मुझे अपनी माटी,अपनी थाती की सेवा करने का अवसर मिलेगा तो,मैं जरूर राजनैतिक मंच पर जाऊंगा-संजय दरमोड़ा

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उत्तराखंड में 2022 विधानसभा चुनाव के लिए सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा यह भी सामने आने लगा है। सत्ता के गलियारों में आने-जाने का सिलसिला भी जारी है। आरोप-प्रत्यारोप के बीच छोटे-बड़े चेहरे एक दूसरे दलों में आने-जाने लगे है।पहाड़ पर विकास की बात हो रही हैं तो कुछ नये चेहरे भी 2022 के विधान सभा चुनाव में खुद के लिए नयी भूमिका तलाश रहे है। लेकिन इस सब के बीच पहाड़ की समस्याएं जस की तस है। पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या पहाड़ी जनमानस का तीव्रगति से शहरों की ओर पलायन है। स्वतंत्रता के पश्चात यह पलायन इतना प्रभावशाली बन गया है कि इसने पूरे उत्तराखंड में आर्थिक एवं सामाजिक ढांचे को बदलकर रख दिया है। देखा जाए तो पहाड़ी आबादी का शहरों की ओर पलायन पहाड़ों के लिए खतरनाक सिद्ध हो रहा है।

कृषि योग्य भूमि की अपर्याप्तता, कष्टप्रद जीवन, रोजगार की तलाश, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संबंधित सुविधाओं के अभाव में पर्वतीय क्षेत्रों से पुरुषों का पलायन होता जा रहा है। हाल के आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि पहाड़ पर पुरुषों की कुल जनसंख्या का प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है, जबकि सम्पूर्ण जनसंख्या को यदि विभिन्न आयु वर्गों में बांट कर देखा जाए तो पता चलता है कि पहाड़ पर काम करने वाले आयु वर्ग में अधिक भाग महिलाओं का हैं। कृषि से जन-मानस का दिल उचट रहा है। पढ़ लिख कर युवा वर्ग खेती जैसे मेहनती और कष्टदायक कार्य को नहीं अपनाना चाहता है। खासकर उस स्थिति में जबकि कृषि में अधिक उपलब्धियां नहीं दिखाई दे रही है।

इन संघर्षों के बीच शहरों में रहकर पहाड़ का जो नौजवान निरंतर अपने पहाड़ों की फ्रिक कर रहा हैं,या निरंतर पहाड़ जाकर पहाड़ के वास्तविक धरातल पर पहाड़ के लोगों के लिए काम कर रहा है। ऐसे नौजवानों के लिए पहाड़ से आवाज़ उठ रही हैं कि इन लोगों को सही अर्थों में राजनैतिक पटल पर आकर पहाड़ की सेवा करनी चाहिए।

इन नौजवानों में एक नाम हैं,अधिवक्ता संजय दरमोड़ा का,जो पिछले कई वर्षों से निरंतर अपनी जन्म भूमि,अपनी माटी,अपनी थाती के लोगों के लिए। उनके साथ खड़े होकर काम कर रहे है। स्वास्थ्य-शिक्षा,पयालन,रोजगार और महिला शक्तिकरण से लेकर कोरोना काल में संजय दरमोड़ा दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए,लगातार उत्तराखंड के उस जनमानस के लिए काम कर रहे हैं,जो वास्तव में जरूरतमंद है। शायद यही वजह भी हैं कि केदार घाटी से संजय दरमोड़ा को यहां की जनता राजनैतिक पटल पर आकर अपने सेवा कार्यों को बड़ा आकर देकर,उनके लिए काम करने का आग्रह कर रही है।

क्या संजय दरमोड़ा केदार घाटी की जनता के इस आग्रह को स्वीकार करने जा रहे है? क्या दरमोड़ा जी केदार घाटी की जनता के आग्रह पर राजनैतिक पटल पर खड़े होकर अपनी सेवाओं के विस्तार देंगे? इस तरह के कुछ चुनिंदा मुद्दों को लेकर संवाद जाह्नवी ने सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में वकालत कर रहे और उत्तराखंड के हर सामाजिक पटल पर दिखने वाले अधिवक्ता संजय दरमोड़ा से एक खास बातचीत की।

