आज है कुशवट एवं शनिश्चरा अमावस्या,जाने क्या करें और क्या नहीं!

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आचार्य नीरज रतूड़ी

कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश एकत्र लेते हैं। प्रत्येक धार्मिक कार्यो के लिए कुश का इस्तमाल किया जाता है। शास्त्रों में भी दस तरह की कुशा का वर्णन प्राप्त होता है। जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो,इसमें सात पत्ती हो, कोई भाग कटा न हो,पूर्ण हरा हो, तो वह कुशा देवताओं तथा पित्त दोनों कृत्यों के लिए उचित मानी जाती है। कुशा तोड़ते समय‘हूं फट्’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए!

अघोरा चतुरदशी के दिन तर्पण कार्य भी किए जाते हैं मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है. सोलन,सिरमौर और शिमला जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में परिजनों को बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर कांटेदार झाडिय़ों को लगाते हैं यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.!

         -:’अघोरा चतुर्दशी महत्व’:-

अघोरा चतुर्दशी हिमाचल के अलावा उत्तराखंड,असम,सिक्किम और नेपाल में भी मनाई जाती है। इस दिन कुशा को धरती से उखाड़कर एकत्रित करके रखना शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत,स्नान,दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है। शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए. कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए.!

                -:’कुशाग्रहणी अमावस्या फल’:-

कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ,स्नान,जप,तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है। इसलिए यह संयम,साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है। पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान है। भगवान विष्णु की आराधना की जाती है यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है। जिससे तन,मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है.!

              -:’कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व’:-

अघोर चतुर्दशी तिथि के दिन विशेष रुप से पितरों के लिये किए जाने वाले कार्य किये जाते है। इस दिन पितरों के लिये व्रत और अन्य कार्य करने से पितरों की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है। शास्त्रों में में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण,दान-पुण्य का महत्व है। जब अमावस्या के दिन सोम,मंगलवार और गुरुवार के साथ जब अनुराधा, विशाखा और स्वाति नक्षत्र का योग बनता है,तो यह बहुत पवित्र योग माना गया है। इसी तरह शनिवार और चतुर्दशी का योग भी विशेष फल देने वाला माना जाता है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाती है!