पीरूल की पत्तियों को खूबसूरत कलाकृतियों में ढाल रही है पहाड़ की बेटी मंजू शाह,वोकल फॉर लोकल के जरिए पहाड़ को बना रही आत्मनिर्भर

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सुरेंद्र सिंह हालसी

पहाड़ के जीवन को अपने संघर्षों से परिभाषित करने वाली पहाड़ की नारी विश्व पटल पर कई बार पहाड़ के सम्मान को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा चुकी है। पहाड़ की महिलाओं में संघर्ष की क्षमता है। जो हर किसी के प्रकृति संघर्ष और जीवटता सिखाती हैं,चालाकी नहीं। पहाड़ो का जीवन चुनौतियां सिखाता हैं,और इन चुनौतियों के साथ जो पहाड़ को नया जीवन देते हैं, वह है यहां की नारी शक्ति,इस लिए कहा भी जाता हैं कि नारी के बिना पहाड़ अधूरा सा हैं या यूं कहें कि पहाड़ का अस्तित्व ही नारी के कारण टिका हुआ है। पलायन के मामले पर जब भी बात होती हैं तो यहां भी एक विचार पर आकर सहमति बनती हैं कि पहाड़ों से कुछ हद तक जो पलायन रुका है। उसमें पहाड़ों की नारी की भूमिका हमेशा पुरुषों से आगे है और भविष्य में भी आगे ही रहेगी।

इसी के साथ पहाड़ पर नई चुनौतियों,खेत-खलिहानों,रीति-रिवाज और स्वरोजगार के क्षेत्र में आज जितने भी प्रयास किए जा रहे है। इन सभी प्रयासों में उत्तराखंड के तमाम ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका अग्रणीय है। जिसके चलते बड़ी संख्या में पहाड़ विकसित हो रहे है,पहाड़ विश्व पटल पर सम्मान के साथ खड़े हो रहे हैं,और इस सम्मान को दिलाने में हमेशा से पहाड़ की नारी की सोच,संघर्ष और उसका दृढनिश्चयी होना महत्वपूर्ण भूमिका में रहा है।

आज हम बात करने जा रहे है एक ऐसी ही संघर्षरत,दृढनिश्चयी और अपने लक्ष्य के साथ असंख्य लोगों के लिए प्रेरक बन रही अल्मोड़ा के द्वाराहाट कस्बे में रहने वाली मंजू रौतेला शाह की,जो पहाड़ पर रहते हुए उस पीरूल (चीड़) घास के तिनके-तिनके जोड़कर अपने कैनवास पर ऐसे आकृतियां उकेर रही है। जो विश्व पटल पर उत्तराखंड के लोक परिवेश को नया सम्मान दिला रहा है। क्योंकि मंजू शाह उस पीरूल घास को नया आकार दे रही हैं,जिस पीरूल घास को पहाड़ के लिए अक्सर विनाश का कारण माना जाता है।

बचपन से था कुछ अलग करने का जुनून

9 अगस्त 1984 को बागेश्वर के असों (कपकोट) गांव में प्रधानाचार्य किशन सिंह रौतेला और श्रीमती देवकी रौतेला के घर जन्मी मंजू की शिक्षा-दिक्षा ग्रामीण प्रवेश में हुई। असों,कपकोट और अल्मोड़ा में शिक्षा लेने के बाद मंजू शाह ने शोभन सिंह जीना कैम्पस से बीए करने के बाद हल्द्वानी के एम.बी. कॉलेज से एमए किया और भीमताल के जे.एन.कॉल इन्स्टीट्यूट से बीएड किया और पहाड़ को ही अपनी कर्मभूमि के लिए चुना।

अपनी शिक्षा-दिक्षा के दौरान मंजू लगातार स्कूल-कॉलेज में होने वाले हर कंपटीशन का हिस्सा रहती थी। जहां से उन्हें कुछ न कुछ सीखने का मौका मिलता रहा है। वर्ष 2009 में उनका विवाह हुआ और वह अपने पति मनीष कुमार शाह के साथ अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के हाट गांव में आकर रहने लगी और यहां से उन्होंने उस पीरूल घास को अपने कैनवाल पर उकेरना शुरू किया। जिस पीरूल घास को आमतौर पर जंगल में आग लगने का मुख्य कारण माना जाता है। पीरुल घास को इस लिए भी उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है क्योंकि इसे ना तो पशु खाते हैं और ना ही इसे किसी भी प्रकार की कृषि के कार्य हेतु काम में लाया जा सकता है। लेकिन मंजू शाह ने इस पीरूल घास से आभूषण और घरों में रखने के लिए साज-सज्जा का सामान बनाकर नयी परिभाषा ही नहीं दी बल्कि वह आज पीरूल के माध्यम से हजारों लोगों को स्वरोजागर के लिए प्रेरेरित और प्रशिक्षित भी कर रही है।

