करने पर जितना दुख केदार की मां व छोटी बहन को होता है,उससे कहीं अधिक उसकी प्रेमिका को होता है।

केदार फिल्म का मुख्य नायक है। जब वह मामा के पास दिल्ली पहुंचता है तो केदार पढ़ा लिखा समझदार तो है ही मामा केदार को गुडगांव की एक कंपनी में सेक्क्युरिटी गार्ड की नौकरी पर लगवा देता है। एक दिन बाजार में एक अकेली महिला के साथ दबंग का छेड़छाड़ करना केदार को ठीक नहीं लगता। वह अपने स्वभाव के अनुकूल उस दबंग की पिटाई कर महिला की मदद करता है। संयोग से मार-पिटाई को खेल स्टेडियम का पूर्व राष्ट्रीय बाक्सिंग कोच भी देख रहा होता है। अब यहां से कहानी नया मोड़ लेती है। स्टेडियम मैनेजमैंट द्वारा बाक्सिंग की फाइट का एक आयोजन करने का निर्णय लिया जाता है,जिसमें पाकिस्तान के जाना माना बाक्सर मूसा से भिडंत रखी जाती है। किन्तु भारत का कोई भी बाक्सर मूसा से भिड़ने की हिम्मत नहीं कर पाता है। इस आयोजन को सफल बनाने की दृष्टि से आयोजक जीतने वाले की राशि पच्चीस लाख से बढ़ा कर पचास लाख घोषित कर देते हैं। केदार इस फाइट को जीत जाता है।

फिल्म में केदार की कहानी उत्तराखण्ड के एक युवा की सामान्य सी कहानी है किंतु,परिस्थितियां उसे भारत के गांवों के हर युवा की वेदना,परिस्थितियों से जोड़कर असामान्य बना देती हैं। यानि बेरोजगार युवा इसमें कहीं न कहीं ख़ुद को जोड़ लेते हैं। यही फिल्म ‘केदार’ का मुख्य उद्देश्य है। गांवों से जुड़ने के लिए युवा वर्ग को प्रोत्साहित करना और उसका मार्ग दर्शन करना है।

हिल्स वन स्टूडियो और देशी इंजन प्रोडक्शन वैनर तले निर्मित इस फ़िल्म में एक्शन के नाम पर मारपीट तथा रोमांश है। किंतु फिल्म केदार पूरी तरह से पारिवारिक फिल्म है। अपनों के बीच,छोटे बड़ों के संग साथ देखी जा सकती है। केदार के मुख्य अभिनेता देवा धामी हैं। यह उनकी दूसरी फिल्म है। इससे पहले एक कलाकार की जिंदगी पर बनी फिल्म छोलियार में भी अपनी मुख्य भूमिका से जलवा दिखा चुके हैं। इस फिल्म में भी देवा ने प्रभावशाली भूमिका का निर्वाह किया है। नायिका की भूमिका में सुमन खंडूरी का कार्य सराहनीय है। नायक की मां की भूमिका में संयोगिता ध्यानी व अन्य कलाकारों में देव रौतेला के अभिनय को कमतर नहीं आंका जा सकता।

मुझे इस फिल्म को देखने पर अपार खुशी हुई। यद्यपि मैं देवा धामी में फिल्मों में उनकी मुख्य भूमिका को लेकर अपार संभावनाएं देख रहा था। इस फ़िल्म में उन्होंने मुझे आस्वस्थ किया और मुझे भरपूर आंनद भी दिया। मेरी खुशी उस समय दोगुना बढ़ गई जब मैंने स्वयं को कई जगह पर उपस्थित पाया। फिल्म की कहानी में,पटकथा में और संजोये गए गीतों के लेखन में। कहानी के साथ पूरा न्याय हुआ है। गीतों को अपना स्वर दिया सतेन्द्र फरंडियाल,सत्य अधिकारी,दीपा पंत व विरेन्द्र नेगी ने जिनकी सुरीली आवाज ने दर्शकों के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।

उत्तराखंड के परिवेश पर बनी इस महत्वपूर्ण फिल्म को आप भी जरूर देखना चाहेंगे। आपको देखने के लिए एक मित्र होने के नाते मैं आमंत्रित करना चाहूंगा और विनम्रतापूर्वक इस फिल्म को अपनी सुविधा से देखने का आग्रह भी करूंगा। देखकर आएगा तो आप कहेंगे फिल्म देखना जरूरी है आप भी देखकर आइए।