ऐसे ही नहीं कहा जाता,बाबा भुकुंट भैरव को केदारनाथ का पहला रावल,3001 ईसा पूर्व से कर रहे केदारपुरी की रक्षा

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केदारनाथ के रक्षक के रूप में पूजे जाने वाले भगवान भैरवनाथ के कपाट वैदिक मंत्रोच्चारण एवं विधि-विधान के साथ शीतकाल के छह माह के लिए बंद कर दिए गए है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाबा केदारनाथ के कपाट बंद होने से पहले भैरवनाथ के कपाट बंद होने की परम्परा है। इस अवसर पर भैरवनाथ के पश्वा अवरित होकर भक्तों को आशीर्वाद देते है।

बाबा केदारनाथ धाम के कपाट भैयादूज 16 नवंबर को सुबह 8.30 बजे बंद होंगे। भगवान केदार के कपाट बंद होने से पहले भुकुंट भैरवनाथ के कपाट बंद किया जाने की परम्परा दशकों से चली जा रही है। जिसके लिए मंगलवार एवं शनिवार का दिन निकाला जाता है। परम्परा को निभाते हुए मंगलवार 10 नवंबर 2020 को केदारनाथ धाम के रावल भीमा शंकरलिंगम ने ठीक 12 बजे केदारनाथ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना कर भोग लगाया। इसके उपरान्त मंदिर समिति के कर्मचारियों की उपस्थिति में केदारपुरी की पहाड़ी पर बसे भैरवनाथ के कपाट बंद की प्रक्रिया पौराणिक रीति रिवाजों के साथ शुरू की गई।

इस दौरान मंदिर के पुजारी ने भैरवनाथ मंदिर में दूध एवं घी से अभिषेक किया। वेदपाठियों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन किया। इस दौरान यहां पर पूरी, हलवा, पकोड़ी का प्रसाद बनाकर भगवान को भोग लगाया गया। भैरवनाथ के पश्वा अरविंद शुक्ला ने नर रूप में अवतरित होकर यहां उपस्थित भक्तों को अपना आशीर्वाद दिया। जिसके बाद भक्तों के जयकारों से क्षेत्र का वातावतरण भक्तिमय हो गया। मंदिर में करीब दो घंटे चली पूजा-अर्चना के बाद ठीक शाम के ठीक 3 बजे भगवान भैरवानाथ के कपाट पौराणिक रीति रिवाजों के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए।

भैरवनाथ मन्दिर केदारनाथ मन्दिर से आधा किमी की दूरी पर स्थित है। यह मन्दिर विनाश के हिन्दू देवता शिव के एक गण भगवान भैरव के समर्पित है। 3001 ईसा पूर्व पहले रावल या राजपूत श्री भिकुण्ड ने मन्दिर में इष्टदेव की स्थापना की थी। मन्दिर के इष्टदेव को क्षेत्रपाल या क्षेत्र का संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है। लोककथाओं के अनुसार जब सर्दियों में केदारनाथ मन्दिर बन्द कर दिया जाता है तब भैरवनाथ मन्दिर परिसर की रखवाली करते

बाबा कैदारनाथ के पहले रावत माने जाते है बाबा भुकंट भैरव

बाबा भुकुंट भैरव को पौराणिक कथाओं के अनुसार  केदारनाथ का पहला रावल माना गया है। इसके साथ ही उन्हें क्षेत्र का क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। इस लिए भी बाबा केदारनाथ जी की पूजा से पहले हमेशा पहले बाबा भैरवनाथ जी की पूजा की जाती है। जिसके बाद ही विधि विधान से बाबा केदारनाथ मंदिर के कपाट खोलने की परंपरा है।

भगवान भैरवनाथ का मंदिर केदानाथ मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जहां बाबा भैरव नाथ की मूर्तियों स्थापित है। जिनके ऊपर कोई छत नहीं है। मान्यता हैं कि जब शीतकाल के लिए बाबा केदारनाथ जी के कपाट बंद हो जाते हैं तो,केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी भैरव बाबा की होती है। परंपरा के अनुसार,बाबा केदार की चल विग्रह उत्‍सव डोली के धाम रवाना होने से पहले केदारपुरी के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ की पूजा का विधान है। भगवान केदारनाथ जी के शीतकालीन गद्दीस्‍थल उखीमठ के ओंकारेश्‍वर मंदिर में विराजमान भैरवनाथ की पूजा के बाद भैरवनाथ केदारपुरी को प्रस्‍थान करते है। आपको बात दें कि केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व बाबा भैरवनाथ की पूजा-अर्चना केवल मंगलवार और शनिवार को की जाती है। हिंदू धर्म की मान्‍यताओं के अनुसार, देश में जहां-जहां भगवान शिव के सिद्ध मंदिर हैं, वहां-वहां काल भैरवजी के मंदिर भी हैं और इन मंदिरों के दर्शन किए बिना भगवान शिव के दर्शन करना अधूरा माना जाता है।


उत्तराखंड के तमाम देवी-देवताओं के साथ लगभग हर गांव में बाबा भैरव नाथ जी की पूजा की जाती है। यह इस लिए भी महत्वपूर्ण हैं कि इन गांव में भी भगवान भैरवनाथ जी को उस गांव का क्षेत्र रक्षक माना जाता है।