गणेश गनी की कविताएं हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं वसुधा, पहल, समावर्तन, बया, सदानीरा, अकार, आकण्ठ, वागर्थ, सेतु, विपाशा, हिमप्रस्थ, सोमसी, लोकविमर्श, लहक, मणिका, बयान, अविराम सहित्यिकी, समकालीन अभिव्यक्ति, साहित्य गुंजन, दुनिया इन दिनों, सृजन सरोकार, संयोग साहित्य, प्रतिमान, समाचार पत्रों, पहली बार ब्लॉग, समकालीन जनमत ब्लॉग, सम्वेदन स्पर्श ब्लॉग, बिजूका ब्लॉग, लोकविमर्श ब्लॉग, अनुनाद ब्लॉग, दूसरी हिंदी, कविता प्रसंग आदि में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा आकाशवाणी शिमला से कविताएँ प्रसारित हो चुकी हैं। हिमतरु पत्रिका ने गणेश गनी की कविताओं पर एक विशेषांक भी प्रकाशित किया है।गणेश गनी हिमतरु के तीन विशेषांकों का सम्पादन कर चुके हैं। मणिका के प्रधान सम्पादक हैं। इरावती के एक कविता अंक युवा रचनाशीलता 2020 का सम्पादन भी गणेश गनी कर रहे हैं। यहां प्रस्तुत है गणेश गनी की कुछ कविताएं।
{1}
डर और विस्मय
चूल्हे में आग और तेज़ कर दी गई
उधर पहाड़ के उस पार
ठन्डे रेगिस्तान में
एक सन्त कवि ने कविता के शास्त्र
और आलोचना के सारे औज़ार
आग के हवाले कर दिए।
इधर रात भर तो
पता ही नहीं चलता कि
बर्फ़ कितनी गिरी है
या रुक ही गई हो
विहान में डर और विस्मय से
दरवाज़ा खोला तो
देखा कि बर्फ़ तो
आधे दरवाज़े तक चढ़ आई।
इसकी कैद से छूटने के लिए
पहले इसे काटना होगा
तब रास्ता बनेगा बाहर की ओर
और छत से बर्फ़
यदि शीघ्र न हटाई गई तो
छत बैठ भी सकती है।
बर्फ़ की डेढ़ हाथ मोटी तह को
आधा आधा करके हटाया जाए
तो बात बनेगी
वरना देवदार के पेड़ से बने
किराणु का थककर
चूर होना तय है।
धुँधले मौसम की ख़ासियत है कि
पता ही नहीं चलता
कौन सा पहर चल रहा है
बस लाल कलगी वाले मुर्गे की बांग
बताती है कि सुबह हो गई
भूरी गाय रंभाती है
और नटखट बछड़े की बेचैनी कहती है
कि यह गोधूली का समय है
रात का क्या
वो तो स्वयं आ जाती है बताने चलकर।
{2}
शपथपत्रों का लेनदेन
आधी रात और इतना सन्नाटा है कि
डायरी में शब्दों की आवाज़ सुनी जा सकती है
वे एक नई भाषा में कुछ कह रहे थे
अचानक उठे और
उसका हाथ पकड़कर
पहाड़ के पारली तरफ ले गए
मैदानी इलाके में।
पर उसे लौटना है सुबह होने से पहले
चाँद अब भी टहल रहा है
उसने झट से चाँद की उंगली पकड़ ली
घर लौट तो आया पर बहुत कुछ साथ में था
चौथा पहर सन्नाटे में बीत रहा है।
नींद में सपना और सपने में जाग
घर अब घर नहीं लग रहा
दीवारें हैं कहां!
पृथ्वी दूर एक छोटे से रेत के कण जितनी
दिखाई दे रही है
यह अंतरिक्ष भी न बड़ी अद्भुत चीज़ है कोई!
इस बीच
कुछ समझौतों और वादों को लेकर
शपथपत्रों का लेन देन हुआ
तब भी नींद नहीं टूटी
कई दिनों बाद वह गहरी नींद सोया
और पता ही नहीं चला
कब दिन चढ़ आया
जगने पर देखा तो
एक जोड़ी आँखें इन्तज़ार कर रही थीं।
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