उपन्यासकार गंगा राम राजी का जन्म 29 मई 1944 को हिमांचल प्रदेश में हुआ। आप राजकीय एस.के.टी कालेज से हिन्दी ऐसोसीएट प्रोफेसर के पद से सेवा निवृत है। आपकी अभी तक 280 से अधिक कहानियां देश-प्रदेश की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है, जो 17 कहानी संग्रहों में संकलित है। एक बाल उपन्यास सहित 9 उपन्यास प्रकाशित है।
उपन्यास ‘भौरों कभी नहीं मरा’ के लिए भारतीय वाङ्मय पीठ कोलकाता ने ‘साहित्यशिरोमणि सारस्वत सम्मान, उर्दू में अब्दुल एम.के. बारी द्वारा अनुवादित इसी उपन्यास को उर्दू अकादमी लखनऊ,बिहार ने पुरस्कृत किया।
व्यंग्या यात्रा सम्मान,गंगेश्वर उपाध्याय कहानीकार सम्मान गहमर उत्तर प्रदेश,साहित्य समर्था जयपुर द्वारा डाॅ. कुमुद टिक्कू कहानी पुरस्कार,हिमांचल अकादमी द्वारा उपन्यास विधा में अकादमी पुरस्कार,हिन्दी साहित्य भूषण 2020-रायपुर छत्तीसगढ़ और प्रतिभा पुष्प सम्मान 2020 भरतीय संस्था यू एस ए। यह प्रस्तुत है गंगा राम राजी की कहानी गुरू दक्षिणा
अपनी रूटीन से रहीम आफिस से लौट कर जब घर पहुंचकर कुछ आराम करने के बाद सोफे पर लेटा फोन पर जब वटसअप देखने लगा तो एक जगह पर रूक गया। बार.बार पढ़ने लगा,‘राजेश सर कोलकाता के वुडलैंड होस्पिटल में दाखिल हैं। करोना ने आखिरकार सर को भी नहीं छोड़ा।’ बस फिर क्या था, वटसअप पर यह समाचार रहीम को जब से मिला है तब से ही वह परेशान हो गया। जल्दी से बैठ गया। उसे लगा जैसे कि उसके डैड ही अस्पताल में दाखिल हैं। अब तो उसे राजेश सर के बीमारी की वास्तविक स्थिति जानने की बेचैनी सी होने लगी।
‘हमारे सर राजेश करोना से पीड़ित कोलकाता के वुडलैंड अस्पताल में दाखिल … परमात्मा उन्हें जल्दी से स्वस्थ करें … ’
दूसरा वटसअप मैसेज पढ़ा। वह सारे दिन आफिस के काम काज से इतना नहीं थका था जितना यह समाचार पढ़ कर वह परेशान हो गया। थकावट का नामोनिशान नहीं रहा। अब तो उठ बैठ लग गई।
जल्दी से उसी वटसअप पर रहीम ने,‘ कृपया डिटेल से वर्णन करें … ’ और बार बार फिर से वटसअप देखने लगा। अभी सांय के नौ बजने को हो रहे थे। वटसअप के नम्बर पर ही फोन किया तो फोन नो रिपलाई रहा। इधर रहीम परेशान होने लगा। राजेश सर की स्थिति के बारे में जानने के लिए वह बेचैन सा होने लगा।
‘राजेश सर हमेशा ही अपने विद्यार्थियों का ख्याल रखते। प्रत्येक विषय के निपुण, योग्य अध्यापक आजकल कम ही होते हैं और उस पर अपने विद्यार्थियों से लगाव ! अध्यापन के अतिरिक्त स्कूल की अन्य गतिविधियों में इस तरह भाग लेते थे जैसे वे अपने ही बच्चे को शिक्षा दे रहे हों या उनकी हर तरह से मदद करते हैं ….. अंदर से करते हैं …. बच्चों के सुख-दर्द में हमेशा ही शामिल हो जाते।