संजय शर्मा दरमोड़ा का जन्म रूद्रप्रायग जिले के दरम्वाड़ी गांव  में हुआ। जहां उन्होंने तमाम संघर्षों से गुजरते हुए जाखधार स्कूल में प्रथामिक शिक्षा-दिक्षा ली और जीवन की आगे की यात्रा के लिए वह अपने पिताजी मनसाराम दरमोड़ा के साथ देश की राजधानी दिल्ली चले आए। लेकिन पहाड़ के प्रति उनका अथा प्रेम हमेशा मन में रहा,जीवन में कई पड़ाव आए,लेकिन संजय दरमोड़ा ने उन पड़ावों से गुजरते हुए सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता के तौर पर अपने जीवन संघर्षों के साथ मंजिल तक सफ़र तय किया। इस मंजिल पर रहते हुए,संजय दरमोड़ा पहाड़ के धरातल पर उतरकर स्वास्थ्य-शिक्षा से लेकर तमाम दूसरे सामाजिक पटलों पर सेवा भाव से अंस्ख्या लोगों के साथ खड़े होकर काम कर रहे है।

उनके इसी सेवा भाव के देखते हुए पहाड़ से,उनकी माटी से.उनसे राजनैतिक पटल पर आने का आग्रह किया जा रहा है। शायद इस लिए भी वह दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक राजनैतिक पटल पर चर्चाओं के केंद्र में भी है। क्या संजय दरमोड़ा जी अपनी माटी,अपनी थाती के आग्रह को स्वीकार करने जा रहे है,चलिए संजय दरमोड़ा जी से ही जानते हैः-

1-संजय जी ‘संवाद जाह्नवी’ के हमारे इस मंच पर आपका स्वागत है। आप संभवतः पहले व्यक्ति है। जिन से हम अपने इस मंच पर एक लंबी बातचीत करने जा रहे है। हम आपके संघर्षों को लेकर तो आपसे बातचीत करेंगे ही,लेकिन हम सबसे पहले यह जानना चाहेंगे कि आप जिन खेत-खलिहानों,जिन माता-बहनों और जिस माटी की सेवा पिछले कई वर्षों से करते आ रहे है। उन खेत-खलिहानों से आपकी माटी,आपकी थाती आज आग्रह कर रही हैं कि आप राजनैतिक मंच पर आकर अपने सेवा कार्यों को विस्तार दें। क्या संजय दरमोड़ा जी केदार घाटी की जनता के इस आग्रह को मानते हुए 2022 में उत्तराखंड में होने वाले विधान सभा चुनाव में एक नया चेहरा बनने जा रहे है?

मैं सबसे पहले तो आपको संवाद जाह्नवी वेब-पोर्टल की शुरूआत के लिए बधाई देता हूं। मैं उम्मीद करूंगा की आप की जो टेग लाइन हैं,’खबरें पहाड़ की माटी की’ आपकी पूरी टीम इस टेग लाइन पर खरा उतरेगी।

आपकी बात को आगे बढ़ाते हुए। मैं कहना चाहूंगा कि मैं पहाड़ से हूं,संघर्षों के पहाड़ से,जो आप भी है। मैं हमेशा अपनी माटी,अपनी थाती अपने खेत-खलिहानों के साथ खड़ा था,खड़ा हूं और खड़ा रहूंगा। क्योंकि मैं जो कुछ भी हूं। इन्हीं सब के आशीर्वाद से हूं। 

मेरी माटी,मेरी थाती ने मुझे बहुत कुछ दिया है। जीवन का वास्तविक अर्थ क्या होता है। यह पहाड़ के जीवन परिवेश से जुड़ा व्यक्ति आसानी से जान-समझ सकता है। मैंने पहाड़ के इस परिवेश को बहुत करीब से देखा हैं,समझा है। इस लिए मैं हमेशा कहता हूं कि मैं कहीं भी रहूं,मेरा वजूद हमेशा पहाड़ से जुड़ा हुआ है। जिन्होंने मुझे सब कुछ दिया। अब बारी हमारी है,अपने पहाड़ों की सेवा करने की,जो मैं निरंतर कर रहा हूं और करता भी रहूंगा,और यह घर का हर बड़ा सदस्य चाहता हैं कि उसके बच्चे तरक्की करें,समाज में उनका नाम रोशन करें,उनकी सेवा करें।

