‘राणा’जी माफ करना…53 साल के हुए हिंदी फिल्मों के सशक्त अभिनेता आशुतोष राणा

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पंकज कौरव
पटकथा एवं संवाद लेखक

ऐसा लगने में कोई हर्ज़ नहीं कि आपका जन्म एक ख़ास मकसद के लिए हुआ है। दरअसल हम सब अपनी-अपनी ‘मैट्रिक्स’ के ‘नियो’ हैं, जिनके कान में कभी न कभी कोई ‘मॉर्फीज़’ आकर कहता है – ‘यू आर द चोज़ेन वन।’ इस मैट्रिक्स को तोड़ने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं है। आशुतोष राणा को भी कुदरत ने ऐसा ही कोई मैट्रिक्स तोड़ने के लिए चुना था। उन्होंने वह मायाजाल तोड़ा भी लेकिन शायद वे इतने प्रिव्हिलेज़्ड रहे हैं कि ख़ुद को मिले मौकों की कद्र नहीं कर पाए और शुरूआत में अपनी एक ख़ास चमक बिखेरने के बाद उसी मायाजाल में कहीं खो गए। 10 नवंबर को उनका जन्मदिन था,और किसी के जन्मदिन पर उसे एक ‘नियो’ होने का संबल देने से बड़ा तोह्फ़ा शायद नहीं होता।

10 नवंबर, 1967 को गाडरवाड़ा, मध्यप्रदेश में जन्में आशुतोष राणा का पूरा नाम आशुतोष रामनारायण नीखरा है। वे मध्यप्रदेश के एक प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं। उनके चाचा रामेश्वर नीखरा मध्यप्रदेश से कई बार सांसद रहे हैं। जीवन में उन्होंने जिस चीज़ की भी कामना की लगभग वे सारी चीज़ें उनकी ज़िन्दगी में बगैर किसी ज़्यादा ‘संघर्ष’ संभव होती चली गईं। यहां तक कि नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के जिस लॉट से वह आते हैं, उसी लॉट में मनोज वाजपेयी जैसे अभिनेता शामिल होने के लिए तीन-तीन कोशिशें करने के बाद मायूस होकर आत्महत्या करने चल पड़े थे। बहरहाल आशुतोष राणा न सिर्फ एनएसडी पहुंचे बल्कि अपना डिप्लोमा पूरा करने के बाद उन्हें मोटी सैलरी पर एनएसडी में ही नौकरी भी ऑफर हुई लेकिन उन्होंने मुंबई का रुख़ कर लिया।

27वें साल में उन्हें एक्टिंग का पहला ब्रेक मिला। महेश भट्ट के धारावाहिक ‘स्वाभिमान’ में उन्हें एक गुंडे का रोल मिला था। इस किरदार से उन्होंने ऐसी छाप छोड़ी कि उन्हें जल्द ही फ़िल्मों में कई बेहद यादगार रोल निभाने का मौका मिला। तमन्ना(1997), दुश्मन(1998) और संघर्ष(1999) ऐसी ही कुछ फिल्में हैं, जिनमें उनके अभिनय की छाप ख़ासतौर पर यादगार रही है। लेकिन इत्तेफ़ाक से 1999 में उनका पहला सैटर्न रिटर्न खत्म हो चुका था। 27वें से 32वें साल तक का वह ट्रांज़ीशन फ़ेज़ ही अकसर किसी को भी एक नए रास्ते पर लाकर खड़ा कर देता है। आगे हमें ख़ुद ही बढ़ना होता है।

आशुतोष राणा इतने मजबूर शायद ही कभी रहे हों कि उन्हें पेट पालने के लिए ऑफ़ होने वाले कोई भी रोल करने पड़ते लेकिन उन्होंने पता नहीं कैसे-कैसे रोल किए। नतीज़ा लगातार काम करते हुए भी वे पिछले बीस सालों में कोई महत्वपूर्ण काम करने में नाकाम रहे। हो सकता है इसमें थोड़ा बहुत रोल उनके आध्यात्मोन्मुख होने का भी रहा हो। दरअसल पिछले कई सालों से वे विनोद खन्ना की ही तरह अध्यात्म के पथ पर भी चलते रहे हैं।

पिछले कुछ सालों में अभिनय में उनकी सक्रियता वापस बढ़ी है और वे कुछ महत्वपूर्ण व्यवसायिक फिल्मों में भी नज़र आए हैं, जैसे मराठी फिल्म ‘सैराट’ पर बनी धड़क(2018), अभिषेक चौबे की सोनचिरैया(2019) और तिग्मांशु धूलिया की मिलन टाकीज़(2019) में नज़र आ चुके हैं।

जीवन के 53 साल पूरे कर चुके आशुतोष राणा जल्द ही अपने दूसरे सैटर्न रिटर्न में प्रवेश करने वाले हैं। ऐसे में उन्मीद की जा सकती है कि वे फिर कुछ ऐसी यादगार भूमिकाएं ज़रूर देंगे जिन्हें सिनेप्रेमी आसानी से नहीं भुला पाएंगे।

“सैटर्न रिटर्न दरअसल पाश्चात्य ज्योतिष का एक सिद्धांत है। सैटर्न रिटर्न की मान्यता के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 27वें से लेकर 32वें वर्ष के बीच बेहद महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं। जीवन में जटिलता ऐसे घुल जाती है। जैसे पानी में नमक और चीनी। एक भयंकर छटपटाहट और बेचैनी पैदा होती है। इस परिस्थिति से पार पाने का एक ही तरीका है, उस X-Factor की खोज जो आपका होना तय करे… जो यह साहस जुटा लेते हैं वे पार लग जाते हैं बाकी एक किस्म के अफसोस की परछायी से जीवनभर बचने की कोशिश करते रहते हैं”।