मौसेरी बहन से प्रशिक्षण लेकर पीरूल घास से बनाया आभूषण और साज-सज्जा का सामान

मंजू शाह ने आज अपने संघर्षों और मेहनत से पीरूल के पत्तों के तिनके-तिनके जोड़कर स्वरोजगार शुरू कर दिया है। द्वाराहाट निवासी मंजू चीड़ के पत्तों पीरुल से आभूषण और सजावटी सामान बना रही हैं। जिससे कई लोगों को रोजगार के अवसर तो मिल ही रहे है। बल्कि पहाड़ों के लिए घातक माने जाने वाले इस पीरूल में लोग अब स्वरोजगार के अवसर खोज रहे है।

मंजू बताती हैं कि उन्होंने अपनी मौसेरी बहन पूजा राणा से सन् 2012 में पीरूल घास से शुरूआत में टोकरी,पारंपरिक आभूषण एवं अन्य सजावटी सामान बनान सीखा। पूजा राणा ने ही उन्हें साज-सज्जा के सामान बनाने का प्रशिक्षण दिया। अपनी बहन से सीखे इस हुनर से उन्होंने जंगलों में बेकार पड़े चीड़ के पत्ते (पिरूल) का अनूठा समावेश किया। पीरुल के पत्तों से उन्होंने साज-सज्जा का सामान और आभूषण बनाने का प्रयास किया जिसमें उन्हें अच्छी उपलब्धि मिली।

मंजू शाह ने अपने हुनर को धीरे-धीरे पहाड़ की अन्य महिलाओं को सीखाना शुरू किया। पीरूल के पत्तों से उन्होंने जो कुछ भी बनाया। उसे लोगों को दिखाया और एक दिन ऐसा आया की उनकी मेहनत रंग लायी और उनके इस हुनर को देखने-सीखने के लिए लोग आने लगे। उनकी मेहनत का ही नतीजा रहा कि अल्मोड़ा के द्वाराहाट कस्बे में रहने वाली मंजू रौतेला शाह को साल 2019 में कोलकाता में बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट का अवार्ड मिला। यह अवार्ड उन्हें इण्डिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल की ओर से दिया गया।

इसके बाद मंजू शाह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज वह अपने इस हुनर के माध्यम से हजारों महिलाओं को पीरूल के पत्तों से नयी-नयी चीजें बनाना ही नहीं सीखा रही है। साथ ही पहाड़ पर रहकर हजारों लोगों के लिए स्वरोजागर के अवसर स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

मंजू शाह राजकीय इंटर कॉलेज तारीखेत (रानीखेत) में प्रयोगशाला सहायक पद पर तैनात है। अपनी नौकरी के साथ-साथ उन्हें जब भी समय मिलता हैं,वह पीरूल के पत्तों से नये-नये प्रयोगों के माध्यम से कई आकृतियों को गढ़ रही है। जो कई लोगों के घरों में सम्मान के साथ उनके घरों से खूबसूरती में चार चांद लगा रहे है।

उत्तराखंड के जंगलों को गर्मियों में झुलसा देने वाला पिरूल को लेकर सरकारी स्तर पर कई नयी योजनाएं तैयार की जा रही है। सरकार पीरूल को विद्युत उत्पादन और रोजगार का प्रमुख जरिया बनने जा रहा है। सरकार ने पिरुल से बिजली बनाने की योजना भी तैयार कर ली है। ऐसे में पहाड़ की बेटी मंजू शाह के इस हुनर को यदि सरकार प्रोत्साहन देती हैं तो निश्चित तौर पर मंजू शाह का यह प्रयास उत्तराखंड के लोगों को स्वरोगार प्रदान करने के साथ-साथ देश को विश्व पटल विशेष सम्मान दिला सकता है।