केदार घाटी ही नहीं पूरा उत्तराखंड मेरा परिवार है। इस परिवार को कोई चोट न पहुंचे,यह परिवार हमेशा खुशहाल रहे। यह हम सब की प्राथमिकता होनी चाहिए। मैं इस सेवा भाव की सोच के साथ उन लोगों के लिए काम कर रहा हूं,जो वास्तव में जरूरतमंद है,जिन्हें आज सबसे ज्यादा मदद की आवश्यता हैं,और यह सब लोग मेरे लिए पूज्यनीय हैं,सम्मानित है। मेरे पूज्यनीय और सम्मानित लोग यदि मुझ से मेरी सेवाओं के विस्तार के लिए आग्रह करते हैं तो मैं उनके आग्रह को नकार नहीं सकता।

2-तो आप राजनैतिक पारी खेलने के लिए तैयार है?

मैं पारी खेलने में विश्वास नहीं करता,मैं काम करने में सेवा करने में विश्वास रखता हूं। जो मैं निरंतर कर रहा हूं। मेरे साथ हाजारों की संख्या में मेरी मां-बहनें,बुर्जुग और पहाड़ का वह व्यक्ति खड़ा हैं,जो हर दिन पहाड़ के लिए संघर्ष करता है। जो हर दिन अपने पेट,अपने बच्चों की सुंदर भविष्य निर्माण के लिए संघर्ष करता है। मैं उनके लिए काम कर रहा हूं। उनके भविष्य निर्माण के लिए काम कर रहा है,उनका अपना बनकर। यदि इसे आप राजनितिक मंच समझते हैं,तो मुझे अपनी माटी के सेवा करने का अवसर मिलेगा तो मैं निश्चित तौर पर इस सेवा के पथ पर चलूंगा,अपने पहाड़ के वजूद को बचाने के लिए अपने संघर्षरत मां-बहनों,भाइयों और पहाड़ के युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए।

3- सेवा तो आप अपने स्तर पर कर ही रहे है। फिर राजनैतिक मंच ही क्यों?

आप ठीक कह रहे हैं,राजनैतिक मंच ही क्यों। आप तो देख ही रहे होंगे की मेरे खेत-खलिहानों से निरंतर आवाज़ उठ रही हैं कि मुझे अपनी सेवाओं का दायरा बढ़ना चाहिए। मैं अभी अपने स्तर पर एक सीमित दायरे में कितने लोगों तक पहुंच सकता हूं। 100-200 या ज्यादा से ज्यादा 1000,लेकिन मेरे अपनों का दायरा बहुत विशाल है। उनकी समस्याएं,उनकी अपेक्षाएं बहुत ज्यादा है। जिन्हें में एक सीमित दायरे में रहकर पूरा नहीं कर सकता हूं।

सामाज सेवा के तौर पर मैं निरंतर प्रायसरत हूं। मैं कोशिश करता हूं कि उन लोगों तक पहुंच पाऊं,जो बहुत नीडि है। जिनको स्वास्थ्य-शिक्षा के साथ-साथ रोजमर्रा की जरूरी चीजों की बहुत आवश्यकता है। जिसे मैं एक मंच के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकता हूं। जिसके लिए मेरे क्षेत्र के लोग निरंतर आग्रह कर रहे हैं कि मैं ऐसे मंच पर आकार अपनी सेवा के दायरे को बढ़ाऊं,जिस मंच से मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच पाऊं। मुझे लगता है,राजनैतिक मंच इसका सही विक्लप हो सकता है।

4-संजय जी अक्सर देखा जाता हैं कि हर व्यक्ति अपनी राजनैतिक आकांक्षाओं के लिए राजनीति में आता हैं,और उनके पूरा होते ही,वह उन व्यकित्यों को दरकिनार कर देता है। जो रात-दिन उसके साथ खड़े रहते है। आप इसे कैसे देखते है?