जब वे बारहवीं में पढ़ते थे, रहीम के साथ जो घटा था वह रहीम को याद आने लगा। एक बार फुटबाल के मैच में उसके साथ दूसरा खिलाड़ी ऐसा भिड़ा था कि रहीम वहीं पर गिर गया। रहीम को चोट आई थी। दोनों ही खिलाड़ियों को चोटें आईं परन्तु रहीम को अधिक चोट आई। दूसरे खिलाड़ी के शूज़्ा की कीलें सीधे रहीम की टांग पर लगी, उसकी टांग से खून बहुत बुरी तरह से निकलने लेगा। सर भी साथ ही खेल रहे थे। भागते हुए आए, सब खिलाड़ी इकट्ठे हो गए। टांग से बहते हुए खून को देख सर ने जल्दी से टांग को अपने रूमाल से बांध कर पास ही पार्क में अपनी गाड़ी निकाली और अस्पताल ले गए। अस्पताल तक पहुंचते ही रहीम का खून बहुत निकल गया था। टांग में फ्रैक्चर लग रहा था, टांग के दो टुकड़े के साथ खून और जख्म, साफ दिखाई दे रहा था।
अस्पताल की एमरजैंसी में सब काम होने लगा। दो-चार डाॅक्टर आ गए। उपचार तुरन्त शुरू हो गया। थोड़ी देर में डाक्टर ने सूचना दी कि लड़के को खून की आवश्यकता पड़ सकती है। फिर क्या था। फुटबाल की दो टीमें अस्पताल में मौजूद थी, सभी लड़के अस्पताल में थे। सभी ने अपने खून टैस्ट करवाए। राजेश सर ने भी टैस्ट करवाया। आश्चर्य की बात यह रही कि किसी भी मित्र का खून रहीम के खून से मैच नहीं कर रहा था। मैच किया तो केवल राजेश सर का ही। राजेश सर ने दो यूनिट खून दिया।
एक महीने के बाद रहीम चलने लाइक हो गया। रहीम को यह दास्तां आजतक नहीं भूलती। दोस्त आपस में गप-शप मारते हुए रहीम को कहते,
‘अब तेरी नस नस में हिन्दु का खून दौड़ रहा है अब तूं हिन्दु हो गया।’ और जोर का ठहाका लगाते।
यह हिंन्दू -मुसलमान वाली गप-शप सारे स्कूल में फैलने लगी। मित्र हंसी-मज़ाक में रहीम को इस पर कुछ सुना ही देते थे। बात एक से दूसरे और फिर तीसरे तक पहुंचते हुए जब राजेश सर तक पहुंची तो उन्होंने सबको एक जगह बुलाया और सबको कौमन रूम में ले आए। किसी को कुछ पता नहीं था कि क्या होने वाला है सब में एक उत्सुकता बनी हुई थी, क्योंकि राजेश सर कभी भी विद्यार्थियों को कुछ समझाते, कुछ बोलते तो वे हमेशा इसी तरह से सबको इकट्ठा कर कौमन रूम में ही ले आते थे।
राजेश सर की उम्र कोई बहुत बड़ी नहीं थी यही कोई चालीस को पार किए होंगे, उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि सब लड़के उनकी बहुत इज्जत करते थे, कोई कुछ नहीं बोल रहा था। सब सुनने के लिए उत्सुक थे। रहीम भी अभी एक बैसाखी का सहारा लिए आगे बैंच पर बैठा था। सब राजेश सर को देखने लगे। सब उत्सुक, सब चुप थे, सब शांत थे,।
तभी सर बोले, ‘ मैं कुछ सुनाने जा रहा हूं … इसे केवल एंटरटेनमैंट ही न समझा जाए … इसके अंदर का अर्थ महत्व पूर्ण है उसको ही पकड़ा जाए …….
