श्री बदरीनाथ धाम में स्थिति पांच दिव्य शिलाओं में बहुत खास हैं, नृसिंह शिला,पढ़िए यह खास जानकारी

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भुवन चंद्र उनियाल
धर्माधिकारी श्री बदरीनाथ धाम

उत्तराखंड के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का निवास स्थल है। जिसके बारे में कहा जाता हैं कि प्रचीन समय में इस स्थान पर भगवान विष्णु तपस्या की थी। जब भगवान विष्णु जी तपस्या कर रहे थे तो महालक्ष्मी जी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर उनको छाया दे रही थी। वृक्ष के रूप में लक्ष्मीजी ने श्रीहरि की बर्फ और अन्य मौसमी बाधाओं से रक्षा की थी। महालक्ष्मी जी के इस सर्मपण से भगवान प्रसन्न हुए। तब भगवान विष्णु ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था।

बद्री विशाल धाम में विष्णु जी की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। विष्णु जी की मूर्ति ध्यान मग्न मुद्रा में है। यहां कुबेर, लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां भी हैं। इसे धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है। आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा निर्धारित की गई व्यवस्था के अनुसार बद्रीनाथ मंदिर का मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है। मंदिर हर साल अप्रैल-मई से अक्टूबर-नवंबर तक दर्शनों के लिए खुला रहता है।

इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते उत्तराखंड के चार धामों में श्रद्धलुओं की संख्या बहुत कम रही है। लेकिन इस सारे संकट के बीच यात्रा जारी रही और श्रद्धलु निरंतर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए चार धामों के दर्शन के लिए पहुंचते रहे। कोरोना महामारी के बीच उत्तराखंड के चारों धामों के कपाट शीतकाल हेतु बंद होने की तीथि तय हो गई है।

बद्रीनाथ धाम के कपाट 19 नवंबर सांय 3 बजकर 35 मिनट पर शीतकाल हेतु बंद किये जायेंगे। केदारनाथ धाम के कपाट भैयादूज 16 नवंबर को प्रात: 8.30 बजे बंद होंगे। यमुनोत्री धाम के कपाट भैयादूज के अवसर पर 16 नवंबर को पूर्वाह्न में बजे बंद होंगे। गंगोत्री धाम के कपाट अन्नकूट के अवसर पर 15 नवंबर पूर्वाह्न में शीतकाल हेतु बंद होंगे। द्वितीय केदार मद्महेश्वर जी के कपाट 19 नवंबर को प्रात: 7 बजे बंद होंगे। तृतीय केदार तुंगनाथ जी के कपाट 4 नवंबर 11.30 बजे बंद हो गए है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विजयदशमी को भगवान श्री बदरीविशाल जी के कपाट बंद की घोषणा पंचांग गणना द्वारा तय की जाती है।

आज हम आपको चार धामों में एक भगवान बद्रीनाथ में स्थिति नृसिंह शिला के बारे में खास जानकारी दे रहे है। बद्रीनाथ धाम में भगवान के पांच स्वरूपों की पूजा की जाती है। विष्णु जी के इन पंच स्वरूपों को पंच बद्री कहा जाता है। बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार स्वरूपों के मंदिर भी यहीं हैं। श्री विशाल बद्री पंच स्वरूपों में से मुख्य हैं। इस क्षेत्र में प्राचीन काल में नर के साथ ही नारायण ने बद्री नामक वन में तपस्या की थी। महाभारत काल में नर-नारायण श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए थे। जिन्हें विशाल बद्री के नाम से जाना जाता है। यहां श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्घ बद्री, श्री आदि बद्री इन सभी रूपों में भगवान बद्रीनाथ यहां निवास करते हैं। जब गंगा देवी पृथ्वी पर अवतरित हुईं तो पृथ्वी में उनका प्रबल वेग सहन करने की क्षमता नहीं थी। गंगा की धारा बारह जल मार्गों में बंट गई थीं। उसमें से एक है अलकनंदा का उद्गम स्थल है। यही जगह भगवान विष्णु का निवास स्थान बना और बद्रीनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

श्री बदरीनाथ धाम में पांच दिव्य शिलाएँ हैं जिसमें से एक नृसिंह शीला भी है। भगवान नृसिंह हिरण्यकशिपु के वध के बाद भक्त शिरोमणि प्रहलाद जी के द्वारा स्तुति करने पर शांत होते हैं और फिर देवताओं के कहने पर विशालापुरी को प्रस्थान करते हैं और चिरकाल तक अलकनन्दा में स्नान एवं क्रीड़ा करते हुए वहां वे देवताओं से बात करते हैं और देवता तब अपने-अपने स्थान को गमन करते हैं और बदरीनाथ के महात्मा भगवान को आकर प्रणाम करते हैं फिर भगवान नृसिंह ऋषियों को वरदान मांगने को कहते हैं तो सभी ऋषिगण कहते हैं कि

।। ऋषयः ऊचुः ।।

यदि प्रसन्नो भगवन्, कृपया जगताम्पते ।

विशाला न परित्याज्या , वरोऽस्माकमभीप्सितः ।।

(स्कंद पुराण, वैष्णव खण्ड,अध्याय 4, श्लोक 49)

ऋषि बोले हे संसार के स्वामी आप यदि हम पर प्रसन्न हैं तो आप हम ऋषियों की इस विशाला पुरी का परित्याग कदापि न करें यही वरदान हम आपसे चाहते हैं।

 ।।  शिव उवाच ।।

एवमस्तु ततः सर्वे ,  स्वाश्रमं ऋषयो ययुः ।

नृसिंहोऽपि शिलारूपी ,  जलक्रीड़ापरोऽभवत् ।।

(स्कंद पुराण, वैष्णव खण्ड,अध्याय 4, श्लोक 50)

हरी के “ऐसा ही होगा” कहने पर सभी ऋषिगण अपने-अपने आश्रमों में चले गए एवं भगवान नृसिंह भी शिला के रूप में यहां बद्रिकाश्रम में जलक्रीड़ा में निमग्न विहार करने लगे।

यह प्रसंग आप लोग यदि पढ़ना चाहें तो स्कंद पुराण के द्वितीय खण्ड, वैष्णव खण्ड, अध्याय 4 में विस्तृत रूप से पढ़ सकते हैं ।।