देखिए मेरी खुद के लिए कोई राजनैतिक आकांक्षाएं नहीं है। मैं पेश के अधिवक्ता हूं,जिसके माध्यम से मैं अपने परिवार और अपने लोगों की सेवा बहुत अच्छी तरह कर पाता हूं। मुझे यह कतई लालच नहीं हैं कि मैं राजनैतिक पटल के माध्यम से अपने हित के बारे में सोचूं। यह मैं इस लिए भी कह रहा हूं कि मैं अपने जिले में पिछले कई वर्षों से निरंतर उस समाज,उन लोगों के लिए काम कर रहा हूं। जो वास्तव में समाज की मुख्यधारा से कटे हुए है। जिनकों तामम राजनैतिक दलों ने ठगा,जिन्हें हाशिए पर धकेलने में कई राजनैतिक चेहरों का हाथ भी रहा है।

मैं इस झूठ की राजनीति से हट कर ईमानदार परिवेश की नींव रखना चाहता हूं। जिसके लिए मैं निरंतर प्रयासरत हूं। आप कभी रूद्रप्रयाग जिले में जाकर देखिए कि हम स्वास्थ्य-शिक्षा से लेकर पलायन रोकने,अपने क्षेत्रों के युवाओं के भविष्य निर्माण के लिए किस तरह से काम कर रहे है। यह सब आपको तब दिखेगा जब आप हमारे क्षेत्र में जाकर ज़मीन पर उतर कर वहां के लोगों से रू-ब-रू होंगे। तब आपको समझ में आएगा कि वास्तविकता हैं क्या।

5-किसी तरह की सेवाओं दे रहे है आप?   

सेवा की बात आपने की तो पहाड़,हमारी माँ-पिता और हमारे बुर्जर्गों की थाती है। इसकी सेवा करने का मौका यदि हमें मिलता हैं तो यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है। मैं इसे इस तरह से देखाता हूं।

आपने सेवाओं की बात की तो,हम काम कर रहे है। अपने लोगों के लिए,उन लोगों के लिए जो बहुत नीडी है। हम पहाड़ के उन दूरस्थ क्षेत्रों में काम कर रहे है। जहां आज के समय में पहुंचना बहुत मुश्किल है। इन क्षेत्रों में कई बार सुनने में आता हैं कि स्वास्थ्य सुविधाएं न होने के कारण हमारी माँ-बहने और हमारे गांव के लोगों की मौत तक हो जाती है।

बचपन से पहाड़ की स्वास्थ्य सुविधाओं को देख रहा हूं। कई बार हमारे पहाड़ की दीदी-भुल्ली के बारे में खबर आती हैं कि घास काटते हुए वह गिर गई,किसी जंगली जानवर के हमले से वह घायल हो गई। लेकिन समय पर इलाज नहीं मिला और उनका निधन हो गया। कोई बच्चा अचानक बीमार पड़ जाता हैं तो लोग परेशान हो जाते है। कई किलोमीटर की यात्रा करने के बाद बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाया जाता है। यह सारे दृश्य मन को बहुत दुःखी करते है। इस लिए हम समय-समय पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में रूद्रप्रायग सहित उत्तराखंड के कई दूरस्थ गांवों में स्वास्थ्य जांच के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करते है। इन शिविरों में लोगों को निःशुल्क दवाइयां प्रदान करते है। इन शिविरों आए जिन लोगों के ऑपरेशन और तमाम दूसरी गंभीर बीमारियों की जांच की आवश्यकता होती हैं,हम उन्हें देहरादून,ऋषिकेश और रूद्रप्रयाग स्थिति बडे अस्ततालों में इलाज के लिए लेकर जाते है।

दिल्ली और उत्तराखंड में हम कुष्ठ रोगियों,दिव्यांगजनों की जागरूकता के लिए निरंतर अभियान चला रहे है। मैं मनाता हूं कि आज भी उत्तराखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने की बहुत आवश्यकता है। हम एक छोटा सा प्रयास कर रहे है। कोशिश हैं हमारे लोगों को स्वास्थ्य की बेहतर से बेहतर सुविधाएं मिल सके।