सब शांत तो थे ही तभी सबके कानों में उनकी एक मधुर आवाज गूंज उठी,
‘‘तूु हिन्दु बनेगा न मुसलमान बनेगा
इनसान की औलाद है इनसान बनेगा……………… ’’
पूरा गाना उन्होंने गाया। गाना समाप्त होते ही सभी ने तालियां बजाई …. सर …. सर और सर कुछ न बोलते हुए कमरे से बाहर चले गए थे।
तभी लीडर लड़का उठा … बोला,
‘‘ फ्रैंडज़, सर ने यह गाना क्यों गाया … मेरा ख्याल है कि आप सभी समझ गए होंगे जिस तीर से हम रहीम को छेड़ते थे …. तेरा खून अब हिंदू का हो गया है …. सर ने उसी संदर्भ में यह गाना गाया है … सर की हर बात सांकेतिक होती है … हमें भी इस तरह की बातें चाहे हास्य में ही हो नहीं करनी चाहिए। इनका यह संदेश हमें सब जगह पहुंचाना चाहिए …. अब सर के कमरे में चलते है उनसे इस बात की शपथ लेते हैं और यही गाना हम रहीम को आगे करते हुए उनके सामने गाएंगे …. ’’
सब एक साथ उनके कमरे में चले गए। कमरा छोटा तो पड़ा परन्तु सब नीचे बैठे और बिना कुछ भूमिका के सबने गाना शुरू किया …‘……. नफरत जो सिखाए वो धर्म तेरा नहीं है
इन्सां को रौंदे वो कदम तेरा नहीं है
कुरान न हो जिसमें वो मंदिर नहीं तेरा
गीता न हो जिसमें वो हरम तेरा नहीं है
तू अमन का और सुलह का अरमान बनेगा’
जब गा बैठे तो सर ने सबको गले लगाया। फिर अपनी पत्नी को लड्डू के पैकेट निकालने को कहा, सबको लड्डू बांटे गए।
‘‘मुझे मालूम था आप सब मेरे से मिलने आओगे। इसलिए मैंने पहले ही लड्डू मंगवा रखे थे।’’
‘‘सर आपकी हर बात में कोई न कोई अर्थ होता है हम आपकी हर बात को गहरे से लेते आए हैं। आपकी कृपा हमारे पर बनी रहे …… ’’ लीडर बोल रहा था।
सर ने लीडर के कंधे पर हाथ रखा और सबकी ओर देख मुस्कुराने लगे। सर कुछ नहीं बोले थे। पत्नी के साथ बैठे रहे। वह भी कुछ नहीं बोली। उनका मन भर आया था।’
कितनी पुरानी घटना, यही कोई सात आठ साल हुए होंगे, रहीम सर को याद करता रहा। फिर फोन पर ध्यान गया तो कोलकाता में रहने वाला कोई भी मित्र फोन नहीं उठा पा रहा था। रहीम निराश होने लगा।
वह सोचने लगा, ‘मैं इस समय गुड़गांव में हंू सर कोलकोता में। करोना काल में आना जाना सब बंद ! क्या किया जाए। जिस फोन के मोबाइल के वटसअप पर समाचार देखा वह भी फोन नहीं उठा रहा था। मेरे लिए गंभीर स्थिति होती जा रही थी।
खाना मैं स्वयं ही बनाता था। खाना खाने की इच्छा भी नहीं हो रही थी और जो एक घंटे पहले दाल तैयार कर रखी थी उस ओर भी ध्यान नहीं जा रहा था। मन में एक ही बात हो रही थी कि किस तरह से सर का पता कर लिया जाए।
