उत्तराखंड-लोक गायक किशन सिंह पंवार का देहरादून में निधन,संगीत जगत में शोक की लहर

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लोक गायक किशन सिंह पंवार नहीं रहे। सोमवार को देहरादून के एक अस्पताल में निधन हो गया है। 72 वर्षिय किशन सिंह पंवार उत्तरकाशी के राजकीय इंटर कालेज गंगोरी में शिक्षक थे। वह शिक्षण कार्य के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति और लोग गीतों के गायन एवं सरंक्षण के लिए समर्पित थे। पहाड़ी लोकगीतों को गाने का अंदाज किशन सिंह पंवार का सबसे अलग था।

आज से 30-35 साल पहले अपनी सुरीली आवाज से गढ़वाली जनमानस का तृप्त मनोरंजन करने वाले किशन सिंह पंवार इस दुनिया से विदा हो गए। 80 के दशक में टेपरिकॉर्डर के दौर में धार-धार,गांव-गांव शृंगारिक और जनजागरूकता गीतों से छाप छोड़ने वाले किशन सिंह अध्यापक से प्रसिद्ध गायक बन गए थे। ‘कै गऊं की होली छोरी तिमलू दाणी’ ‘न प्ये सपुरी तमाखू’, ‘ऋतु बौडी़ ऐगी’, ‘यूं आंख्यों न क्या-क्या नी देखी’, ‘बीडी़ को बंडल’ जैसे उनके गीत कालजयी बन गए और उन्हें अमर कर गए। तब आज की तरह संगीत यंत्रों की प्रचुरता और समृद्धि-सुविधाएं नहीं थी,परंतु किशन जी ने संघर्ष के बूते अपनी मनोहारी आवाज को गढ़वालियों तक पहुंचाने में कसर नहीं छोडी़। शादियों में उनकी कैसेट्स की धूम रहती थी। उनके शृंगार गीतों में पवित्रता थी। उनमें पहाड़ का भोलापन और निश्छलता थी।

उनके गीतों के नायक-नायिका,मेल-मुलाकात,मनोविनोद और हंसी-मजाक करते थे,परंतु मर्यादा के आवरण में रहकर। उनके गीत का नायक-नायिका को बांज काटने के बहाने भेंट करने को बुलाता था। उनके गीतों की भीनी सुगंध आत्मा को तृप्ति और मन को सुकून देती थी।

किशन सिंह पंवार गानों ने जनमानस के मन पर और दिलों पर अलग छाप छोड़ी। उनके गीत आज भी प्रासंगिक हैं और लोक समाज को संदेश देने वाले हैं। तंबाकू निषेध को लेकर किशन सिंह पंवार ने 90 के दशक में,”न पे सफरी तमाखू… त्वैन जुकड़ी फुंकण” गीत काफी लोकप्रिय हुआ। टिहरी गढ़वाल के प्रतापनगर प्रखंड में रमोली पट्टी के नाग गांव में जन्मे किशन सिंह पंवार ने 72 साल की उम्र में देहरादून के अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन में लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी,ओम बधाणी,जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण,किशन महिपाल,लोक गायिका अनुराधा निराला और मीना राणा ने शोक व्यक्त किया।