इसी तरह हम शिक्षा के लिए भी निरंतर काम कर रहे है। पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्रों में चल रहे स्कूलों के बच्चों के पास कई बार देखने में आता हैं कि स्कूल यूनिफॉर्म नहीं है,कई स्कूलों के भवन जर्जर हालात में है। बच्चों के पास बैठने के लिए टेबल-कुर्सियां नहीं है। हम सबसे पहले तो ऐसे स्कूलों के भवनों को दूरूस्त करने की दिशा में काम कर रहे है,जो जर्जर स्थिति में है। इस दिशा में हमने कई स्कूलों में नये क्लासरूम बनाए है। स्कूली बच्चों को स्कूल ड्रेस,स्कूल बेग,कॉपी-किताबें,स्कूल फीस और स्कूल के लिए टेबल-कुर्सियों का इंतजाम किया है। हम कई गरीब एवं निम्म आय वर्ग के बच्चों को विभिन्न स्कूलों में दाखिला दिलावा उनके भविष्य निर्माण के लिए भी काम कर रहे है। हमारा मानना हैं कि जब बच्चे अच्छी तरह से शिक्षित होंगे तभी इनका भविष्य सही दिशा में आगे बढ़ेगा और आगे चलकर यही बच्चे देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

6-आपके इन सेवा कार्यों में इधर आपको हंस फाउंडेशन के संस्थापक माता मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज जी का आशीर्वाद भी मिल रहा है?

पूज्य भोले जी महाराज जी एवं माताश्री मंगला जी हमारे लिए ईश्वर का स्वरूप है। मैं यह कहूंगा कि माता मंगला जी एवं भोले जी महाराज जी शिव-पार्वती के रूप में हमारे उत्तराखंड के जरूरतमंद लोगों को आशीर्वाद प्रदान कर रहे है।

मैं स्वयं को धन्य मानता हूं कि मुझे एक छोटी सी गिलहरी के रूप में पूज्य माताश्री मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज जी के सेवा कार्यों में से जुड़कर काम करने का मौका मिल रहा है। जिन के माध्यम से उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के 27 राज्यों में सेवा के कार्य चल रहे है। स्वास्थ्य-शिक्षा,पर्यावरण संरक्षण,दिव्यंगता, रोजगार, पलायन और पेयजल, कृषि, समाज कल्याण, बाल विकास व ऊर्जा आदि क्षेत्रों में जो सेवाएं दे रहा है। वह निश्चित तौर पर देश की विकास यात्रा को नयी ऊंचाई प्रदान कर रहा है।

हंस फाउंडेशन पिछले दस वर्षों में 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 350 से अधिक गैर-सरकारी संगठनों का सक्रिय समर्थन कर रहा है, जिससे देश में 10 मिलियन से अधिक गरीब लाभान्वित हुए हैं। ऐसी संस्था के साथ मैं खड़ा हो पाता हूं। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

हमारे जिले को भी पूज्य माताश्री मंगला जी एवं भोले जी महाराज जी का आशीर्वाद निरंतर मिल रहा है। केदार घाटी के हर गरीब,जरूरतमंद व्यक्ति तक हंस फाउंडेशन की सेवाएं पहुंच रही है। यह हमारे लिए ईश्वर के वरदान से कम नहीं है।

7-इधर कोरोना काल में भी हंस फाउंडेशन की सेवाएं पूरे देश के साथ-साथ रूद्रप्रायग जिले में बड़े स्तर पर पहुंची है?

जी बिल्कुल कोरोना काल में हंस फाउंडेशन के पूरे देश भर में जो सेवाएं दी है। वह निश्चित तौर पर श्रेष्ठ है। इन सेवाओं के बारे में बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है।

