उत्तराखंड के हरिद्वार में 14 जनवरी यानि मकर संक्रांति से ही कुंभ मेले की शुरूआत हो चुकी है। 30 अप्रैल तक चलने वाले इस कुंभ में धर्म-आस्था के अनेक रंग देखने को मिल रहे है। जिन्हें देखने के लिए देश-विदेश के लाखों की संख्या में श्रद्धालु कुंभ नगरी हरिद्वार पहुंच रहे है। कुंभ में साधु-संतों के अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं। कोई अपनी अनोखी साधना से तो कोई अपनी वेशभूषा से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। इसी लिए इसे धर्म-आस्था का महासंगम कहा जाता है।
कुम्भ मेला का एतिहासिक एवं पौराणिक महत्व हरिद्वार उत्तराखण्ड में आयोजित होने वाला कुम्भ मेला विश्व का विशालतम स्वतःस्फूर्त समागम तथा तीर्थात्सव है। पौराणिक कथानुसार देवता और दैत्य अलौकिक क्षीर सागर के मंथन में अमृत प्राप्ति के लिए एकत्र हुए तथा निश्चित किया गया कि समुद्र मंथन से निकलने वाले रत्नों,पदार्थों को आपस में बॉट लेंगे इस मंथन में पौराणिक मंदराचल (पर्वत) को मथनी और नागों के सम्राट वासुकी को मथने वाली रस्सी की तरह प्रयुक्त किया गया।
कहा जाता है कि दस हजार वर्षों तक देव दानव के सागर मंथन के फलस्वरुप अन्य रत्नों के साथ ही अमृत से भरा कलश भी प्राप्त हुआ। अमृत पीने के बाद दानव अमर हो जायेगे, तब संसार का क्या होगा। इस चिन्ता से देवताओं ने अमृत-कलश को छिपाने का निर्णय लिया इसके लिए देवों और दानवों के बीच संघर्ष हुआ, जिसके दौरान देवताओं के राजा इन्द्र का पुत्र जयंत पहले स्वर्ग के आठ स्थानों पर तथा फिर पृथ्वी पर जहा तहां अमृत कलश को छिपाने के लिए भागता रहा।
पुराणों के अनुसार इस संघर्ष से इंद्र के पुत्र जयंत ने अमृत कलश को हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक की भूमि पर रखा, जहा अमृत कलश की कुछ बूंदे भूमि पर गिरी और इन स्थानों को निश्चित नक्षत्रीय दशा में सदा–सदा के लिए अमरत्व प्रदान करने वाली दैवीय उर्जा से समृद्ध कर गयी। इन्ही स्थानो पर कुम्भ मेलों आयोजन किया जाता है। ग्रह नक्षत्रों की विशेष परिस्थितियों की इन कुम्भ पर्वो का निर्धारण करती है इसके कारण लाखों करोड़ों लोगों एक निश्चित समय और स्थन पर एकत्र होते हैं। प्रयाग और हरिद्वार का कुम्भ पर्व गंगा के, तट पर, उज्जैन का क्षिप्रा नदी तट पर तथा नासिक में गोदावरी नदी तट पर कुम्भ पर्व आयोजित होता है। प्रयाग और हरिद्वार में ग्रह योग कुछ ऐसा बनता है कि हर तीसरी वर्ष इन दोनों स्थानों पर कहीं न कहीं कुम्भ अथवा अर्ध कुम्भ का आयोजन होता है।
आम तौर पर माना जाता है कि कुम्भ पर्व स्नान से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है अर्थात मानव को जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्ति, मोक्ष मिल जाता है। यह माना जाता है कि कुम्भ क्षेत्र में गंगा जी का समस्त जल सूर्य, चन्द्र तथा अन्य ग्रहों के विद्युत चुम्बकीय विकीरण के प्रभाव से रोग मुक्ति के साथ ही अनेक प्रकार के चमत्कारी प्रभावों को देने वाला होता है। हरिद्वार में प्रत्येक बारह एवं छः वर्ष के अन्तराल पर होने वाला कुम्भ अथवा अर्ध कुम्भ पर्व संसार के सबसे बड़ा तीर्थ मेला उत्सव है। खगोल गणनाओं के अनुसार जब सूर्य मेष राशि में, बृहस्पति कुम्भ राशि में एक साथ होते हैं तब हरिद्वार में कुम्भ पर्व होता है।
सरकार द्वारा नोटिफिकेशन होने के बाद आगामी 1 अप्रैल से 30 अप्रैल 2021 के बीच हरिद्वार कुंभ मेला 2021को भव्य और दिव्य रूप से प्रस्तुत करने की तैयारी पूर्ण हो चुकी है। वर्तमान कुंभ मेला प्रयाग,हरिद्वार,नासिक और उज्जैन में आयोजित होने वाले पिछले सभी कुंभ मेला से भिन्न और अनोखा है। यहाँ कुंभ भी है और कोविड भी है। यहाँ कोविड के नियमों का भी पालन कराना है और कुंभ मेला को भव्यता और दिव्यता को भी बनाये रखना है। आस्था का सैलाब भी है और कोविड के संक्रमण का भय भी है। परन्तु सरकार ने कुंभ मेला को भव्य दिव्य रूप में प्रदर्शित करने के लिये दृढ़ संकल्प लिया है।