आकाश की पत्तियों से चन्द बातें-डॉ.हरिसुमन बिष्ट

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साहित्य का अपना सौष्ठव होता है.इसे जिस खूबी से रचा जाता है,वही उसके रचाव का अद्भुत सौन्दर्य होता है। लिखने और उसके उपरान्त बार-बार दोहराने से सौन्दर्य निखरता है। बार-बार निखारने की कला ही सौन्दर्य शास्त्र गढ़ती है। उसे बार-बार देखना,निहारना उसमें जीवन निरुपित होते पाना ही साहित्य का होना है,यही सृजनात्मक कार्य का उद्देश्य होता है।


इस संग्रह में शामिल सभी दस कहानियाँ इसी उद्देश्य से लिखी गयी हैं। इनमें सिर्फ वर्त्तमान है,जो ठहरता नहीं,दूसरे ही पल भूतकाल को गढ़ लेती हैं। काल की इस क्षणिक संधि में रचना को गढ़ना ही रचनाकार की साहित्य सिद्दी है। किसी रचनाकार के लिए संधिकाल को चुनना आसान नहीं बहुत परिश्रम का होता है।
देश-दुनिया का भूत और वर्तमान ही अधिकांश रचनाओं का केंद्रीय विषय रहा है,भविष्य को गढ़ा नहीं जा सकता,उसकी कल्पना जरुर की जा सकती है। इनमें झूलती संध्या होती है तो भोर की उतनी ही उजास भी है। समय की ताकत और उसकी खूबियों को दोनों रूपों में देखा तथा परखा जा सकता है। यही ताकत तब और बढ़ जाती है,जब रचना को कभी कहानी के रूप में सुना और पढ़ा जाता है तो,कभी नाटक और लघु वृत्त चित्र के रूप में आत्मसात किया जाता है।


एक किस्से को कभी सुनना,पढ़ना और कभी मंचित तो कभी चल चित्र रूप में रूपानान्तरित होते देखना ही क्षणिक संधि है. ऐसी रचनाओं को एक विधा में बाँधा नहीं जा सकता,मूल विधा से दूसरी विधा में रूपांतरित होना ही किसी रचना की नयी ताकत बन जाती है। जिसका एहसास वह रचना कराती रहती है,यहीं रचनाकार की सफलता शामिल हो जाती है।
चयनित रचनाएँ जीवन से जुड़े अनेक कंथ,अनेक किस्से हैं,किस्से जो मनगढ़ंत होते हैं,किस्से जो किसी यथार्थ के करीब हो जाते हैं। इन किस्सों से मनोरंजन करना नहीं है,ये हिमालयी जीवन के दुरूह पलों के आख्यान हैं। जिन्हें हिमालयी परिवेश को लेकर समय-समय पर बने-बिगड़े मनोभावों का संग्रह भी कह सकते हैं। जिनमें पात्रों के जीवन को समझने के लिए उनके चरित्र,उनकी कथन शैली,कथा विन्यास के साथ-साथ सम्पूर्णता में परिवेश को प्रदर्शित किया गया है,जो किसी पात्र के मनोभावों उसकी स्थानीयता को समझने के लिए जरूरी होता है.परिवेश से गुजरने के मायने समग्रता में जीवन को समझना है।