कोरोना संक्रमण के चलते इस बार चार धाम यात्रा की क्या स्थिति है। यह पूरी दुनिया ने देखा। इसी के साथ लाखों की संख्या में लोग उत्तराखंड लौटे। कोरोना की इस महामारी ने पूरी दुनिया के आत्मविश्वास को हिला कर रख दिया है। ऐसे में उत्तराखंड भी इसकी आगोश में आया। लेकिन हंस फाउंडेशन जैसी संस्था ने अपने पहाड़ के आत्मविश्वास को हिलने नहीं दिय़ा। इस संकट के समय में हंस फाउंडेशन ने ऑपरेशन नमस्ते अभियान की शुरूआत की और पहाड़ के अंतिम छोर पर खड़े जरूरतमंद व्यक्ति तक सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन करते हुए,डिजिटल इंडिया के माध्यम से न खाद्य सामाग्री पहुंचायी बल्कि पहाड़ लौटे प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए क्वारंटाइन सेंटरों का निर्माण कर उनके रहने-खाने से लेकर स्वास्थ्य की हर सुविधा उन तक पहुंचायी।

यही नहीं हंस फाउंडेशन ने पूरे कोरोना काल में कोरोना फ्रंटलाइन वारियर्स को देश भर में प्रोटेक्शन किट यानी मास्क, हैंड ग्लव्स, फेस शील्ड,सैनिटाइजर,स्वच्छता किट एवं पी पी ई कीट प्रदान की है। ताकि यह फ्रंटलाइन वारियर्स इस कोरोना काल में अपनी सेवाएं निडरता के साथ दे पाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी सेवाओं को पहुँचा पाए और इस कोरोना महामारी से देश को मुक्त करने में अहम भूमिका निभाएं।

उत्तराखंड के तमाम अस्पतालों को हंस फाउंडेशन ने अपनी सेवाएं प्रदान की,जिसमें रूद्रप्रयाग जिला अस्पताल भी प्रमुख है। जैसा की मैंने आपको पहले भी बताया कि कोरोना की वजह से इस बार चार धाम यात्रा से अपना जीवन यापन करने वाले तीर्थ पुरोहितों,व्यापरियों और तामम दूसरे छोटे-छोटे रोजगार करने वाले व्यापारियों के चेहरे पर मायूसी थी। इस संकट के समय में माता मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज जी इन सब के साथ इनके अभिभावक बनकर खड़े हुए और इन मायूस चेहरों पर खूशी बिखेरी। बाबा केदरा से लेकर बद्री विशाल के सेवकों तक कोरोना काल में हंस फाउंडेशन के हर मदद पहुंचाई। केदार घाटी के तमाम दूसरे मंदिरों में पूजा-पाठ कर,अपना व्यवसाय कर अपना जीवन-यापन कर रहे देवस्थलों के सेवाकों तक भी हंस फाउंडेशन का संजीविन रूपी प्रसाद पहुंचा। जिसमें खाद्य सामग्री,शॉल,ट्रेक सूट,कंबल,मास्क एवं सेनिटाइज पहुंचाए गए।

रूद्रप्रयाग के जिला अस्पताल को आधुनिक सुविधाओं से लैस एंबुलेंस,वेंटिलेटर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, एक्स रे मशीन समेत विभिन्न स्वास्थ्य उपकरण प्रदान किए गए। इसी के साथ उत्तराखंड के तमाम दूसरे अस्पतालों को भी कोरोना से लड़ने के लिए सहयोग प्रदान किया गया।

फाउंडेशन ने कोविड-19 से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष में 4 करोड़ रूपये की राशि प्रदान की हैं। इसी के साथ उत्तराखंड को कोरोना वायरस से निपटने के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ 51 लाख रूपये की राशि प्रदान की है। वास्तव में हंस फाउंडेशन उत्तराखंड समेत पूरे देश भर में कोरोना के खिलाफ जंग में मददगार साबित हुआ है। हम इन सेवाओं के लिए पूज्य माताश्री मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज जी के श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करते है।

8-आप भी ‘कलश ट्रस’ और ‘नई पहल नई सोच’ के तत्वावधान में उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक सेवा का काम कर रहे है। ‘कलश ट्रस’ और ‘नई पहल नई सोच’ असल में क्या है?

