अंग्रेजी भाषा की एक कहावत है कि like father like son,like teacher like pupil अर्थात पिता के जैसे बेटे का होना और गुरू के जैसे शिष्य का होना लाज़मी ही है। उत्तराखंड के लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी के सुपुत्र कविलास नेगी इस कहावत को चरितार्थ करते नज़र आ रहे हैं। मैंने कई मंचों पर कविलास को अपने पिता के साथ कोरस गाते देखा और सुना है तो कई मंचों पर पहाड़ी-पहाड़ी मत बोलो मैं देहरादून वाला गाते हुए देखा है।
यह तथ्य सर्वविदित है कि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी चाहते तो कई अन्य कलाकारों की तरह ही अपने इकलौते बेटे कविलास को मास्टर कविलास नेगी के रूप में बहुत पहले उत्तराखंडी गायकी के मैदान में उतार देते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। गढ़रत्न नेगी जी का स्पष्ट तौर पर मानना है कि हमें अपने बच्चों पर अपनी राय या फिर अपनी पसंद और नापसंद नहीं थोपनी चाहिए। यही वजह है कि अब कविलास नेगी एक तैयारी के साथ, कुछ अनुभव के साथ उत्तराखंडी गीतों के गायन और वीडियो एलबम के निर्देशन के क्षेत्र में सामने आए हैं।
मैमा न पूछा गीत के सफलता के बाद अब लोगों की जुबान पर एक बात आने लग गई है कि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी अपने बेटे कविलास नेगी को अपने गीत-संगीत की विरासत सौंप रहे हैं। लेकिन मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता हूं। मेरा यह मानना है कि विरासत सौंपी नहीं जाती है बल्कि विरासत को संभाला जाता है,विरासत संभालने योग्य बना जाता है। साहित्य और राजनीति में अगर किसी के चाहनेभर से विरासत संभाली जाती तो अभिषेक बच्चन भी अमिताभ बच्चन की तरह बिग बी नहीं तो कुछ तो अलग नज़र आते। अगर चाहनेभर से विरासत संभाली जाती तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर भी राहुल गांधी कुछ करिश्माई काम कांग्रेस के लिए नहीं कर सके तो फिर उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की राजनीतिक विरासत नहीं संभाल सकने के जुमले नहीं सुनने पड़ते। अगर चाहने भर से विरासत संभाली जाती तो सुनील मनोहर गावस्कर की तरह ही रोहन गावस्कर भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में रन बनाते नज़र आते। अभिषेक बच्चन, राहुल गांधी और रोहन गावस्कर के प्रति मेरे दिल में पूरा-पूरा सम्मान है लेकिन ये उदाहरण मुझे इसलिए देने पड़े कि चाहनेभर से विरासत नहीं संभाली जाती। विरासत संभाली जाती है कुछ हटकर करने से कुछ नया और बेहतर करने से। कविलास नेगी ने भी अभी कुछ ऐसा नहीं किया है कि हम कह सकें कि वो अपने पिता की विरासत को बखूबी संभाल रहे हैं। लेकिन अपने गायन और सधे हुए निर्देशन से कविलास नरेंद्र सिंह नेगी जी की विरासत संभालने की दिशा में आगे बढ़ते नज़र आ रहे हैं।
‘पहाड़ी-पहाड़ी मत बोलो मैं देहरादून वाला हूं’ गीत में कविलास अपने गायक होने का अहसास दिला चुके हैं। अब ‘मैमा न पूछा’ गीत गाकर कविलास ने एक अच्छा गायक होने की उम्मीद बंधाई है। मैं यहां पर कविलास नेगी के अच्छे गायक होने की पैरवी नहीं कर रहा हूं लेकिन मैंने जो महसूस किया है वही सब आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूं। कविराज नरेंद्र सिंह नेगी जी की कलम से उपजा यह गीत गायक कविलास नेगी ने उसी अंदाज़ में गाया और अभिनीत किया है जैसा कि इसे रचा गया है,गढ़ा गया है।
सनका बांद, माया बांद, सिल्की बांद, फुरकी बांद और छमना बांद के इस बदहाल दौर में नरूभै की काल्पनिक ‘अजाण बांद’ आज भी दिल में कुतगलि सी लगाती है और सोचने पर मजबूर कर देती है कि यह बांद कै गांव की होलि? क्या गजब की उपमा की है कविराज नेगी जी ने कि वो अजाण बांद नायक को बौल्या बणा जाती है कि मानों उसके पराण अपने साथ ले गई हो और सरैल छोड़ गई हो। मैमा न पूछा गीत में पहाड़ी फूलों का ना केवल उल्लेख किया गया है बल्कि इस बात का भी सजीव वर्णन भी किया गया है कि कौन सा फूल गांव की सारियों में खिलता है और कौन सा जंगल में।
‘मैमा न पूछा’ गीत को पौड़ी के मैसमोर इंटर काॅलेज में फिल्माया गया है। मैसमोर इंटर कॉलेज ने उत्तराखंड और देश को कई बड़ी शख्सियतें दी हैं। स्वयं लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी भी इसी मैसमोर इंटर काॅलेज के कला वर्ग के छात्र रहे हैं। कविलास नेगी के निर्देशन में ‘मैमा न पूछा’ गीत लोकप्रियता के नित नए आयाम स्थापित करे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैमा न पूछा गीत की आडियो और वीडियो टीम को मेरी ओर से बधाई।