जिसका रचना और रचनाकार के लिए विशेष महत्व होता है। मेरी दृष्टि में कोई पात्र झक जुनाली रात में मुग्ध भावों से जीवन का आनंद प्राप्त कर सकता है,भरपूर मनोरंजन से खुद को समृद्ध कर सकता है,किन्तु चाँद पर जाने का सपना संजो नहीं सकता। असल में वह ठीक उसी वक्त चाँद के आकर-प्रकार में तवे में सिंकती गोल-गोल रोटी को पा लेने का सपना अपनी खुली आँखों से अवश्य देखता है। कभी-कभी वह झूलती चांदनी में चाँद को ही रोटी समझ बैठता है,चाँदनी में जीवन को ढूँढने लगता है।
सकारात्मक दृष्टि जीवन को प्रगति की तरफ ले जाती है। विषम परिस्थियाँ जीवन को गढ़मढ कर देती हैं,जो जीवन को अँधेरे की तरफ धकेलती हैं। दोनों परिस्थितियों में जीवन को बचा ले जाना,अपने को न भूलना,अपने स्वत्व की अनुभूति करवाना साहित्य सृजन की पहली शर्त होती है।
अतःसृजनात्मक कार्य में जीवन को बचाने का किस्सा ही किसी रचना की सफलता की गारेंटी दे देता है. उस रचाव में घटनाएँ रचनाकार को प्रभावित करती हैं,जो कभी रोमांचित करती हैं, कभी द्रवित करती हैं। साहित्य हृदय का उद्वेग है,छोटी-बड़ी घटनाएँ हृदय को उद्वेलित करती हैं। उसकी तमाम विधाएँ उस उद्वेलन के प्रकटीकरण के माध्यम भर होती हैं। विधा का चुनाव किसी रचनाकार का निजी तथा अपनी सुविधा के अनुकूल होता है। इसके मूल में भी हृदय का उद्वेलन ही होता है-जो किसी विधा से अतिरेक लगाव को प्रकट करता है। साहित्य की चाहे वह लोक साहित्य की समृद्ध परम्परा हो,या फिर गौरव शाली शास्त्रीय परम्परा से जुड़ना,रचनाकार का अपना निर्णय होता है।
इस संग्रह की कहानियां मेरी पसंदीदा हैं,इनका सावधानीपूर्वक किया चुनाव मेरा अपना है। मेरी दृष्टि में ये कहानियां ही मेरी अपनी विशिष्ठ हो सकती हैं,इनके चुनाव करते समय मैंने गंभीरता से सोचा है और कई बार खुद से सवाल भी किए हैं। सवाल और उनके उत्तर को अपने भीतर के एकांत में दोहराया भी है-तब सामाजिक त्रासदियों के प्रति सजग,जागरुक,जीवन विरोधी आदर्शों,रूढ़ संवादों तथा मृतप्राय प्रतिक्रियाओं का खुलाशा करते मानव कल्याण की अपनी प्राथमिकता से लवरेज इन कहानियों में विशेष होने के गुण को पाया है।


ऐसा मैंने किसी रणनीति के तहत नहीं किया। खुद-ब-खुद सवाल बनते और सुलझते गए। उनमें किसी सम्पन्न समाज का किस्सा नहीं है। ऐसा क्यों हुआ है? क्यों होता है कि मेरी सृजनात्मक दुनिया में हाशिए पर ठहरा हुआ जीवन फुदकने लगता है और मैं उसे देखकर खुश होने लगता हूँ। उससे परिचित होता हूँ,मुझे हमेशा क्षितिज के उस पार का खुशहाल जीवन मुग्ध करने लगता है तो तंग गलियों में खुला समाज और चौड़ी सड़कों में हैवानियत से भरी कुंठाएं कचोटने लगती हैं।
यही मेरा रचना संसार है.जब इन कहानियों को पिरोया तो उनमें नदी,पहाड़,हिमालय तथा हिमालयी जीवन का कठिन पक्ष-किसान,मजदूर,महिलाऐं और अनेकों प्रकार की त्रासदियों का ही बोलबाला सामने आया और जब महानगरीय जीवन को ढूंढा तब-बाबू,मोची,घरेलू कामकाजी महिलाऐं और फूटपाथी जीवन की उसमें प्रचुरता मिली। दोनों ही परिवेश में पात्रों का जीवन संघर्ष अपने जीवन से जुड़ा संघर्ष लगा,सोचा ये तो मेरी पसंद और विशिष्ठ कहानियां हैं। भले ही कई बार अपने देखने और सुनने पर मुझे संदेह हुआ और उससे भारी कोफ़्त भी हुई थी,किन्तु’ आग’,’मछरंगा’,’चिशाव’ और ‘प्रेक्षागृह’ सहित सभी कहानियों को जीवन अनदेखा नहीं कर सकता था। इस देखे और भोगे हुए को प्रबुद्ध पाठकों का भरपूर समर्थन मिलता रहा है। मैं अपने सभी प्रिय पाठक के लिए इस संग्रह की कहानियों को उनकी पसंद से जोड़ रहा हूं।