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रज़ा फ़ाउण्डेशन ने वर्ष 2020 के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार पत्रिका ‘कथादेश’ के जुलाई 2019 में प्रकाशित अनामिका अनु की कविता ‘माँ अकेली रह गयी’ को देने का निश्चय जूरी सदस्य अशोक वाजपेयी की अनुशंसा पर किया है। पुरस्कार में 21 हज़ार रुपये की राशि और प्रशस्ति पत्र यथासमय दिये जायेंगे।
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अग्रवाल परिवार द्वारा रज़ा फ़ाउण्डेशन ने उसकी संरचना में कुछ परिवर्तन किये हैं: पुरस्कार के लिए अधिकतम आयु-सीमा चालीस वर्ष होगी। अगले वर्ष से पुरस्कार किसी एक कविता के लिए न दिया जाकर किसी युवा कवि के पहले कविता संग्रह पर दिया जायेगा। पहले की ही तरह पाँच वर्षों के लिए जूरी नियुक्त की जा रही है जिसके सदस्य बारी-बारी से हर वर्ष पुरस्कार के लिए कवितासंग्रह चुनेंगे। आयुसीमा 2020 से लागू कर दी गयी है। अगले 5 वर्षों के लिए जूरी में होंगे अरुण देव, मदन सोनी, अष्टभुजा शुक्ल, आनन्द हर्षुल और उदयन वाजपेयी। अपनी अनुशंसा में अशोक वाजपेयी ने कहा है: ‘माँ अकेली रह गयी’ कविता संभवतः विधवा हो जाने पर एक स्त्री की मनोव्यथा और अकेलेपन का मर्मचित्र है। उसमें अनुपस्थिति क्षति और अभाव व्यंजित हैं और काव्यकौशल इससे प्रगट होता है कि बटन जैसी साधारण चीज़ इन सबका और स्मृति का धीरे-धीरे, बिना किसी नाटकीयता के, रूपक बनती जाती है। रोज़मर्रापन में ट्रैजिक आभा आ जाती है। तरह-तरह की क्रियाएँ और याद आती चीज़ें मर्मचित्र को गहरा करती है।
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माँ अकेली रह गयी
माँ अकेली रह गयी
खाली समय में बटन से खेलती है
वे बटन जो वह पुराने कपड़ों से
निकाल लेती थी
कि शायद काम आ जाए बाद में
हर बटन को छूती
उसकी बनावट को महसूस करती
उससे जुड़े कपड़े और कपड़े से जुड़े लोग
उनसे लगाव और बिछड़ने को याद करती
हर रंग, हर आकार और बनावट के वे बटन
ये पुतली के छट्ठे जन्मदिन के गाउन वाला
लाल फ्राक के ऊपर कितना फबता था न
मोतियों वाला ये सजावटी बटन
ये उनके रेशमी कुर्ते का बटन
ये बिट्टू के फुल पैंट का बटन
कभी अखबार पर सजाती
कभी हथेली पर रख खेलती
कौड़ी, झुटका खेलना याद आ जाता
नीम पेड़ के नीचे काली माँ के मंदिर के पास
फिर याद आ गया उसे अपनी माँ के ब्लाउज का बटन
वो हुक नहीं लगाती थी
कहती थी बूढ़ी आँखें बटन को टोह के लगा भी ले
पर हुक को फँदे में टोह कर फँसाना नहीं होता
बाबूजी के खादी के कुर्ते का बटन
होगी यहीं कहीं
ढूँढ़ती रही दिन भर
अपनों को याद करना भूल कर
दिन कटवा रहा है
बटन अकेलापन बाँट रहा है बटन.