सब मित्र अपने अपने काम में न जाने कहां कहां हैं ? अब संपर्क भी दो चार को छोड़ कर नहीं रहा। आदमी भी अपने ‘ लून तेल लकड़ी में ही उलझ जाता रहा है’ जब किसी भी मित्र से संपर्क नहीं हो पा रहा था तो दिमाग में आया कि जिस तरह से सर विद्यार्थियों में लोक प्रिय हैं उसी तरह से वे अध्यापक वर्ग में भी लोकप्रिय रहे हैं मेरे दिमाग में प्रिंसीपल से बात करने की आने लगी। उनके फोन नम्बर की तलाश होने लगी तो ख्याल आया कि स्कूल का प्रोस्पैक्ट उसकी सर्टीफिकेट की फाइल में पड़ा है वहीं स्कूल का, प्रिंसीपल का सब नम्बर मिल जाएंगे। जल्दी से अपनी फाइल निकाली और प्रोस्पैक्ट मिल गया, खुश हो गया।
प्रिंसीपल का नम्बर क्या मिला मुझे तो एक खोया हुआ खजाना मिल गया। यह भी विचार आया कि कहीं प्रिंसीपल रिटायर तो नहीं हो गए होंगे। देखते हैं ट्राई तो करनी ही चाहिए। मोबाइल पकड़ा ही था कि मोबाइल बज उठा। मैंने उसे काट दिया क्योंकि मैं तो प्रिंसीपल का नम्बर डाइल कर रहा था। लेकिन मोबाइल फिर बज उठा। मैं काटने वाला ही था कि सोचने लगा सुन ही लूं किस का है।
‘‘ हैलो … ’’
‘‘रहीम ….. मैंने तुझे दिन में भी फोन किया था परन्तु तेरा फोन स्विच आॅफ था … ’’
‘‘अरे दीपक …. साला कितना फोन करता रहा तेरे को ….. सर की बात सुना जल्दी … ’’
‘‘देख मैं अभी भी अस्पताल में ही था। सर की बीमारी का पता चला तो रहा नहीं गया। जिन लोगों को पता नहीं था सबको वटसअप भी कर दिया है फेस बुक पर भी डाला है और टविटर भी किया है जिससे सब दोस्तों को पता चल जाए …… ’’
‘‘यार पहले यह बता कि सर कैसे हैं ?’’
‘‘सर अभी ठीक नहीं हैं। हम मिल तो सकते नहीं। रिसैप्शन पर ही पता कर रहे हैं। सर आई सी यू में हैं, वैंटिलेटर पर हैं ….. यार वैंटिलेटर का खर्चा वह रिसैप्शनिस्ट बड़ा बता रहा था। कह रहा था कि कल अगर एक लाख जमा नहीं कराओगे तो उन्हें आई सी यू से शिफ्ट कर दिया जाएगा ….. ’’
‘‘कोई बात नहीं … सब से बात करो जितना पैसा जिसके पास है … अपना एकाउंट दो इकट्ठा हो जाएगा। …. बड़ी बात नहीं इन अस्पताल वालों के मुह पर सुबह ही एक लाख मारो …. इसानियत के सर पर भी कमाई देखते हैं यह अस्पताल वाले ….. मैं अभी आपको पचास हजार भेज रहा हूं … जो मेरे संपर्क में है उन्हें भी कहता हूं … तुम वहीं संपर्क में रहो मैं तो नहीं आ सकता। कोई फ्लाइट नहीं, कोई ट्रेन नहीं, कोई बात नहीं। मनी इज़ नो प्राब्लम यार … सर सलामत रहने चाहिएं … मुझे एकाउंट नम्बर भेज …. और संपर्क में रह बताते जाया करो ….. ’’
‘‘ओके….भेजता हूं … ’’
‘‘ओ के डियर…..प्लीज़ रिमेन इन कानटैक्ट … ’’
बस फिर राहत की सांस ली। उसका एकांउट नम्बर आते ही सबसे पहले मैंने पचास हजार एक दम से ट्रांसफर कियज्ञं
कांटैक्ट होने की खुशी होने लगी थी। सोचने लगा कि अब रोज ही जानकारी मिलती रहेगी। मेरा ध्यान अब खाने पर जाने लगा। जो बन सकता था बनाया और सोने की सोचने लगा।
ग्यारह बजने को हो रहे थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी। देखा दीपक का फोन था।
‘‘हैलो दीपक …’’
‘‘ रहीम तेरी पैसे की शुरूआत ऐसी हुई कि अब मेरे एकाउंट में तीन लाख हो गया है। हम अमीर हो गए हैं। अभी कल तक और पैसा आ जाएगा। सभी मित्रों के साथ संपर्क में हूं … यार .. अब सर ठीक हो जाएंगे। हमारी शुभकामनाओं में बल है …. डोंट वरी डियर …. ’’