आप ऐसा समझ लिजिए की हम इन दोनों संस्थाओं के माध्यम से अपनी लोक संस्कृति,अपने लोक परिवेश,अपनी लोक परंपराओं और इन से जुड़े लोगों की सेवा कर रहे है। हम खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि इन संस्थाओं के माध्मय से हमें अपने लोक और अपने लोगों की सेवा करने का मौका मिला है। कलश की स्थापना हमने आदरणीय बड़े भाई साहब और लेखक-कवि ओम प्रकाश सेमवाल जी के सानिध्य में की,उद्देश्य था कि एक ऐसा मंच स्थापित किया जाए। जिसके माध्यम से अपनी भाषा-बोली का संरक्षण तो हो ही,साथ ही ऐसे लोगों को मंच मिले जो लोग,बहुत अच्छा पढ़ते-लिखते है। लेकिन उनकी रचनाओं को वह मंच नहीं मिल पाता। जिसके वह हकदार है।

कलश के माध्मय से हम देशभर में कई कवि सम्मेलनों का आयोजन कर चुके है। इन मंचों पर हमने गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी साथ ऐसे लोगों का मंच प्रदान किया है। जो गुमनामी की आगोश में अपनी रचनाओं के साथ जी रहे थे। कलश के सानिध्य में हम उत्तराखंड की भाषा-बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने लिए निरंतर आवाज उठा रहे है। मुझे विश्वास हैं कि हमारी यह आवाज एक दिन उन कानों तक जरूर पहुंचेगी,जिन्होंने यह निर्णय लेना है,और हमारी भाषा-बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा।

कलश हमारी सांस्कृतिक विचारधार है। जिसके माध्यम से हम उत्तराखंड की लोक संस्कृति को विश्व सांस्कृति मंच पर नयी पहचान दिलाने में आगे बढ़ रहे है।

‘नई पहल,नई सोच’ के माध्यम से हम उन लोगों के लिए काम कर रहे है। जिन्हें हमारे ही लोगों ने अंतिम छोर पर अकेले छोड़ दिया था। हम उन कलाकारों,साहित्यकारों,बुर्जर्गों,दिव्यांग बच्चों,खेल प्रतिभाओं और उन जरूरमंद लोगों के लिए ‘नई पलह नई सोच’ के पटल पर काम कर रहे है। जिन्हें आज सही मायने में मदद की आवश्यकता है। मुझे आपको बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारी सेवा की इस कड़ी आज असंख्य लोग जुड़े है। जिन्हें हम सेवाएं दे रहे है। इस कड़ी में हौसलों की उड़ान कार्यक्रम के माध्यम से हमने उत्तराखंड के उन दिव्यांग कलाकारों को मंच प्रदान किया। जो उत्तराखंड के दूर-दराज के गांव में रहते है। इन कलाकारों के हुनर को निखारने के लिए हम निरंतर प्रयास कर रहे है। इसी के साथ अनाथालयों में रह रहे बच्चों,वृद्धाश्रमों में रहे बुर्जर्गों,तमाम खेलों से जुड़े दिव्यांग खिलाड़ियों को हम अपनी संस्था नई पहल नई सोच से जोड़ते हुए,सेवाएं दे रहे है।

9-रूद्रप्रायग के दरम्वाड़ी गांव से लेकर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता तक की आपकी इस यात्रा के बारे में थोड़ा जानना चाहेगे?

