कहा जाता है जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि ” कोरोना की गंभीर समस्याओं से जूझते हुए एक कवि ही हो सकता है। जो अपने विचलित मन को संतुलन कर कविता के रूप में लिख सके। कवि- हृदय का जीवन-संदेश जब कविता के रूप में सामने आता है तो वो एक जीवन दर्शन बन कर उभरता है। ऐसा ही जीवन दर्शन पढ़ने को मिलता है।
देश के वर्तमान शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की कविता ” कोरोना ” में जो की कोरोना जैसी गंभीर बीमारी में एम्स में रहते हुए डॉ “निशंक” ने “एक जंग लड़ते हुए” शीर्षक से जो कविताएँ लिखी हैं उस संग्रह से एक कविता है। कोरोना जैसी इस घातक बीमारी में भी निशंक जीवटता से अपने मंत्रालय के कार्यों के साथ अपनी कविताओं को स्वरुप देने में लगे हैं। वो उनकी सकारात्मकता उनकी ढृढ़संकल्पता उनकी रचनाकमक सोच को दिखता है और बताता है की वो हर मुसीबत में हिमालय की भाँति अडिग खड़े एक सच्चे हिमालय पुत्र हैं। कैसे सकारात्मकता से आप घोर से घोर अंधकार को दूर कर प्रकाश की ओर बढ़ा जा सकता है ये निशंक से सीख सकते हैं। जब भी थका और निराश मन आपको घेरे आप इन कविताओं से प्रेरणा ले अपने को आशा की ओर ले जा सकते हैं। कोविड की गंभीर समस्याओं के चलते एम्स दिल्ली में जब कवि निशंक घोर अंधकार में भी उजाले दे जाने वाली भाव की ये कविताएँ लिख रहे होंगे तो उनके मन का भाव उनकी इस कविता में परिलक्षित होता है। रात-रात भर यूँ जाग कर क्या रौशनी ढूंढ लाना हर कवि की कविता मैं ऐसा हौसला कहाँ।
आप भी पढ़िए उनकी कविता “कोरोना”
“हार कहाँ मानी है मैंने?
रार कहाँ ठानी है मैंने?
मैं तो अपने पथ-संघर्षों का
पालन करता आया हूँ।
क्यों आए तुम कोरोना मुझ तक?
तुमको बैरंग ही जाना है।
पूछ सको तो पूछो मुझको,
मैंने मन में ठाना है।
तुम्हीं न जाने,
आए कैसे मुझमें ऐसे?
पर,मैं तुम पर भी छाया हूँ,
मैं तिल-तिल जल
मिटा तिमिर को
आशाओं को बोऊँगा;
नहीं आज तक सोया हूँ
अब कहाँ मैं सोऊँगा?
देखो, इस घनघोर तिमिर में
मैं जीवन-दीप जलाया हूँ।
तुम्हीं न जाने आए कैसे,
पर देखो, मैं तुम पर भी छाया हूँ।”
निशंक दिल्ली, एम्स कक्ष-704,
आलेखः- अरविंद मालगुड़ी
आपके पद्य में बहुत कुछ छुपा है। अगर हम मन में ठान लें तो विजय हमारी ही होगी जो आपने कर दिखाया। देश आपके स्वस्थ होने और फिर से अपने जगह पर दुबारा आसीन देखने के लिए आतुर है । धन्यवाद ।
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