‘‘ दीपक पैसे की कमी सर को नहीं होने देंगे …. ’’
‘‘ रहीम यार एक बात सर की वाइफ नीचे रिसैप्शन पर ही बैठी रहती है हमें देख उनकी आंखें भर जातीं हैं ….. ’’
‘‘ वह भी क्या करें बीमारी ही ऐसी कोई अपना भी चाहते हुए नहीं मिल सकता है अंदर डाॅक्टर क्या कर रहे हैं ….. क्या उनका ट्रीटमैंट भी ठीक चल रहा है कि नहीं कोई पता नहीं …. तुम मैडम का हौंसला बना के रखो …. ’’
जैसे जैसे सभी सहपाठियों को पता चलता गया वे एकाउंट में पैसा डालते गए। और देखते ही देखते ग्यारह लाख रूपए इक्ट्ठा हो गए। यह तो मुझे बाद में पता चला था कि मैडम ने अपने सारे गहने केवल मंगलसूत्र को छोड़ सब बेच दिए। कहते ,
‘ सबसे बड़ा गहना मेरा पति है। पति है तो गहने हैं …… ’
वटसअप पर बात वायरल होती गई … सब जगह पर पहुंचती गई। सभी ने उसे वायरल करने की कोशिश भी की कि सभी स्टूडैंटस को पता चल पड़े। जब बात दूर तक चलने लगी तो होते होते अस्पताल के डाक्टरों तक भी पहुंच ही गई। दो दिन बाद डाॅक्टर जो उनके उपचार कर रहे थे उनको पता चला कि जो टीचर बीमार पड़े हैं उनके लिए सारे पैसे उनके स्टूडैंटस ने इक्ट्ठे किए हैं तो वे बहुत प्रभावित हुए और उनको अपने टीचर का ख्याल आ गया, डाक्टर ने भी अपने टविटर पर लिखा,
‘‘ देखो हम भी यहां अपने टीचर की बदौलत ही पहुंचे हैं टीचर राष्ट्र निर्माता है। मैं ऐसे टीचर को सलाम करता हूं जिनके स्टूडैंटस उनके साथ खड़े हैं … मैं भी अपनी फीस नहीं लूंगा और टीचर के उपचार के लिए भरसक प्रयत्न करूंगा …. मैं भी तो अपने टीचर की बदौलत यहां पहुंचा हूं … ’’
यह सब जानकर मुझे अपने टीचर से मिलने की इच्छा और अधिक होने लगी परन्तु मेरी मजबूरी ! क्या किया जाए ? रात दिन संपर्क में रहा। यहां तक सभी मित्र कभी कभी जूम पर भी बात कर लिया करते।
सर की बातें, हमारी मदद, उनके और पुराने विद्यार्थियों की मदद धीरे धीरे सामने आने लगी। बात एन डी टी वी तक पहुंच गई और एन डी टी वी पर हमारी इस न्यूज़ को बहुत अच्छे ढंग से दिखाया गया, डाक्टरों की इंटरव्यू के साथ जब अपने सर के शब्द कानों में पड़े, ‘ मुझे अपने विद्यार्थियों पर नाज़ है जिस टीचर के विद्यार्थी इस तरह से हों उसका करोना तो क्या करोने का बाप भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता .. ’ सर की इंटरव्यू भी जब एन डी टी वी पर दिखाई तो मैं गद गद हो गया। वे आगे बोले,
‘‘ मैं अपने विद्याथियों का आभारी हूं उनकी गुरूदक्षिणा से मैं ठीक हो गया हूं। वास्तव में मैं अपने विद्यार्थियों की शुभकामनाओं से ही ठीक हुआ हूं …. ’’
बोलते हुए उनका गला भर आया था और इधर इंटरव्यू देखते मैं भी तो भीग गया था। ’
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