संघर्ष और चुनौतियों का सामना करते हुए। यहां तक पहुंचा हूं। बहुत आसान नहीं होता पहाड़ जैसे जिंदगी में संघर्ष करना यह पहाड़ का हर व्यक्ति जानता है। माँ-पिताजी के सघर्षों ने संघर्ष के मायने हमें बताए। अपनी बात आगे लेकर जाऊं,उससे पहले एक छोटा सा किस्सा जरूर बताना चाहूंगा। माँ जी को खेत में काम करने जाना था। मुझे कहा,बेटा देर हो रही है,तु मेरे लिए खेत में नाश्ता ले आना। रोटी मैंने बना दी है,तु चाय बनाकर ले आना। तब मेरे स्थिति यह थी की चाय भी बनानी नहीं आती थी। माँ जी से पूछा चाय कैसे बनाऊंगा माँ?  माँ ने बताया केतली में पानी डालना गर्म होने पर चायपत्ती,दूध और उबाल कर ले आना और माँ खेत चली गई। माँ के जाने के बाद काफी देर तक सोचता रहा। कैसे बनेगी चाय,लेकिन कोशिश की माँ ने जैसे-जैसे बताया था। वैसा ही किया और कुछ घंटे बाद एक साफे(कपड़े) में माँ की बनाई रोटी रखी,केतली उठाई और चल दिया खेत की तरफ,खेत काफी दूर था। रास्ते में चलते-चलते साफे में बांधी रोटी एक-एक कर गिर गई। खेत के करीब पहुंचकर अचानक साफे को हल्का पाया,तो देखा रोटी कहां गिर गई। फिर उसी रास्ते पर वापस लौटा तो सारी गिरी रोटी उठाकर साफे में बांधी और माँ के पास पहुंच गया। कई देर तक सोचता रहा कि माँ को यह बात बताऊं की नहीं कि रोटी गिर गई थी। काफी सोचने के बाद माँजी को बताया की रोटी रास्ते में गिर गई थी। माँ जी ने चुपचाप वह रोटी खाई और चाय पी और बोली बेटा चाय बहुत अच्छी बनी है। ऐसी चाय मैंने पहले कभी नहीं पी,माँ की बात सुन मेरी आंखें नम हो गई।

यह घटना भले ही बहुत छोटी हो लेकिन यह घटना मेरे लिए बहुत बड़ी घटना थी। जिसने मुझे सिखाया की अगर आप में लगन है,मेहनत करने की ललक है,तो आप कुछ भी कर सकते है। माँ की उस बात को मैंने अपने जीवन में उतारा और आज मैं जो कुछ भी हूं। माँ की उस सीख से हूं। पिताजी ने भी मुझे मेहनत की परिभाषा सिखायी उन्होंने ही मुझे वकालत करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही बताया की अपने लिए ही नहीं बल्कि उन लोगों के लिए भी कुछ ऐसा काम करो कि लोग आपका नाम सम्मान के साथ ले,आपको किसी को कहना न पड़े की मेरा सम्मान करो,मेरे नाम सम्मान से लो।

10-आप उत्तराखंड सहित देश की कई सामाजिक संस्थाओं और लोगों की मदद कर रहे है। आपको क्या लगता हैं कि इस तरह से क्या सही हाथों तक मदद पहुंच पाती है?

जी हम उन लोगों को सहयोग कर रहे है। जो सही मायने में सेवा के हकदार है। हम स्वयम् उन स्थानों तक जाते है। जहां हमें मदद करनी है। फिर चाहे वह उत्तराखंड का कोई गांव हो, स्कूल हो,कुष्ठ रोग आश्रम हो,वृद्धाश्रम हो दिव्यांगजन हो या फिर कोई लोक कलाकार या फिर कोई जरूरतमंद व्यक्ति हम कोशिश करते हैं कि जिसे हम सहयोग कर रहे है। वह वास्तव में वह उसे मिल भी रहा हैं कि नहीं। खुशी होती हैं जब लोग कहते हैं कि आप अच्छा काम कर रहे है। जरूरतमंद व्यक्ति के साथ खड़े है।

11-वह लोगों जो आपके साथ इस यात्रा में चल रहे है। क्या कहना चाहेंगे उनके लिए?

ईश्वर के रूप में श्री भोले जी महाराज जी एवं माताश्री मंगला जी जो मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं है। मैं सौभाग्यशाली हूं की माता जी-महाराज जी का आशीर्वाद हमारे साथ है। मेरे पिताजी स्वं. मनसाराम दरमोड़ा जी का आशीर्वाद मेरे साथ है। मेरी माँ जी मेरे प्रेरक के रूप में हमारे साथ खड़ी है। मेरी पत्नी प्रतिभा शर्मा जी,  ‘नई पहल नई सोच’ और ‘कलश ट्रस्ट’ के सभी सदस्य रात-दिन मेरे संघर्षों के साथ है। ऐसे में मैं कह सकता हूं,कि जिस पथ पर हम चल रहे है। उस पथ पर चलते हुए हम सेवा धर्म के नये मायने स्थापित करेंगे और असंख्य जरूरमंद लोगों की सेवा कर पाएंगे।