दिन ढल रहा हो और उम्मीद हो कि कोई सपनों के दीप जलायेगा,पर्दे पर राजेश खन्ना द्वारा अभिनीत यह गीत जब चल रहा होता है तो तब दर्शक भी कहीं ना कहीं आनंद के लिए दुआ कर रहे होते हैं कि उसकी जिंदगी में भी कोई दीप जल जाए –लेकिन नियति है।
जिंदगी जब स्वयं पहेली बन जाए तो आप कितना सुलझाएंगे। और एक दिन वह स्वयं अपना हल आपको सुना देगी।
बात गीतकार योगेश की हो रही है। जिन्होंने फ़िल्म आनंद के ये दो मशहूर गीत लिखे हैं-
” कहीं दूर जब दिन ढल जाए
और जिंदगी कैसी है पहेली हाय”
हिंदी सिनेमा के 60 व 70 के दशक में योगेश के गीतों ने खूब धूम मचाई। यही नहीं उन्होंने कई सदाबहार सुपरहिट गाने हिंदी फिल्मों को दिए। फिल्म आनंद से उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत की थी। गीतकार योगेश की यह खास विशेषता थी कि वे सिचुएशन को समझ बहुत ही सहजता के साथ गीत रचना कर देते थे। वह गीतों को लिखते हुए बेहतर तरीके से दर्शकों की नब्ज भी जानते थे। इसलिए उनके लिखे गीत यादगार गीत हो गए।
कई बार यूं देखा(रजनीगंधा),रिमझिम गिरे सावन(मंजिल),ना बोले तुम ना, मैंने कुछ कहा (बातों बातों में),मैंने कहा फूलों से (मिली),व जानेमन जानेमन, तेरे दो नयन (छोटी सी बात)आदि कई गीत खासे चर्चित रहे।
बसु चटर्जी और ऋषिकेश मुखर्जी के वे पसंदीदा गीतकार थे। बेवफा सनम उनके गीतों से सजी अंतिम फिल्म थी।
बीते साल मुंबई में उनका निधन हो गया। लेकिन उनके कुछ सदाबहार गीत हमेशा जुबान पर तैरते रहेंगे।
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
सांझ की दुल्हन बदन चुराए
मेरे खयालों के आंगन में
कोई सपनों के दीप जलाए
कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे,उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे”
गीतकार योगेश को उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि