मिल्खा सिंह वह नायक “जो दिल पर लेते थे,दिल से जीते थे”

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आंखिर क्रूर कोरोना ने 92 वर्ष की उम्र में हमसे वह नायक छीन लिया जिसने भारतीय दर्शन की यह पंक्ति “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” को हमेशा सच साबित किया , यह भी गजब संयोग रहा कि उनके जीवन का हर बड़ा मुकाबला कहीं न कहीं उनके जज्बातों से टकरा गया और वह जीत गए। इसी का परिणाम है कि अपने जीवन के 80 राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों से उन्होंने 77 में जीत हासिल की।

आजादी के बंटवारे में लायलपुर पंजाब के खुशहाल किसान परिवार के ऊपर बर्बादी का कहर ढा दिया। नफरत से भरी भीड मिल्खा सिंह के आगे नहीं उनके माता-पिता दोनों का कत्ल कर दिया मिल्खा को लायलपुर की मिट्टी रोक रही थी। लेकिन भीड़ में घिरे उनके पिता ने उन्हें धक्का देकर जो आदेश दिया “भाग मिल्खा भाग” पिता यह आंखीरी वाक्य मिल्खा का गुरु मंत्र बन गया और जीवन भर वह भागते रहे और इस भागने ने ही उनमें एक नायक पैदा किया ।

1953 में सेना में भर्ती होने के बाद माता पिता के गम में डूबे रहने वाले एक जवान 1954 से 200 और 400 मीटर को अपना कैरियर बनाया। थोड़े ही दिनों में भारत की शान बन गए। 1958 में कॉमनवेल्थ गेम गोल्ड मेडल और अन्य अंतरराष्ट्रीय दौड़ में गोल्ड मेडल लेने के बाद 1960 में पाकिस्तान में आयोजित एशियन खेल में मिल्खा सिंह अपनी पुरानी पारिवारिक यादों के कारण नहीं जाना चाहते थे।

तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा सिंह से व्यक्तिगत संपर्क किया और कहा पाकिस्तान अब तुम्हारा देश नहीं हमारा पड़ोसी देश है तुम्हें वहां जाना होगा मिल्खा दबे मन से वहां गए लेकिन पाकिस्तानी अखबारों ने मिल्खा सिंह और उस वक्त पाकिस्तान के नामचीन एथलीट अब्दुल खालिद के मुकाबले को भारत-पाकिस्तान के प्रतिष्ठा का मुकाबला बना दिया।

मिल्खा सिंह खेल को देश की प्रतिभा से जुड़ने से दुःखी थे लेकिन यह बात मिल्खा ने दिल पर ली और अब्दुल खालिद को बड़े अंतर से हरा दिया स्टेडियम में मौजूद हजारों पाकिस्तानी समर्थक दंग रह गए, तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अयूब मिल्खा सिंह की ठोकते हुए कहा था,

“मिल्खा तुम दौड़े नहीं, तुम तो हवा में उड़ते गए “

यहीं से मिल्खा सिंह “फ्लाइंग सिख” कहलाए ।

1960 के ही रोम ओलंपिक में तकनीकी (मनोवैज्ञानिक) कारणों से आप गोल्ड मेडल से चूक गए, जिसका रंज आखिर तक आपको रहा। मिल्खा सिंह सही मायनों में भारत के नायक ,भारत के सच्चे सपूत थे । कोरोना से अपनी पत्नी निर्मल कौर के साथ थोड़े दिन के अंतर में उनका जाना बहुत दुखद है। विनम्र श्रद्धांजलि उडन सिख मिल्खा सिंह।

आलेखः-प्रमोद साह

सभी फोटो गूगल बाबा